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अहिंसा और निःशस्त्रीकरण
में पर्यावरण का कवच पहने हुए श्वास ले रहा है। उसके परिपार्श्व में जीव और अजीव - दोनों का पर्यावरण है। भगवान् महावीर ने कहा- मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति इन सब में जीव है। उनके अस्तित्व को अस्वीकार मत करो । उनके अस्तित्व के अस्वीकार का अर्थ है- अपने अस्तित्व का अस्वीकार । अपने अस्तित्व को अस्वीकार करने वाला ही उनके अस्तित्व को नकार सकता है । स्थावर और जंगम, दृश्य और अदृश्य- सभी जीवों का अस्तित्व स्वीकारने वाला ही पर्यावरण के साथ न्याय कर सकता है।
कोई भी अकेला नहीं
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अचेतन जगत के अस्तित्व को भी अस्वीकार मत करो। इस संसार में रहने वाली प्रत्येक सत्ता अचेतन की ओढ़नी ओढ़े हुए है। जीव-जीव को प्रभावित करता है । यह अजीव को भी प्रभावित करता है। अजीव जीव को प्रभावित करता है । ये प्रभाव की धाराएं बहुत संक्रमणशील हैं। इसलिए कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं है । हिमालय की गुफा में बैठा अकेला व्यक्ति भी अपने साथ पूरे संसार को लिये बैठा है।
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सामंजस्य का सूत्र : अहिंसा
दूसरों के अस्तित्व, उपस्थिति, कार्य और उपयोगिता को स्वीकार करने वाला ही व्यक्ति और समाज के बीच सामंजस्य स्थापित कर सकता है | अहिंसा सामंजस्य का सूत्र है। पर्यावरण विज्ञान और अहिंसा में अभिन्नता है । यह विज्ञान इस शताब्दी की देन है। अहिंसा का सिद्धान्त बहुत पुराना है । भगवान् महावीर ने अहिंसा को अनेक पहलुओं से देखा। उनमें एक पहलू है - पर्यावरण विज्ञान । महावीर का यह सूत्र उसे सशक्त स्वर दे रहा है
'से बेमि - णेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, णेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा ।' 'जे लोयं अब्भाइक्खइ से अत्ताणं अब्भाइक्खइ । ' 'जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ से लोयं अब्भाइक्खइ । '
पर्यावरण असंतुलन क्यों ?
भगवान् महावीर ने पर्यावरण का आधार ही नहीं दिया, उसकी क्रियान्विति का मार्ग भी सुझाया। जिन जीवों की हिंसा के बिना तुम्हारी जीवन-यात्रा चल सकती है, उनकी हिंसा मत करो। जीवन-यात्रा के लिए जिनका उपयोग अनिवार्य है, उनकी भी अनावश्यक हिंसा मत करो। पदार्थ का भी अनावश्यक उपभोग मत करो। इस निर्देश के संदर्भ में वर्तमान पर्यावरण की समस्या की समीक्षा अवश्यक है । आज पृथ्वी का अतिरिक्त मात्रा में दोहन किया जा रहा है। इससे जगत का संतलन बिगड रहा है। ऊर्जा के स्रोत समाप्त होते जा रहे हैं। खनिज
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