Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 229
________________ 210 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग भगवान् महावीर की सहिष्णुता के सूत्र आयारो के नवें अध्याय में भगवान् महावीर की कष्ट-सहिष्णुता का उल्लेख करते हुए निम्न सूत्रों में कहा गया है +लाढ देश में भगवान् को कुत्ते काटने आते। कुछ लोग कुत्तों को हटाते। कुछ लोग उन्हें काटने के लिए प्रेरित करते। उस प्रदेश में घूमने वाले श्रमण लाठी रखते, फिर भी उन्हें कुत्ते काट खाते। भगवान् के पास न लाठी थी, न कोई बचाव। अपने आत्मबल के सहारे वहां परिव्रजन कर रहे थे। + भगवान् को लोग गालियां देते। भगवान् उन्हेंकर्मक्षय का हेतु मानकर सह लेते। + लाढ देश में कुछ लोग भगवान् को दण्ड, मुष्टि, भाले, फलक, ढेले और कपाल से आहत करते थे। कुछ लोग भगवान् के शरीर का मांस काट डालते । कुछ लोग भगवान् पर थूक देते।। कुछ लोग भगवान् पर धूल डाल देते। कुछ लोग मखौल करते और भगवान् को उठाकर नीचे गिरा देते। + भगवान् आसन लगाकर ध्यान करते। कुछ लोगों को बड़ा विचित्र लगता। वे आकर भगवान् का आसन भंग कर देते। ___+ भगवान् इन सबको वैसे सहन करते मानो शरीर से उनका कोई सम्बन्ध न हो। परिवर्तन की प्रक्रिया- सहिष्णुता परिवर्तन की प्रक्रिया का सूत्र है- सहिष्णता, सहन करना। परिवर्तन के लिए बहुत जरूरी है- सहन करना। जो सहन करना नहीं जानता वह बदल नहीं सकता। पहले ही घबराता है कि मैं यह काम करता हूं, लोग क्या कहेंगे? पड़ोसी क्या कहेंगे? साथी क्या कहेंगे? वहीं गति समाप्त हो जाती है। जो व्यक्ति बदलना चाहते हैं, वे इस बात को सर्वथा समाप्त कर दें कि कौन क्या कहेगा। कोई सम्बन्ध नहीं। मुझे क्या करना है ? केवल यही सम्बन्ध रखना है। आचार्यवर बहत बार कहते हैं कि यदि हम यह देखते रहते कि लोग क्या कहेंगे तो कुछ भी नहीं कर पाते। जहां थे, वहीं रह जाते। सारा जो विकास हुआ है, इस आधार पर हुआ है कि क्या कहेंगे, इस बात का मन में डर नहीं है, केवल एक चिन्तन है कि क्या होना चाहिए। जो होना चाहिए वह किया गया, इसलिए आज हमारी यह स्थिति बन गई। डरे ही रहते तो यह स्थिति नहीं बनती। हमारी सहिष्णुता का विकास होना चाहिए। सहिष्णुता का अर्थ है- सर्दी को सहना, गर्मी को सहना । सर्दी मौसम की भी आती है और सर्दी भावना की भी आती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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