Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 521
________________ ૫૨૦ आगमसद्दकोसो ચક્રાવો दुह [दुःख] ६:५, पी31 सूय. १२०,१५९,१६०,३०१,३१७,४८१, भग. १८६; राय. २४; ४९३,७६० दुहओजण्णोवइय [द्वितोयज्ञोपवीताजनेत२६नी ठा. ६८,३०१, सम. २२७; જનોઈ नाया, ३३,७५,१४४,२१७; भग. १८९; अंत. १३; पोहा, १५,१६,३० दुहओनंतए [द्वितोनन्तक] -पडोपामा महाप. १२१; वीर. १४; અનંત दस. ४३६,४३८,४४१,५२०,५२१; ठा. ५०५; उत्त, ८१,५७६,६८५,७३७,७४९,१०८५, दुहओपडागा [द्वितःपताका] बने त२६नी घn १२७९,१२९२,१३०५,१३१८,१३३१, भग. १८५,१८९; १३४४,१३५६; दुहओपलियंक [द्वितःपल्यंकजनेतरइनो ५८inनंदी. १४९; આસન વિશેષ दुह [दुःखय]:५मापg भग. १८९; सूय. ३१७; दुहओपल्हत्थिया [द्वितःपर्यस्तिका बने त२३न। दुहओ [द्विधा] द्विधा, मास, विया२९॥ આસન વિશેષ बुह. ३७,६८,१०९; वव. १९७; भग. १८९; दसा. १०३ दस. ४५३; दुहओलोग [द्वितोलोक] बने त२६नो दो उत्त, १३८,१५१,१९५,२८२,३४२,४२४, . ठा. २२२,९७९; भग. ४१२; ४६७,५५९,७६१; दुहओवंका [द्वितोवक्रा] नेत२६ वां दुहओ (द्वितस्] मे त२३थी. __ भग. ८७६,१०३३,१०३४; आया. ९१,१३२,२२२,२४३; दुहओवत्त [द्वितआवर्त भे न्द्रिय सूय. १६,३३६,५१७,५४८,६३२,६४५,६४६, पन्न. १४९; ६६५,६८८,६८९; दुहंदुह [दुखंदुख मति हुन ठा. १६५,५०५,१०००; विवा. ९; सम. ५९,१८०,२०१; दुहकर [दुःखकर] :पने ४२नार भग. १२८,१६०,५१८,५८१,६८०; नाया. १२; पण्हा. ७ पण्हा. ९,१२; राय. २३,२८,२९,३७,६७,७४; दुहगण [दुःखगण] ६:मनो समूह जीवा. १६७ थी १६९,१७३,१७६, नाया. १४४; सूर. ८९,१९७; चंद. ९३,२०१; दुहजीवि [दुःखजीविन्] ६२ रीनार जंबू. १३३; अनुओ. १८०; दुहओखहा द्वितःखहाजनेतरथी, इशारे दुहट्ट [दुःखार्त] ६:५४थी पीडित રહેલ नाया. ३६,३७,८७,१४७,१६०,२१७; भग, ८७६,१०३३; राय, २४; उवा. २१ थी २४,२७,३०,३५,३६,४७,५४; दुहओचक्कवाल [द्वितश्चक्रवाल] बने तरइनो पण्हा. १६; विवा. ९,१४; उत्त. ९४० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562