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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग अहिंसा के लिए उन्होंने कोई नई बात खोजी है ? न कोई अनुसंधान, न कोई प्रयोग और न कोई प्रशिक्षण । सारी सामग्री से शून्य।कहावत तो यह है कि सियार का शिकार करने जाएं तो भी तैयारी शेर को मारने जितनी होनी चाहिए। बड़ा अजीब है हमारा अहिंसा का जगत् कि शेर को मारने जाता है और सामग्री सियार को मारने की भी नहीं है पास में। इतना खालीपन है तो व्यक्तित्व का निर्माण कैसे हो सकेगा?
मैं सोचता हूं, इस दिशा में एक नई विचार-क्रान्ति की जरूरत है। आज अहिंसक व्यक्तित्व-निर्माण की बहुत बड़ी आवश्यकता है और उस आवश्यकता को सारा संसार अनुभव कर रहा है। उसके लिए एक पद्धति की जरूरत है। प्रेक्षाध्यान का एक प्रयोग उसकी पूर्ति कर सकता है। इससे संभव है निर्विचार ध्यान का विकास, विधायक भावों का विकास, निषेधात्मक भावों को दिमाग से निकालना। प्रशिक्षण का यह प्रयोग चले तो मस्तिष्क काफी प्रशिक्षित हो सकता है और नए व्यक्तित्व का निर्माण हो सकता है। अहिंसक व्यक्तित्व के निर्माण की दिशा में कोई प्रयत्न होता है तो सारे संसार के लिए यह बहुत कल्याणकारी प्रयत्न होगा।
2.5. हिंसा : मानसिक तनाव और नशा मानसिक तनाव का हेतु
अहिंसा निर्मल चेतना की अनुभूति है। राग, द्वेष और मोह- ये मल हैं। इनसे चेतना मलिन होती रहती है। राग की उत्तेजना, द्वेष की उत्तेजना और मोह की उत्तेजनाइसका अर्थ है चेतना की मलिनता । राग की उप-शांति, द्वेष की उपशांति और मोह की उपशांति- इसका अर्थ है चेतना की निर्मलता। मनुष्य में राग, द्वेष और मोह की प्रकृति सहज है। पदार्थ का उद्दीपन मिलता है, वे उभर आते हैं। पदार्थवादी और सुविधावादी दृष्टिकोण चेतना की निर्मलता के लिए, मानसिक शान्ति के लिए खतरा बना हुआ है। एक लालसा भीतर-ही-भीतर पनप रही है कि प्रिय वस्तु का संयोग हो, उसका वियोग न हो। अप्रिय वस्तु का वियोंग हो, उसका संयोग न हो। महावीर की भाषा में यह आर्तध्यान है। यह मानसिक तनाव का मुख्य हेतु बनता है। इस प्रकार की मनोवृत्ति वाले व्यक्ति का व्यवहार पांच अंगों में विभक्त होता है____ 1. व्यवसाय आदि की असफलता होने पर हीनभाव से ग्रस्त हो जाना।
2. दूसरे की संपदा पर विस्मय से अभिभूत हो जाना। . 3. संपदा प्राप्त होने पर उसमें आसक्त हो जाना। 4. दूसरे की संपदा की इच्छा करना।
5. अधिकतम संपदा के अर्जन में दत्तचित्त रहना। नशे की आदत की फलश्रुति
ये स्पर्धा के लक्षण हैं और मानसिक तनाव के हेतु हैं । जैसे-जैसे संपदा
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