Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 359
________________ ૩૫૮ आगमसद्दकोसो - २५०,२५६ थी पिव,३७५,३९०,४०७, ४०६,५११,५१२,५२१,५३५,५८२,७६४, ४६७ थी ४६९,४८१,५०७,५६६,५६७, ९२६ थी ९२८,९३०,९४५,९५९,१०११, ५७५,५८०,५८८,५९४,६१३,६२६,६३६, १०३९,१०८४,११६२,१२१५,१२२४, ६५९,६७३,६८१,७२४,७३१,७३८,८०० १२३९,१२४६,१३८४,१४१५; थी ८०२,८४७,८५६,८६०,८९१,९१४, नंदी. ६४,७४,१३४,१३८,१४१; ९१५,९४६,९४७,९५३,९५९,९६५,९७०, जो.नंदी. १; अ.नंदी. १: ९७५,९८१,९९०,९९५,९९८ थी १०००, अनुओ. ४६,२९९,३१७; १०३३ थी १०३८,१०४२; ठाणओ [स्थानतस्] में स्थानेथी नाया. ५,१५,३७,४०,४१,४९,५१,६१,७५, सूय, ५८४; ८७,१४०,१४७,१५३,१५९,१६७,१८३, ठाणंतर [स्थानान्तर] योजना में स्थानथा २१८,२२०; બીજું સ્થાન अंत. २७,३९,५१, अनुत्त. १३; सम. १६३; पण्हा. ३३,३५,४४,४५, ठाणग [स्थानक] शरी२नी येष्टा-विशेष विवा. २८ थी ३०; सम. २२०; नंदी. १४१; उव. १०,१२,२०,२८,३४,४४,५१; | ठाणगुण [स्थानगुण) अघास्तिय-स्थितिमा राय, ५,२३,३१,४४,५१,५९,६१,६५,६६, સહાય કરવાનો જેનો ગુણ છે તે ७३,८१%3 ठा. ४७९; भग. १४२; जीवा. ४७,१६९,१८०,२८८; पन्न, ६,१६६,१९२ थी २०५,२१७,२१८, ठाणविइय [स्थानस्थितिक] संयमन स्थाने २२१,२२५ थी २२८,२३२,२३४,२३५, રહેવું તે, સ્થિર રહેવું તે ३४९,४१४,४१७,४६२,४६८,५३४,५३७, उव. १९; ५४३, ठाणट्ठिय [स्थानस्थित] शुभी '७५२' सूर. ९० थी ९३,१९२; ओह. ९९,१००,१७८; चंद. ९४ थी ९७,१९६; ठाणठित [स्थानस्थित] शुभी 6५२' जंबू. ६२,७७,७९,१०४,२२७,२६८; सूर. १९२, चंद. १९६; निर. ७,१८; पुष्फि. ६ थी ८; ठाणधर [स्थानधर] ' ' नाम [ग] पुष्फ. ३ आउ. ७०; આગમ સૂત્રના ધારક महाप. २०; तंदु. १५५; उव, २०; अनुओ. १६१; गणि. १३,२८,६३; ठाणनिसीयणतुयट्टण [स्थाननिसीदनत्वग्वर्तन] निसी. ३१५,७८९ थी ७९९; ઉભવું-બેસવું-પડખું ફેરવવું તે बुह. १९,८८१,८२,९८; वव. १५८ थी १६०; दसा. ३,१७,४९, ओह. ५५९; पिंड, २२; ५१,५२,१०३ थी १११; ठाणपद [स्थानपद] ‘पन्नवा ' सूत्रनु आव. १६,३९; ओह. ४३६ थी ४३८; સ્થાાનપદ નામક બીજું પદ, “સ્થાન'-પદ दस. ९१,२३२,२३३,२८३,४४८,४७१, भग. १३९,१५०,६४८,७०८,१०२१, ५०६,५०९; १०२२; उत्त. १३०,१३२,१४०,१४१,१५६,२३४, जीवा. १५५,१५८ थी १६०,३२५; २८६,३३०,३३१,३३३,३३७,४०२,४०३, || ठाणपडिमा [स्थानप्रतिमा] सासन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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