Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 520
________________ (सुत्तंकसहिओ) ૫૧૯ તેવું સમય થયા હોય તે એકાંત દુઃખ જ હોય તે કાળ पन्न. १७ ठा. ५०,१४५,५३५,६५८,९८५; दुसमसुसमा [दुष्षमसुषमा] अक्सपिएनो जंबू. २२,२९; दस. ५०६; ચોથો આરો અને ઉત્સર્પિણીનો ત્રીજો આરો- | दुस्समाकाल [दुष्षमाकाल] "64२' જ્યાં દુઃખ વધારે અને સુખ ઓછું હોયતે કાળ भग. ९१२; आया. ५१०; जंबू. ५३; दुस्समुक्किट्ठ [दुष्षमुत्कर्षित] दुःषमाणे उ6र्ष दुसरीरि (द्विशरीरिन्] शरीरवाणो પામેલ ठा. ८०; वव. १०७,१०८,१३९,१४०; दुसह [दुःसह] : रीने सहन थाय तेवू | दुस्सयहा [दुशतधा] पस्सो प्रा२ना (शा) नाया. १४२; महानि. ४८१; दुस्संचार [दुःसञ्चार] भुश्दीथी यादी शाय| दुस्सरनाम [दुःस्वरनामन्] नाम भनी । પ્રકૃતિ-જેના ઉદયે અવાજ કર્કશ અને અપ્રિય दसा. १०६; બને दुस्संबोह [दुस्सम्बोधनोबोध ४२।ववो मुसा सम, ६२,११८; હોય તેવું दुस्सह [दुःसह] दु: जरीने सत्य आया. १४; दस. ३०; दुस्सण्णप्प [दुःसंज्ञाप्य] समलव भुस होय || दुस्सहदुक्खावहविस [दुःसहदुःखावहविष] :सह અને દુઃખકારક ઝેર સમાન કામવાસના) आया. ४४९; बुह. ११८; भत्त. ११० दुस्समदुस्समा दुष्पमदुष्पमा]सक्सपियानो दुस्साहड [दुःसंहत] : शने भेगवेद છઠ્ઠો આરો-ઉત્સર્પિણી કાળનો પહેલો આરો- उत्त. १८६; એકાંત દુઃખ જ દુઃખના કાળ दुस्सिमिण [दुःस्वप्न] ५२ स्वप्न ठा. ५०,१४५,५३५, पण्हा. ११; जंबू. २२,२९; दुस्सील [दुःशील] ५२मायारवाणो, पण दुस्समदुस्समाकाल [दुष्षमदुष्पमाकाल] ७५२ સ્વભાવવાળો भग. ९१२; सूय. ६६७,८०४; पण्हा. ११; दुस्समसुसमा [दुष्पमसुषमा हुमो 'दुसमसुसमा' | विवा. ७,२०; दसा. ३५; ठा. ५०,१४५,५३५; उत्त. ४,५,१४९,१५०,९९२; जंबू. २२,२९,३८; | दुस्सीय [दुःशीष्य हुष्ट शिष्य दुस्समसुसमाकाल [दुष्षमसुषमाकाल] भी । उत्त. १०६६; 'दुसमसुसमा' |दुस्सुय [दुःश्रुत] मिथ्याश्रुत भग. ९१२; आया. १४६; पण्हा. ११,३६; दुस्समा [दुष्पमा भवसपिए नो पायमो | दुस्सेज्जा [दुःशय्या] ६:५६145 वसति અને ઉત્સર્પિણીકાળનો બીજો આરો જેમાં दस. ३७७; તેવું Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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