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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग तो पांच सौ अशर्फियां और मेरा मूल्य मात्र पचीस अशर्फियां ! जल-भुन गया, पर करे क्या ? कवि से कहा, इतने बड़े कवि बने हो पर इतना भी नहीं जानते कि पचीस अशर्फियां का मूल्य तो मेरी पोशाक का होगा। कवि ने कहा, मैंने बिलकुल ठीक कहा है। आपकी पोशाक का मूल्य ही मैंने बताया है। तैमूर ने पूछा-मेरा मूल्य क्या कुछ भी नहीं है ? कवि ने कहा, बिलकुल नहीं। जो आदमी क्रूर है, जिसमें दया नहीं
और जो किसी को अपने समान समझता नहीं, जिसमें कोई सहानुभूति की भावना नहीं, जिसमें कोई न्याय नहीं, उस आदमी का दुनिया में कोई मूल्य नहीं होता। आप निश्चित मानें मैंने आपका मूल्य जीरो आंका है, आपकी पोशाक का मूल्य ही पचीस अशर्फियां आंका है। आपका कोई मूल्य नहीं है। पारमार्थिक अहिंसा
हमारा मूल्यांकन का एक दृष्टिकोण है। जो व्यक्ति परमार्थ की भूमिका पर मूल्य आंकता है वह बाहरी बात का मूल्य बहुत कम आंकता है। उसकी दृष्टि में मूल्य होता है अन्तर की वृत्तियों का । वह देखता है कि व्यक्ति की आन्तरिक वृत्तियां कैसी हैं ? उसकी भूमिका कैसी है ? उसने किसी भूमिका पर काम शुरू किया है ? अहिंसा के बारे में हम बहुत कम सोचते हैं, बात बहुत करते हैं । इसलिए करते हैं कि अहिंसा के बिना समाज सुख और शांति से जी नहीं सकता। समाज को जरूरत है अहिंसा की, इसलिए कि वह सुख से जी सके। समाज को जरूरत है अहिंसा की, इसलिए कि वह शांति के साथ जी सके, स्वस्थ रह सके। व्यावहारिक अहिंसा के आधार पर हमने इस जरूरत का अनुभव किया किन्तु हमारी एक भूल रह गई। हमने पारमार्थिक अहिंसा की ओर बहुत कम ध्यान दिया। आत्मा की सानुभूति और समानता के बिन्दु का कम से कम हमने स्पर्श किया है।
प्रेक्षा-ध्यान का एक सूत्र है-आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने का। साधक को कहा गया- "संपिक्खए अप्पगमप्पएणं"- आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो। इसका अर्थ क्या है ? यह परमार्थ की ओर संकेत करता है। केवल स्वार्थ पर ही आधारित जीवन-शैली की ओर मत देखो, केवल उपयोगिता के आधार पर जीवन-शैली की ओर मत देखो, जीवन का एक दूसरा पहलू भी है। उसे भी देखना सीखो। हमने दूसरे पहलू को देखना कभी सीखा नहीं। एक आंख ही हमारी काम करती है। हम एक पहलू को ही जानते हैं, देखते हैं, पहचानते हैं। जीवन का दूसरा पक्ष भी है जो बराबर का पक्ष है, पर हमारी आंख सदा मुंदी की मुंदी रहती है। हमने सही अर्थ नहीं समझा अहिंसा का, हमने ध्यान नहीं दिया इस पर। .. एक छोटी-सी कहानी है। दामाद ससुराल में गया। गांव का व्यक्ति था और ससुराल शहर में था। गांव में तो रोटियां बड़ी-बड़ी बनाते हैं और शहर में
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