Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 226
________________ 207. अनुप्रेक्षाएं अभय की निष्पत्ति--वीतरागता जब सहिष्णुता सधती है तब अभय घटित होता है। समूचे धर्म का रहस्य है अभय । धर्म की यात्रा का आदि-बिन्दु है अभय और अन्तिम बिन्दु है अभय। धर्म का अर्थ और इति अभय है। धर्म अभय से प्रारंभ होता है और अभय को निष्पन्न कर कृतकृत्य हो जाता है। वीतरागता का प्रारम्भ अभय से होता है और वीतरागता की पूर्णता भी अभय में होती है। जो व्यक्ति भयमुक्त नहीं होता वह कभी धार्मिक नहीं बन सकता, कायोत्सर्ग नहीं कर सकता। कायोत्सर्ग का अर्थ है--अभय। कायोत्सर्ग का अर्थ है-शरीर की चिन्ता से मुक्त हो जाना। अभय का यह पहला बिन्दु है। शरीर की चिन्ता से मुक्त हो जाना, सरल-सी बात लगती है, परन्तु यह इतनी सरल बात नहीं है। शरीर के प्रति बने हुए भय से छुटकारा पा लेना सरल बात नहीं है। 'ममेदं शरीरम्'-- यह शरीर मेरा है--जिस क्षण में यह स्वीकृति होती है, उसी क्षण में भय पैदा हो जाता है। यह भय की उत्पति का मूल कारण है। शरीर का ममत्व भय उत्पन्न करता है। ममत्व और भय दो नहीं हैं। ममत्व को छोड़ना भय-मुक्त होना है और भय-मुक्त होने का अर्थ है ममत्वहीन होना । लक्ष्य की निश्चिंतता से जैसे आत्म-बल बढ़ता है, वैसे निर्भयता भी बढ़ती है। निर्भयता अहिंसा का प्राण है। भय से कायरता आती है। कायरता से मानसिक कमजोरी और उससे हिंसा की वृत्ति बढ़ती है। अहिंसा के मार्ग में सिर्फ अंधेरे का डर ही बाधक नहीं बनता, और भी बाधक बनते हैं। मौत का डर, कष्ट का डर, अनिष्ट का डर, अलाभ का डर, जाने-अनजाने अनेक डर सताने लग जाते हैं, तब अहिंसा से डिगने का रास्ता बनता है। पर निश्चित लक्ष्य वाला व्यक्ति नहीं डिगता। वह जानता है--ऐश्वर्य जाए तो चला जाए, मैं उसके पीछे नहीं हूं। वह सहज भाव से मेरे पीछे चला आ रहा है। यही बात मौत के लिए तथा औरों के लिए है। मैं सच बोलूंगा। अपने प्रति व औरों के प्रति भी सच बोलूंगा। अपने प्रति व औरों के प्रति भी सच रहूंगा। फिर चाहे कुछ भी क्यों न सहना पड़े। अहिंसक को धमकियां और बन्दर घुड़कियां भी सहनी पड़ती है। वह अपनी जागृत वृत्ति के द्वारा चलता है, इसलिए नहीं घबराता । इन सब बातों से भी एक बात और बड़ी है। वह है--कल्पना का भय। जब यह भावना बन जाती है-अगर मैं यों चलूंगा तो अकेला रह जाऊंगा, कोई भी मेरा साथ नहीं देगा, यह अहिंसा के मार्ग में कांटा है। अहिंसक को अकेलेपन का. डर नहीं होना चाहिए। उसका लक्ष्य सही है, इसलिए वह चलता चले। आखिर एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262