Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 204
________________ कायोत्सर्ग 185 मेरुदण्ड सीधा करें। श्वास का रेचन करते हुए ललाट को भूमि से लगायें। श्वास भरते हुए बद्ध-पद्मासन की मूल मुद्रा में आ जायें। इस प्रकार 3 आवृत्तियां करें। पद्मासन में योग मुद्रा- पद्मासन में ठहरें। हाथ की मुट्टी को बांधकर शक्ति केन्द्र (रीढ़ के मूल में) स्थापित करें। दाहिने हाथ से बाएं हाथ की कलाई (मणिबन्ध) पकड़ें। श्वास का रेचन करते हुए शरीर को आगे झुकाएं। ललाट से भूमि का स्पर्श करते हुए दाहिने हाथ से बायें हाथ की कलाई पकड़ें। दोनों हाथों को तानकर ऊपर उठाएं। जितना तानकर सीधा कर सकते हों करें। श्वास गति सहज रहती है। श्वास भरते हुए शरीर व गर्दन को सीधा करें। हाथ को मूल में स्थापित करें। बायें हाथ से दायें हाथ की कलाई पकड़ें। श्वास को भरते हुए हाथों को ऊपर खिंचाव दें। पद्मासन में लम्बे समय तक ध्यान अथवा योग मुद्रा से रुकना हो तो रुका जा सकता है। यह मुद्रा मानसिक शान्ति और अस्थिरता के लिए उपयोगी है। समय और श्वास-प्रश्वास- 5 सैकण्ड श्वास लेना, 5 सैकण्ड श्वास रोकना, 5 सैकण्ड श्वास छोड़ना, 5 सैकण्ड श्वास रोकना। इस प्रकार 3 मिनट प्रतिदिन अभ्यास करें। योग मुद्रा का अभ्यास एक मिनट में 3 बार किया जा सकता है। लम्बे अभ्यास के समय श्वास-प्रश्वास दीर्घ और गहरा रहेगा। स्वास्थ्य पर प्रभाव बद्ध पद्मासन और योगमुद्रा से शरीर का सन्तुलन और मुख मण्डल आभावान बनता है। शरीर का संहनन समचौरस, समान रूप से विकसित होता है। उससे सुन्दरता में अभिवृद्धि होती है। शरीर का कोई अंग अधिक चर्बी वाला होने से बदसूरत और बेढंगा दिखाई देता है तो इन दोनों आसनों के प्रयोग से पेट और कटि पर आई चर्बी कम होने लगती है। सीना सुदृढ़ और मेरुदण्ड लचीला होता है। मुख की आभा प्रदीप्त होती है। हाथों की शक्ति विकसित होती है। मस्तक में पर्याप्त मात्रा में रक्त पहुंचने से स्मरण-शक्ति विकसित होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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