Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 504
________________ (सुत्तंकसहिओ) ૫૦૩ दुक्खभागि [दुःखभागिन] हुना मागी || दुखुर [द्विखुर] ने पुरीछ वा पशु पण्हा. ८,१५; जंवू. ९६, सूय. ६८९; ठा, ३७७; दुक्खम [दुःक्षम] ५ ६४२, सहन ४२ जीवा. ४४; पन्न. १६१% भुरद उत्त. १६४४; उत्त. ७४३; | दुग [द्विक के दुक्खविवाग [दुःखविपाक अशुभ भनोवि- || सूय. ६०१; ठा. ९६१; અનુભાવ भग. ६७९, जंबू. ३०९; महाप. १२५; अनुओ. १६३; दुक्खसमुद्द [दुःखसमुद्र] हुन समुद्र ३५ || दुगंछणा [जुगुप्सा निंदनीय वस्तु, मेथी भत्त. ११५; થતી ધૃણા दुक्खसह [दुःखसह] हुन सन २२ आया. ५६; आया. ३१५; दस. ४१४; दुगंछा [जुगुप्सा] शुओ 6५२' दुक्खसेज्जा [दुःखशय्या] ६:५६य वसति- || पिंड. ५८५, उत्त. १३४८; જેના ચાર ભેદ છે दुगंछिय [जुगुप्सित] हिशत वस्तु, निंधवस्तु उत्त. ६४५; आव. ३६, ओह.७०० थी ७०२; दुक्खहेउ [दुःखहेतु मन तु३५ दुगंध [दुर्गन्ध] हुध, ५२ वास, नामभत्त. १६५; કર્મની એક પ્રકૃત્તિ-જેના ઉદયથી જીવ દુર્ગધ दुक्खावणया [दुःखापन] हुन लत्पत्ति પામે भग. १८१; दस. १७६; दुक्खि [दुःखिन्] दु: | दुगंधत्त [दुर्गन्धत्व] घि आया. ८३,१०८,५४४; भग. २८०; सूय. १५४,३१५,३४९; दुगुंछ [जुगुप्स्] शुगुप्सा ४२वी, धृ॥ ४२वी दुक्खिय [दुःखित] दुः५ पाभेट | तंदु. १०३ सूय. ९३; तंदु. २८,५४; || दुगुंछणा [जुगुप्सना भी 'दुगंछा' उत्त. १०१,५७४; उत्त. ७५२; दुक्खुत्तार [दुःखोत्तार] ४६:५शने ॥२ री दुगुंछणिज्ज [जुगुप्सनीय] धृ॥-हुगुप्सा ४२वा શકાય તે યોગ્ય पण्हा. ८,१५, तंदु. ११३; उत्त. ४२५, दुक्खुत्तो [द्विस्] मेवमत दुगुंछमाण [जुगुप्समान] गुप्सा तो आया. ३३८; ठा. ४५० आया. ७५; सूय. ५५१,५९९, सम. १६१; जीवा. २०३; ७५१,७६८,७७८,७८२; सूर. २०; चंद. २४; उत्त. १२८; निसी. ५९८,७८८; दुगुंछा [जुगुप्सा] शुभी 'दुगंछा' बुह. १३७,१३८; ठा. १८४,८८४; सम. ५१,६०; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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