Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 510
________________ (सुत्तंकसहिओ) વાંકુવાળી જાય તેવું ओह. ६८८; दुप्पउत्त [दुष्प्रयुक्त ] योग्य रीते प्रवर्तेल ठा. ९४५; ओह. ८०३; महाप. २७; दस. ५३८; दुष्पउत्तकाइया [दुष्प्रयुक्तकायिकी] योग्य रीते પ્રવર્તેલ કાયાની ક્રિયા आव. ७०; दुप्पच्चक्खाइ [दुष्प्रत्याख्यायिन] अयोग्य रीते અવિધિએ પચ્ચક્ખાણ કરનાર पन्न. ५२५; दसा. ३५; दुप्पउत्तकायकिरिया [दुष्प्रयुक्तकायक्रिया] दुखो दुष्पडियार [ दुष्प्रतिकार ] थेनी सहेलाईथी પ્રતિકાર-પ્રત્યુપકાર ન થઈ શકે તે '७५२' ठा. ६०; दुप्पउलिओसहिभक्खणया [दुष्पक्वौषधिभक्षण] અર્ધપક્વ કે અપક્વ ઔષધિ આદિનું ભક્ષણ કરવું, શ્રાવકનાસાતમા વ્રતનો એક અતિચાર उवा. ९; भग. ३३९; दुप्पच्चक्खाय [दुष्प्रत्याख्यात] योग्य रीते અવિધિએ કરેલ પચ્ચક્ખાણ सूय. ७९७; दुष्पचक्खाविय [दुष्प्रत्याख्यापित] '५२' भग. ३३९; सूय. ७९७; दुपजीवि [ दुष्प्रजीविन् ] दुःशी कवनार दस. ५०६; दुपट्ठ [दुष्प्रस्थित] जयोग्य रीते रजायेस उत्त. ७४९; दुप्पडिक्कंत [दुष्प्रतिक्रान्त] दुखो 'दुपडिक्कंत' विवा. ६,७,९,१३,१६,२०,२३, २५, २८, ३० थी ३४; दस. ५०६; दुप्पse (दुष्प्रतिग्रह] दृष्टिवाह सूत्र अंतर्गत् એક વસ્તુ सम. १६७,२२८; नंदी. १५०; दुप्पडितानंद [ दुष्प्रत्यानन्द] भुश्डेसीथी रीजे तेवी Jain Education International ૫૦૯ ठा. ३४९; दुष्पsिबूहण [ दुष्प्रतिबृंहक] वधारी शडाय नहीं તેવું आया. ९४; दुष्पडियानंद [ दुष्प्रत्यानन्द] दुखो 'दुप्पडितानंद' सूय. ६६७,८०४; विवा. ७,१३,१४,२०,२२,२९,३२; ठा. १४३; दुप्पडिलेहग [ दुष्प्रतिलेख्यक] भेनुं पडिलेहा न થઈ શકે તેવું दस. ९५,२८०; दुप्पडिलेहणा [दुष्प्रतिलेखना] अविधि मे પડિલેહણ કરવું आव. १९; दुप्पडिलेहिय [ दुष्प्रतिलिखित ] ४नुं पडिलेहए। બરાબર થયું નથી તે ओह. २०१; दुष्पडिवूहण [दुष्प्रतिवृंहण] ठेनी पालना भुश्डेल છે તે आया. ९४; दुप्पडोयार [ द्विप्रत्यावतार ] भेनो समावेश સ્થાનોમાં થાય તે राय. ५४; दुप्पणिहाण [ दुष्प्रणिधान ] हिंसाहि दुष्कृत्योमां ચિત્તની એકાગ્રતા ठा. १४७, २६८; | दुप्पणीयतर [दुष्प्रणीततर] युक्तिहीन, अयुक्त सूय. ८००; दुप्पणोलिय [ दुष्प्रणोद्य] भुकेलीथी प्रेरणा री શકાય તે सूय. १७०; For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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