Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 515
________________ ૫૧૪ आगमसद्दकोसो ठा. २२७; उत्त. ९२७,९३०; दुरवगाह [दुरवगाह] : जरीने प्रवेश | दुरालोइय [दुरालोचित असावधानीथीनेयेसશકાય તેવું આલોચના કરેલ सम. २२६; ओह. २७४; दुरस [दूरस] ५२ रसवाणु दुरासद [दुरासद] अत्यंत हुथी ५९८ साउनन ठा. ७०२; भग. ८४,३६०; થાય તેવું नाया. १४४; जीवा. ३०६; दस. ११; जंबू. ४९; दुरासय [दुराश्रय औधने दीधे ठेनो भुश्दीथी दुरसत्त [दूरसत्व] ५२२सप આશ્રય થઈ શકે તે, અતિ પ્રચંડ પ્રકૃત્તિવાળો भग. २८०, नाया. १४४; पण्हा. १५; दस. २५७; दुरहिगम [दुरधिगम]ोध, मुरलीथीसमय | दुरासय [दुराशय ठेनो नाशयति माछ તેવું તે, સામાન્ય બુદ્ધિથી જેનો પાર ન પામી सम. २२६; શકાય તેવો दुरहिट्ठिय [दुरधिष्ठित] दुःसाध्य, भुश्दीथी | उत्त. १३,३५८; સિદ્ધ થઈ શકે તેવું दुरियदरी [दूरितदरी] ५।५३५ । दस. २२९,२४०; भत्त. १२३ दुरहियास [दुरध्यास] : रीसहन थाय तेवू दुरुक्क (दे. थोडं पीसेढुं, थुलुं ठा. ८७२; सम. २३४,२३७: आया. ३४८; भग. २४९,४६६,६५५; दुरुज्झिय [दुरज्झित] मेरीने त्या : नाया. ३७,६९,१५९,२१५,२१७, તેવું उवा. २२ थी २४,३०,३३,३५,४७; गच्छा. ५७; अंत. १३; विवा. ९; दुट्टिअ [दुरस्थित] : शने रहेस राय, ८१; जीवा. १०५; ओह. १४४; पन्न. १९५,१९६; दसा. ३५; दुरुढ [आरूढ] मार८ थयेतो दुरहियास [दुर्+अधि+आस्] :परीने सहन जंवू. ६१,६२,७३,७६,७७,१२१,१२२,२२७, કરવું २२९; आया. १९५; दुरुत्त [दुक्त] :पवयन दुरहियासय [दुरध्यासक] हुणे शन सहन કરનાર दुरत्त [द्विरुक्त वमत उवायेल, पुन२३त. सूय. १८१,६६८; पिंड. १३३; दुराराहय [दुराराधक] अयोग्य मारा: दुरुत्तर [दुरुत्तर] हुस्त२, ६: रीतरी शाय दसा. ५३; दुरारुह [दुरारोह] : शने मारोही-यढी || सूय. ९९,१८२,४९७; पण्हा. ३३: શકાય તેવું दस. २९०,४५५; उत्त. ३५८; दर તેવું Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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