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अहिंसा और शान्ति
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यह स्वर परिवर्तन का प्राकृतिक नियम है। श्वास स्वतः चालित और इच्छा-चालित प्रवृत्तियों के बीच संपर्क-सूत्र है। वह स्वतः चालित भी है और उस पर ऐच्छिक नियंत्रण भी किया जा सकता है।
श्वास नियंत्रण के द्वारा मस्तिष्क तरंग, हार्मोन के स्राव तथा चयापचय की क्रिया पर भी नियंत्रण किया जा सकता है। मनोवैज्ञानिकों की खोजों से पता चला है कि स्वर चक्र की भांति दाएं-बाएं मस्तिष्क पटलों का भी एक चक्र है। मस्तिष्क का एक पटल नब्बे से सौ मिनट तक सक्रिय रहता है। उसके पश्चात् वह निष्क्रिय हो जाता है। दूसरा पटल सक्रिय हो जाता है। आटोनोमिक नाड़ीतंड़ के दो भाग हैं- पेरासिम्पेथेटिक (परानुकंपी इड़ा नाड़ी) और सिम्पेथेटिक (अनुकंपी पिंगला नाडी)। पेरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम शारीरिक क्रियाओं को मंद करता है। सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम शारीरिक क्रियाओं को उत्तेजित करता है । अनुलोमविलोम श्वास पद्धति के द्वारा इनमें संतुलन स्थापित किया जा सकता है।
भावनाओं का उद्गम स्थल लिम्बिक तंत्र का एक भाग हाइपोथेलेमस है। सूक्ष्म शरीर से भाव के प्रकंपन स्थूल शरीर के मस्तिष्क में आते हैं और हाइपोथेलेमस में वे प्रकट होते हैं । फिर मन के साथ जुड़कर मनोभाव बनते हैं। उनके आधार पर हमारा व्यवहार संचालित होता है । लयबद्ध दीर्घश्वास के द्वारा लिम्बिक तंत्र पर नियंत्रण किया जा सकता है।
श्वास और मस्तिष्क के चक्रों का जैविक घड़ी के साथ गहरा संबंध है। विलियम फ्लीश के अनुसार पुरुष की शक्ति, सहिष्णुता और साहस का समय चक्र तेईस दिन का होता है। दूसरा मत है कि मनुष्य में बुद्धिमता का समय चक्र तीस दिन का होता है। स्त्रियों में ग्रहणशीलता और अन्तर्दर्शन का समय चक्र अट्ठाइस दिन का होता है। ये समय चक्र प्रत्येक कोशिका में प्राप्त हैं । मनुष्य की सहज प्रवृत्तियां- भूख, नींद, जागरण आदि-आदि समय-बोधक जीवन घड़ी के साथ जुड़ी हुई हैं। प्राणधारा का प्रवाह शरीर के अंगों में सदा एक समान नहीं होता, वह बदलता रहता है। उसका परिवर्तन-चक्र इस प्रकार है
सुबह तीन बजे से पांच बजे तक फेफड़े सुबह पांच से सात बजे तक
बड़ी आंत सुबह सात से नौ बजे तक सुबह नौ से ग्यारह बजे तक
तिल्ली अग्न्याशय दोपहर ग्यारह से एक बजे तक हृदय दोपहर एक से तीन बजे तक छोटी आंत दोपहर तीन से पांच बजे तक उत्सर्जन तंत्र सायंकाल पांच से सात बजे तक
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