Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 232
________________ 213 अनुप्रेक्षाएं हीटर और कूलर क्यों चले ? जब मनुष्य ऋतु के प्रभाव को सहन करने में असमर्थ हो गया तब इनका आविष्कार हुआ। ऋतु के प्रभाव को सहने की क्षमता आदमी में कम हो गई है। आज जब कुछ समय के लिए बिजली चली जाती है तब आदमी परेशान हो जाता है। गर्मी है, पंखा चाहिए। सर्दी है, हीटर चाहिए। पुराने जमाने के मकान देखें। उनके दरवाजे भी छोटे होते और खिड़कियां विशेष होती ही नहीं और यदि कोई होती तो वे भी छोटी ही होती। आज तो शायद पशु भी उन स्थानों में नहीं रखे जा सकते। कुछ असर पशुओं में भी आया है आदमियों का। वे भी खुला स्थान पसन्द करते हैं। उन्हें भी मुक्त स्थान चाहिए। किन्तु आश्चर्य होता है कि लोग उन मकानों में कैसे रहते थे? आचार्य भिक्षु ने सिरियारी गांव में पक्की हाट में चातुर्मास-काल बिताया।अभी भी वह हाट प्रायः मूल की स्थिति में मौजूद है। उस हाट में आज कोई भी साधु चातुर्मास तो क्या एक दिन भी रहना नहीं चाहेगा। वह पूरा दिन नए स्थान की खोजबीन में बिता देगा, पर हाट में नहीं रह सकेगा। इसका क्या कारण है ? कारण बहत स्पष्ट है कि उस जमाने के लोग बहुत शक्तिशाली और सहनशील थे। वे हर घटना को सह लेते थे। जैसेजैसे सुविधाओं का विकास हुआ है, मनुष्य की सहनशक्ति कम हुई है। आज सुविधाओं के प्रचुर साधन उपलब्ध हैं। प्रतिदिन साधनों की नई-नई खोजें हो रही हैं। इसे हम विकास की संज्ञा देते हैं। मैं भी अस्वीकार नहीं करता कि मनुष्य ने इस क्षेत्र में विकास नहीं किया है। उसने विकास किया है और आज भी वह नए-नए आयाम खोज रहा है। किन्तु यह कहे बिना भी नहीं रहा जाता कि पदार्थ-जगत् में मनुष्य ने विकास किया है और आंतरिक चेतना के जगत् में, जहां सहिष्णुता का विकास था, उसे खोया है। आज कितना अधैर्य है। असहिष्णुता अधीरता को जन्म देती है। आज मानो कि मनुष्य में धृति है ही नहीं, ऐसा लगता है। यदि मालिक नौकर को दो कड़े शब्द कह देता है तो नौकर तत्काल कहता है-यह लो तुम्हारी नौकरी । मैं तो चला।मालिक सोचता है नौकर चला गया तो क्या होगा? वह स्वयं नौकर से कहता है- 'चलो, आगे से कुछ नहीं कहूंगा।' सारा चक्का उल्टा घूम गया। प्राचीन काल में मालिक नौकर को कितना अनुशासन में रखता था और नौकर स्वामी का कितना विनय करता था। नौकर कितना सहिष्णु होता था। आज पिता पुत्र को कुछ भी कहने से पूर्व दस बार सोचता है कि इस बात का पुत्र पर क्या असर होगा? कहीं वह कुपित होकर घर से चला न जाए। आत्महत्या न कर ले। कभी-कभी वह पूरी बात कह भी नहीं पाता, अधूरी बात कह कर ही विराम कर लेता है। आज प्रत्येक व्यक्ति अधीर है। अधीरता सीमा को लांघ चुकी है। मनुष्य ने प्रकृति की सर्दी-गर्मी को सहने की क्षमता को ही नहीं गंवाया है, उसने सार्वभौम सर्दी-गर्मी को सहने की क्षमता भी खोयी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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