Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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૫૦
पुष्फि, ८; दुज्जय [ दुर्जय] मुश्सीथी कृताय भेवु
उत्त. २६२,२६४, ४३३, ५३४, ५३५;
दुज्जात [दुर्यात्] भुलीथी ४वाय तेवु
आया. १६९;
दुज्जाय [दुर्जात] ष्टथी ४न्भेस पुष्फि. ८
दुज्झ [ दो ] होरवा योग्य
दस. ३१७;
दुज्झाय [दुर्ध्यात्] दुष्ट ध्यान रेल
आया. १६४;
दुट्ठ [दुष्ट] दुष्ट, राज
सूय. ६५६;
ठा. २१५,२१७, ४५३;
सम. ८७;
पण्हा. १६;
चउ. ५०;
गच्छा. ५४,५६;
बुह. ११२,११७; ओह. ९६;
आया. १३९,१५४;
पन्न. ३२४;
दुज्झोसिय [दुर्जोष्य ] भुश्डेसीथी जपाववा योग्य दुट्ठाणनिव्वत्तिय [द्विस्थाननिर्वर्तित] जे स्थानेथी
ઉપાર્જન કરેલ
नाया. ४५;
उव. २१;
तंदु. १४३;
वीर. १४;
दसा. १४, ४९;
दस. ३४८, ३४९;
उत्त. ९०१,९०४, १०७३; दुट्ठगाहा [दुष्टग्राह] हुष्ट मगर
तंदु. १४२;
दुट्ठनिसेज्जा [दुष्टनिषद्या] जराज वसति
पण्हा. ४५;
दुट्टपारंचिय [दुष्टपारञ्चिक] श्रेधथी } विषयथी દુષ્ટ એવો-ક્રોધ વડે ગુરુનો પણ ઘાત કરે અને વિષય વડે સાધ્વીના ભોગની ઇચ્છા કરે તે
ठा. २१५;
दुवाइ [दुष्टवादिन] जराज रीते जोसनार
उत्त. १४०८;
दुट्ठवायि [दुष्टवादिन्] दुस्रो '५२'
पण्हा. ११;
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आगमस कोसो
दुसीलायार [दुष्टशीलाचार] जराज शीस भने આચારવાળો
नाया. ४५;
दुट्ठस्स [दुष्ट- अश्व] जराज घोडो ओह. १६३;
दुट्ठाण [दुःस्थान] राजस्थान
ठा. १२५;
पन्न. ३२४;
rasa [ द्विस्थानपतित] जे स्थान पतित(रसविशेष), बेठासीयोरस
भग. ६६९;
ठा. १२५;
दुडु [दुष्ठु ] दुष्ट, योग्य
नाया. १६४;
निर. १५,
दुट्टुपडिच्छिय [दुष्टुप्रतीच्छित] ज्ञाननो खेड અતિચા૨-અયોગ્યને જ્ઞાન આપવું તે
आव. २९;
दुत [द्रुत] उतावणे गावं ते, गायननो खेड દોષ, ઉતાવળ
ठा. ६३४,६४०, ६४१; जीवा. १७९, अनुओ. २०१; दुतविलंबित [द्रुतविलम्बित] खेड हेवताई नाट વિધિ
जीवा. १७९; दुतितिक्ख [दुस्तितिक्ष] सहन न थाय तेवु
ठा. ४३०;
दुत्तर [दुस्तर] हु] तरी शाय ते
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आया. ५५०;
नाया. ३३;
उत्त. ६५०,१२६३;
दुत्तरभवोहं [दुस्तरभवोघ] दुःखे तरी शाय तेवो
ભવ સમુદ્ર
भत्त. १४७;
सूय. २४०; अंत. १३;
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