Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 230
________________ 211 अनुप्रेक्षाएं गर्मी मौसम की भी आती है और गर्मी भावना की भी आती है। अनुकूल कष्ट का नाम है सर्दी और प्रतिकूल कष्ट का नाम है गर्मी। जिस व्यक्ति ने अपने शरीर से सर्दी और गर्मी को नहीं सहा, वह कच्चा आदमी रह गया। जिस व्यक्ति ने अपने मानसिक जगत् में अनुकूलता को नहीं सहा, प्रतिकूलता को नहीं सहा, वह साधना के क्षेत्र में कच्चा आदमी रह गया। जब चाहो तब उसे दुःखी बना सकते हो। कच्चे आदमी को दुःख दिया जा सकता है। जो पक जाता है उसे दुःख देना बड़ा कठिन होता है। जब तक मिट्टी का घड़ा कच्चा है, पक नहीं जाता, तब तक काम का नहीं होता। न पानी रखा जा सकता और न और कुछ रखा जा सकता है। उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। कच्चे पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता। भरोसा पैदा होता है पक जाने पर । मनुष्य भी जब तक कच्चा होता है तब तक उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। साधना की आंच में अनुकूलता और प्रतिकूलता को झेलते-झेलते जो पक जाता है वह विश्वास करने योग्य बनता है, अन्यथा सत्तर वर्ष का आदमी भी अविश्वसनीय ही रहता है। बड़ी उम्र हो जाने से कोई विश्वासपात्र नहीं बन जाता। एक छोटी उम्र का आदमी भी विश्वासपात्र बन जाता है, यदि वह पक जाता है। यदि नहीं पकता है तो जीवन में बड़े खतरे रहते हैं। परिवर्तन की प्रक्रिया है- पक जाना। पकने के लिए दो आंचों से गुजरना पड़ता है। एक अनुकूलता की आंच और दूसरी प्रतिकूलता की आंच । प्रतिकूलता की आंच को सहना कठिन काम है तो अनुकूलता की आंच को सहना कठिनतम काम है। जितना खतरा अनुकूलता से होता है, उतना खतरा प्रतिकूलता से नहीं होता। ध्यान के द्वारा इन दोनों स्थितियों का पार पाया जा सकता है, अनुशासन स्थापित किया जा सकता है। ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने चन्द्र स्वर का प्रयोग करता है। वह पकता है। श्वास के साथ बहुत सारे रासायनिक तत्त्व होते हैं। वे बाहन का काम कर सकते हैं। माध्यम बन सकते हैं। किसी विचार को पहुंचाना है, किसी स्थिति को सहना है तो श्वास-संयम के बिना वह सहज-सरल नहीं होगा। यदि हमने श्वास को साध लिया, दीर्घ-श्वास का और समताल-श्वास का प्रयोग करना सीख लिया तो अनुकूल स्थिति और प्रतिकूल स्थिति को भी झेल सकते हैं। प्रतिकूल स्थिति को झेलना पड़ता है। सामने प्रतिकूल स्थिति आती है और मस्तिष्क में गर्मी छा जाती है। सामने प्रतिकूल स्थिति आती है और मस्तिष्क में गर्मी छा जाती है। उत्तेजना आती है, तब पीनियल और पिच्यूटरी में भयंकर गर्मी पैदा हो जाती है। ये सारे स्थान बहुत सक्रिय हो जाते हैं। उत्तेजना की अवस्था में तो वह झेलना पड़ता है। यदि उस समय हमारे श्वास का अभ्यास अच्छा होता है, तो लाभ प्राप्त कर लेते हैं। कोई भी प्रतिकूलता मन में आ रही है, मन में पारा गर्म हो रहा है, उत्तेजना भभक रही है, तत्काल समताल-श्वास का प्रयोग शुरू करें, ऐसा लगेगा आग और पानी दो हैं बीच में कोई बर्तन आ गया। आग जल रही है, पानी डालो, आग बुझेगी, पानी फालतू चला जाएगा। आग जल रही है, बर्तन रखकर उसमें पानी डालो, पानी गर्म हो जाएगा, काम का बन जाएगा। पानी काम का भी बन सकता है, आंच को सहकर, और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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