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अहिंसा और शान्ति
अभय। जैन आगम प्रश्नव्याकरण में अहिंसा के सात नाम बतलाए गए हैं। वे उसके प्रत्येक पहलू को प्रकट करने वाले नाम हैं । उनमें तीन नाम हैं- आसासो, वीसासो, अभओ । सह-अस्तित्व संभव बनता है आश्वासन में। जहां आश्वासन है, एक व्यक्ति दूसरे से आश्वस्त है, कहीं भी अनाश्वासन जैसी बात नहीं है, वहां सह-अस्तित्व का विकास होता है। दूसरी बात है विश्वास की । एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के प्रति विश्वास हो । तीसरी बात है अभय की । व्यक्ति तभी अभय बन सकता है, जब दूसरा व्यक्ति विश्वस्त हो, विश्वासी हो । विश्वास तब जागता है जब आश्वासन मिलता है। आश्वास, विश्वास और अभय- ये तीनों जुड़ें हुए हैं। जब ये तीनों स्थितियां निर्मित होती हैं, तब सह-अस्तित्व का सूत्र व्यवहार में प्रादुर्भूत होता है।
आश्वासन की नींव पर समझौता
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आज एक समस्या है। अणु अस्त्र बन रहे हैं। एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र से कोई आश्वासन नहीं है। अभी कुछ वर्ष पूर्व रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल गोर्बाच्योव और अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने प्रक्षेपास्त्रों में कमी करने का समझौता किया । वह एक आश्वासन बना। उस आश्वासन से एक विश्वास पैदा हुआ है और विश्वास से अभय का वातावरण बना है। एक भय बना हुआ था कि अणु-अस्त्रों के द्वारा न जाने कब सारे संसार का विनाश हो जाए। वह भय भी कम होना शुरू हुआ है । सह-अस्तित्व के लिए सामाजिक तीन सूत्रों का प्रयोग आवश्यक है। अहिंसा और सह-अस्तित्व
हमने अहिंसा को एक रूप में जाना है। अहिंसा यानी किसी को न मारना, किसी को न सताना । जब तक सह-अस्तित्व की भावना का विकास नहीं होता तब तक अहिंसा का अर्थ पूरा समझ में नहीं आता। एक साथ रहना है और एक साथ जीना है तो आश्वास, विश्वास और अभय के वातावरण का निर्माण करना होगा । हमारी अहिंसा, आपकी अहिंसा प्राणी मात्र के साथ जुड़े यह आवश्यक है। किसी को नहीं मारना बहुत अच्छी बात है । इस अवधारणा में भी एक अन्तर आया है कि और किसी को नहीं मारना, किन्तु मनुष्य को मारा जा सकता है, सताया जा सकता है। उसमें भी निकट का व्यक्ति अधिक उपेक्षित बन गया है, यानी अपना पड़ोसी, अपना परिवार, अपना समाज, अपना राष्ट्र- सबकी उपेक्षा हो सकती है। मनुष्य की उपेक्षा और प्राणीमात्र की अपेक्षा - अहिंसा का यह एक रूप बन गया है। प्राणी मात्र को नहीं सताना — इस धारणा को गलत नहीं कहा जा सकता। यह बहुत आवश्यक है, किन्तु प्रारंभ कहां से हो, अहिंसा का प्रारंभ कहां से करें, यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है । अहिंसा : वर्तमान मानस
अहिंसा के दो रूप हैं- स्वाभिमुखी अहिंसा और सामाजाभिमुखी अहिंसा । क्रोध, अहंकार, भय, घृणा और द्वेष- इन सबको कम करना स्वाभिमुखी अहिंसा
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