Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 200
________________ कायोत्सर्ग शशांक शब्द का अर्थ चंद्रमा है। तात्पर्य यह कि शशांकासन चन्द्रमा की ही तरह शीतलता प्रदान करता है 1 विधि I वज्रासन की स्थिति में पंजों के बल ठहरें । हाथों को घुटनों पर रखें । पूरक करते हुए हाथों को आकाश की ओर उठाएं। रेचन करते हुए हाथ एवं ललाट (चित्रानुसार) को भूमि पर स्पर्श कराएं। दोनों हथेलियां परस्पर सटी हुईं, बाहें कानों के पार्श्व से सटकर जाते हुए, सिर के आगे भूमि पर स्पर्श करेगी। पूरक करते हुए उठें। पुनः रेचन कर भूमि को स्पर्श करें । , 181 दीर्घ अवधि तक शशांकासन में रुकना हो तो श्वास की गति सहज और गहरी रहेगी । समय एक मिनट से तीन मिनट । अभ्यास के पश्चात् धीरे-धीरे इसे आधे घंटे तक बढ़ा सकते हैं। Jain Education International स्वास्थ्य पर प्रभाव शशांकासन क्रोध के उपशमन और शांति के जागरण के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। इससे स्कंध, कटिभाग, पेट के अवयव संतुलित होते हैं, उनकी सुन्दरता और सौष्ठव में अभिवृद्धि होती है। यह आसन बालक-बालिकाओं के लिए सहज करणीय एवं अत्यन्त उपयोगी है । बचपन से ही आवेग और संवेगों पर नियन्त्रण-क्षमता का विकास होने से श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण होता है। चेहरे पर रक्त की लालिमा आती है, कान्ति में वृद्धि होती है । रक्तचाप शमन से स्वास्थ्य की उपलब्धि होती है। ग्रन्थितंत्र पर प्रभाव शशांकासन 'एड्रिनल' को विशेष रूप से प्रभावित करता है। जिससे उसके स्राव नियंत्रित होते हैं । परिणामतः व्यक्ति का स्वभाव शांत एवं कोमल बनता है । भय में कमी आने से व्यक्ति निर्भय बनता है । मस्तक की ओर रक्तप्रवाह अधिक होने से हाइपोथेलेमस प्रभावित होता है। इससे विवेक-शक्ति का विकास होता है । मानसिक शान्ति और भावों की निर्मलता को बढ़ाने में शशांकासन सहयोगी बनता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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