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अहिंसा का व्यावहारिक स्वरूप
आहार का पैरामीटर क्या है ?
तीन शब्द हैं- आधि, व्याधि और उपाधि । व्याधि है - शरीर की व्यथा, आधि हैमानसिक व्यथा और उपाधि है - भावात्मक व्यथा । प्रश्न है- पहले किस पर चोट करें ? सामान्यतः शरीर पर चोट करने की ही बात सामने आती है। किन्तु गहरे में उतर कर विचार करेंगे तो प्रतीत होगा कि सबसे पहले चोट करनी चाहिए उपाधि पर, भावात्मक व्यथा पर । काम, क्रोध, अहं, ईर्ष्या, माया, लोभ- ये सब भावात्मक दोष हैं। सबसे पहले इन पर चोट होनी चाहिए। इन पर चोट किए बिना भावनाओं को स्वस्थ नहीं रखा जा सकता। भावनाओं के स्वास्थ्य के साथ भोजन का प्रश्न जुड़ा हुआ है। भोजन कैसा हो, यह विवेक होना चाहिए।
आज के आहार का पेरामीटर है - स्वादिष्ट, दिखने में सुन्दर, चटपटे आदि । इसके आगे कोई सोचता ही नहीं । न भोजन का संयोजन करने वाला सोचता है, न भोजन करने वाला सोचता है और न खाने वाला सोचता है।
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ध्यान-साधक के लिए भोजन का विवेक बहुत आवश्यक है । जीवन विज्ञान का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है जीवन शैली को बदलना । जीवन-शैली को बदलने का महत्त्वपूर्ण पहलू है आहार को बदलना । आहार में परिवर्तन आना चाहिए । यह परिवर्तन भावात्मक परिवर्तन का हेतु बनता है। भावात्मक स्वास्थ्य अच्छा होगा तो हिंसा की वृत्तियां अपने आप क्षीण होंगी, अहिंसा का विकास होगा।
23 : अहिसा और आसन
हिंसा और अहिंसा का सम्बन्ध अनेक घटकों से है। हिंसा की वृत्ति बढ़ने में अनेक तत्त्व काम करते हैं। अहिंसा के विकास में भी अनेक तत्त्व काम करते हैं ।
हिंसा और अहिंसा का सम्बन्ध या इस भाषा में कहें कि हिंसा और अहिंसा की अभिव्यक्ति का सम्बन्ध हमारी मुद्राओं से भी है। हम किस प्रकार बैठते हैं, किस प्रकार खड़े होते हैं और किस प्रकार सोते हैं इनके साथ भी उसका सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। आसन : एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम
योगासन एक बहुत पुरानी विधा है। हठयोग में आसनों का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है । जैन परम्परा में भी उनका बड़ा महत्त्व रहा है। बौद्ध ध्यानपद्धति विपश्यना ने आसनों को स्वीकार नहीं किया किन्तु जैन परम्परा में और हठयोग की परम्परा में आसनों को बहुत मूल्य दिया गया । आसन केवल स्वास्थ्य के लिए ही नहीं किए जाते, केवल मांसपेशियों को स्वस्थ बनाने के लिए ही नहीं किए जाते, उनका और ज्यादा प्रभाव है। उनसे मांसपेशियां सक्रिय और स्वस्थ बनती हैं, रक्त का अभिसरण सम्यक् प्रकार से होता है, शारीरिक क्रियाएं स्वस्थ बन जाती हैं। इतना ही नहीं उनके द्वारा नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र भी प्रभावित होता है। उनके द्वारा भावनाओं पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
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