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अहिंसा का व्यावहारिक स्वरूप
___ 27 मानसिक रोगों से आक्रान्त किया है। अधिक मात्रा में व्यवहत प्रोटीन लाभप्रद नहीं होता है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक दिन में 10-15 ग्राम प्रोटीन आवश्यक होता है। पर मांसाहार करने वाले या अंडा खाने वाले अधिक प्रोटीन खाते हैं। वह लाभप्रद नहीं होता। वे प्रोटीन के आधार पर ही मांसाहार का समर्थन करते हैं। वे कहते हैं, शाकाहार में इतना प्रोटीन नहीं मिल सकता, इसलिए मांसाहार करना उचित है। पर वे भूल जाते हैं कि शरीर के लिए उतना प्रोटीन अनावश्यक ही नहीं, हानिकारक भी है। प्रोटीन में भी प्राणिज प्रोटीन तो अत्यन्त हानिकारक होता है। वनस्पति प्रोटीन उपयोगी होता है, पर वह भी मात्रा में लिया हुआ। बाजरे से जो प्रोटीन प्राप्त होता है, उसके समक्ष मांस का प्रोटीन नगण्य है। बाजरे का प्रोटीन स्वास्थ्यप्रद होता है और मांस का प्रोटीन रोग लाता है। मांसाहारी और अण्डा खाने वाला व्यक्ति जितनी भयंकर बीमारियों से ग्रस्त होता है, उतना शाकाहारी कभी नहीं होता। मांसाहारी के लिए मादक वस्तुओं का प्रयोग अनिवार्य बन जाता है, क्योंकि मांस को पचाने के लिए या तो अधिक नमक काम में लेना पड़ता है या फिर अल्कोहल का सेवन करना होता है। इनके सेवन से या तो गुर्दे की बीमारी को निमंत्रण दिया जाता है या लीवर और हार्ट की बीमारी को निमंत्रण दिया जाता है। मदिरा का सीधा असर लीवर और फेफड़े पर होता है। नमक की अधिक मात्रा गुर्दे को खराब कर देती है, रक्तचाप बढ़ जाता है। आज की अनेक बीमारियों का सीधा सम्बन्ध है भोजन से। ब्लडप्रेशर, हार्टट्रबल, अल्सर, केन्सर, किडनी की विकृति-इन बीमारियों के अन्यान्य कारणों में भोजन भी एक मुख्य कारण है। आज मात्रा की बात को भुलाकर आदमी अपने ही हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहा है। प्रोटीन एक उपयुक्त मात्रा में आवश्यक है, आदमी ने इसको भुलाकर तिनके को मूसल बना डाला। तिनका मूसल बन गया
राजस्थानी कहावत है-"तिनके को मूसल बना देना।" एक व्यक्ति अपने सुसराल गया। भोजन करने बैठा। थाल में भोजन परोसा गया। वह थाल एक पट्ट पर रख दिया और. पास में मूसल भी रख दिया। वह व्यक्ति समझ नहीं पाया कि भोजन के साथ मूसल का क्या संबंध है। उसने सभी से पूछा, पर किसी ने भी सही समाधान नहीं दिया। उस घर में एक बुढ़िया थी। उसकी उम्र 90 वर्ष की थी। उससे पूछा-मां ! भोजन के साथ मूसल रखने का क्या तात्पर्य है ? बुढ़िया बोली-बेटा ! मूल बात यह है कि पुराने जमाने में यहां मेहमान को सरसों की भाजी और रोटी परोसी जाती थी। सरसों की भाजी में डंठल बहुत रहते थे। भाजी खाने वालो के दांतों में वे डंठल फंस जाते थे। इसलिए भोजन के साथ तिनका रखने का रिवाज था, जिससे कि मेहमान उस तिनके से दांतों में फंसा भाजी का डंठल निकाल ले। आज न सरसों की भाजी परोसी जाती है और न सामान्य रोटी ही। सब कुछ बदल गया तो तिनके की परम्परा भी बदल गई और उसके स्थान पर लाठी या मगल की परम्परा चालू हो गई। इस प्रकार तिनका मूसल बन गया।
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