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अहिंसा का व्यावहारिक स्वरूप अच्छा होता कि हमारी दोनों आंखें बराबर खुली होती! हमारे मस्तिष्क के दोनों पटल बराबर सक्रिय होते ! हमारे दोनों हाथ बराबर काम करते! मूल को पकड़ें
पारमार्थिक अहिंसा की खोज वैज्ञानिक उपकरणों के आधार पर नहीं हो सकती, इतिहास के आधार पर भी नहीं हो सकती, आनुवंशिकी विद्या के आधार पर भी शायद नहीं हो सकती। वह हो सकती है अपनी अन्तरात्मा के अनुसंधान से। मैं क्या हूं ? मेरे भीतर क्या है ? किन वृत्तियों के स्तर पर मैं जी रहा हूं ? कौन-कौनसी वृत्तियां हिंसा को उभार रही हैं ? क्या उन वृत्तियों का शमन किया जा सकता है? जब तक यह आध्यात्मिक विश्लेषण नहीं होगा, अहिंसा की खोज संभव नहीं बन पाएगी, क्योंकि हिंसा और अहिंसा का प्रश्न हमारे अन्त:करण से जुड़ा हुआ है, बाहर से भी जुड़ा हुआ है। बाहर से नहीं जुड़ा हुआ है, ऐसा मुझे नहीं लगता किंतु मूल में भीतर से जुड़ा हुआ है। मूल नीचे होता है और शाखाएं ऊपर होती हैं। किंतु उलट गया। शाखाएं नीचे चली गईं और मूल ऊपर आ गया। आज शाखाएं हमें मूल लग रही हैं । शाखाएं कभी मूल नहीं हो सकतीं । मूल हो सकती है जड़। जो जड़ की बात है वह है मनुष्य की वृत्तियां। हमने केवल परिस्थितियों को मान लिया। आज का सारा चिंतन परिस्थिति के आधार पर चल रहा है। किसी भी समाजविज्ञानी से पूछो, किसी भी अर्थशास्त्री से पूछो या किसी मनोविज्ञानी से पूछो कि हिंसा का मूल क्या है ? हिंसा की जड़ क्या है ? यही उत्तर मिलेगा कि वातावरण, परिस्थिति का चक्र। यही मूल है, जड़ है। जैसी परिस्थिति, जैसा वातावरण, वैसा ही आदमी बनता है और वैसा ही आचरण करता है। हमारे व्यवहार का निर्धारण जो परिस्थिति के आधार पर होने लगा है, इसका अर्थ है-जो मूल था वह तो ऊपर आ गया और जो शाखाएं थीं वे नीचे चली गईं। मूल शाखा बन गया और शाखा मूल बन गई। यह एक भ्रम पैदा हुआ है। इस भ्रम को तोड़ना है। आवश्यक है संतुलन
जब तक यह भ्रम नहीं टूटेगा, आंख साफ नहीं होगी, धुन्धलाहट कम नहीं होगी, तब तक वास्तविक सत्य को नहीं देख पाएंगे।
ध्यान का प्रयोग उस भ्रम को तोड़ने का प्रयास है। जैसे-जैसे व्यक्ति अपने भीतर की गहराइयों में जाता है वैसे-वैसे कुछ नई सचाइयां सामने आती हैं, और वे सचाइयां, जिनकी शायद वैज्ञानिक व्याख्या न की जा सके। क्या आप सोचते हैं कि इन सब की वैज्ञानिक व्याख्या की जा सकती है ? ऐसा सोचेंगे तो बहुत बड़ा भ्रम होगा। कुछ सचाइयां हैं जिनकी वैज्ञानिक व्याख्या हो सकती है। बहुत सारी सचाइयां हैं जिनकी वैज्ञानिक व्याख्या नहीं की जा सकती, पर वे सत्य हैं । अनेक स्थितियां हैं,
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