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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग है ? इस मूर्खता का बोझ कुछ राजनेता और कुछ सैन्य अधिकारी उठा रहे हैं और आश्चर्य है कि सारी जनता उसके साथ आंखमिचौनी खेल रही है। महावीर का वह उद्घोष सामने आ रहा है- "मंदा मोहेण पाउडा"। मंदमति मनुष्यों की आंखों पर मोह का पर्दा गहरा हो रहा है । इस मूर्छा को तोड़ने की दिशा में कदम उठे और निःशस्त्रीकरण के लिए एक शक्तिशाली जन-अभियान का सूत्रपात हो।
___3.2. वर्तमान निःशस्त्रीकरण शस्त्र-निर्माण की होड़ के युग में निःशस्त्रीकरण की बात एक आश्चर्य है। विगत चार दशकों में पूरे विश्व का ध्यान अस्त्र-शस्त्रों में उलझा हुआ रहा। विश्व की सम्पत्ति का एक बड़ा भाग शस्त्र-निर्माण में खर्च हो रहा है। आज कुछ राष्ट्र इस रेखा पर पहुंच गए हैं कि वे जब चाहें तब मानव-जाति का प्रलय कर सकते हैं। पौराणिक साहित्य में कहा जाता है- शिव प्रलय का देवता है। क्या प्रलय मानव-जाति की नियति है ? यदि वह नियति है तो उसे कौन टाल सकेगा? जो काम शिव को करना था, उसका दायित्व मनुष्य ने अपने ऊपर ओढ़ लिया है । क्या सचसुच मनुष्य इस पृथ्वी पर रहने वाली मानव-जाति का संहार करना चाहता है ? इस प्रश्न का उत्तर उजली दुपहरी में खोजना होगा। जीत के बाद भी हार की खामोशी
वर्तमान का युद्ध प्राचीन युद्ध से भिन्न हो गया है। पुराने युद्ध में जीत के बाद विजय का उल्लास मनाया जाता था। आज युद्ध में जीत के बाद हार की खामोशी छा जाती है। यह हर कोई जानता है कि अणुयुद्ध के बाद हार और जीत को देखने वाला भी कोई नहीं बचेगा। इस प्रलय की कल्पना से हर आदमी प्रकंपित है और वह भी प्रकंपित है, जो अणु-अस्त्रों का भण्डार भर रहा है। कितना भयानक है अणुयुद्ध का चित्र ! फिर अणु-शस्त्रों का निर्माण क्यों बढ़ता जा रहा है ? इसका उत्तर महावीर की वाणी में खोजा जा सकता है। निःशस्त्रीकरण की त्रिपदी
महावीर ने कहा- अभय, अशस्त्र और अहिंसा- इन तीनों में कोई दूरी नहीं है। अभय का उच्छ्वास है अशस्त्र और अशस्त्र का उच्छ्वास है अहिंसा। निःशस्त्रीकरण की बात अभय के बिना सफल नहीं हो सकती। प्रत्येक राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना चाहता है, अपनी प्रभुसत्ता को बनाए रखना चाहता है। वह दूसरे शक्तिशाली राष्ट्र से सदा आतंकित रहता है। वह आशंका और आतंक अहेतुक भी नहीं है। जैसे भय एक मौलिक मनोवृत्ति है वैसे ही लोभ भी एक मौलिक मनोवृत्ति है। प्रत्येक राष्ट्र अपनी प्रभुसत्ता का विस्तार चाहता है, दूसरे राष्ट्रों को अपने अधीन या प्रभाव में रखना चाहता है। यह लोभ भय को जन्म देता है और भय
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