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अहिंसा का व्यावहारिक स्वरूप बढ़ती है वैसे-वैसे शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श के प्रति आसक्ति बढ़ती जाती है। एक ओर संपदा की वृद्धि, दूसरी ओर मानसिक तनावों की वृद्धि। जैसे-जैसे तनाव बढ़ता जाता है वैसे-वैसे मादक वस्तुओं की ओर झुकाव बढ़ता है। नशे की आदत अमीर लोगों में ही नहीं होती, गरीब लोगों में भी होती है। उसका कारण अमीरी और गरीबी नहीं है किन्तु तनाव है। गरीब आदमी में अभाव-जनित तनाव होता है। अमीर आदमी में संपदा की अधिकता से उत्पन्न तनाव होता है। तनाव से घिरा हुआ आदमी शांति और सुख का जीवन जी नहीं सकता। इसलिए वह मादक वस्तुओं की शरण में जाता है। सचाई यह है कि आदमी बाहरी घटनाओं, घटना के संघर्ष से उत्पन्न चिन्ताओं से मुक्त रहकर जीना चाहता है। मादक वस्तुओं के सेवन से कुछ समय के लिए सब कुछ विस्मृत हो जाता है। विस्मृति के क्षणों में एक सुखद अनुभूति होती है। वह अनुभूति उन मादक द्रव्यों के सेवन की प्रेरणा बन जाती है। उसका परिणाम सुखद नहीं है। तंबाकू कितनी खतरनाक है, यह वैज्ञानिकों की घोषणाओं से प्रकट हो रहा है। शराब केवल शरीर के लिए ही नहीं, वृत्तियों को बदलने के लिए भी बहुत उत्तरदायी है। मद्यपान न करने वाला उतना क्रूर नहीं हो सकता जितना एक मद्यप हो सकता है। अपराधी मनोवृत्ति का निर्माण करने में भी मद्य का बहुत बड़ा योग है। असामंजस्य इच्छा और क्रिया में
खान-पान और आचार-विचार का बहुत गहरा संबंध है। यह सचाई बहुत प्राचीनकाल से ज्ञात है। अहिंसा के विकास की पहली शर्त है- आहार-शुद्धि, मादक वस्तुओं का वर्जन। आज का समझदार आदमी हिंसा की घटनाओं से बहुत चिंतित है। वह चाहता है कि समाज में सुख-शांति रहे, मार-काट, लूट-खसोट, उपद्रव और हत्याओं की श्रृंखला समाप्त हो। स्वस्थ समाज के लिए यह एक स्वस्थ परिकल्पना है। कार्य-कारण का सिद्धान्त एक वास्तविकता है। अहिंसा के क्षेत्र में भी वह घटित होता है। मनुष्य हिंसा नहीं चाहता किंतु हिंसा के कारणों को चाहता है। वह अहिंसा चाहता है, किन्तु अहिंसा के कारणों को नहीं चाहता। कारण की समग्रता में कार्य को न चाहने का अर्थ क्या होगा? कारण की असमग्रता में कार्य को चाहने का अर्थ क्या होगा? समस्या यह है कि मनुष्य की इच्छा और क्रिया में सामंजस्य नहीं है। यह असामंजस्य एक अजीब पहेली बना हुआ है। अहिंसा के विकास का सशक्त साधन
मूल समस्या तनाव है। मादक वस्तु का सेवन उसके उपचार के रूप में मान्यता प्राप्त है। हिंसा की तीव्रता उसका एक परिणाम है। हम हिंसा की तीव्रता को नहीं चाहते । आज का विद्यार्थी और युवक नशे की आदत में जाए यह भी नहीं चाहते। तनाव भी नहीं चाहते किन्तु दिनचर्या, आचार-विचार और व्यवहार- पूरी जीवन-प्रणाली
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