Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 503
________________ ૫૦૨ आगमसद्दकोसो માટે अंत. १३,२०,२७, अनुत्त. १२ ॥ १३३७,१३४१,१३४३ थी १३४६,१३५१, पण्हा.७,८,११,१२,१५,१६,२०,२३,२४,२८, | १३५७,१४४४,१४६३; ३४,३५,३७,३८,४५, अनुओ. २५६,३२९; विवा. ९,१०,३०,३२,३४,३८,४६, दुक्ख दुख्] ६:५ माप उवा. १७,२१,३४,३५,३८,३९,५०,५१,५४, सूय. ३१५,६४४,६४५; ५५,७६; राय. ७३,८१,८४, दसा. ३५, जीवा. ४९,१०५,१२४२,१२५,२६७, | दुक्खक्खय [दुःखक्षय] हु:नो क्षय पन्न. २५६,३४९,५००,५९४ थी ५९६,६२० ठा. २४९; भत्त. १३९; थी ६२२; ओह. ४६७; सूर. १७२; चंद. १७६; दुक्खक्खयट्ठ दुःखक्षयार्थी ६:५नो क्षय ६२वाने जंबू. १२,१३,२०,४०,४४,४६ थी ४८,५३, ७६,७८,८१,८८ थी ९०,१४०,१६७; ओह. ११४३; निर. १५,१९; दुक्खखव [दुःखक्षय ६:५५५वना२, हुपनो पुष्फि. ७; वण्हि . ३; ક્ષય કરનાર चउ. ५३ आउ. ४९; ठा. २४९, महाप. १२२, दुक्खखण [दुःखखाण] :पनी पा भत्त. ५,९०,९४,१०५; भत्त. १२३; तंदु. ३७,१६१; संथा. ९५,९८; दुक्खखम [दुःखक्षम हु:पने पमनार-सहन दसा. २०,३५,१०३ थी ११२; કરનાર आव. ३१; दस. १०,२९,३७७, आया. ५४८; ४९५,५०६,५१७,५२२; | दुक्खण [दुःखन] शुभो ‘दुक्ख' उत्त.८१,१५३,१६७,१६९,१७२,२०९,२१६, । सूय. ६६४,६६७,७०३; ४०९,४२०,४२९,४५४,४७३,४७४,४९२, दुक्खणया [दुःखन] दु:५३५ परिम ४९३,६२४,६२६,६२९,६४६,६४७,६५४, सूय. ७०३; ६५९,६७५,६८७,६८९,६९९,७०४,७१२, दुक्खत्त [दुःखत्व] दु:५५ ७३५ थी ७३९,७४२,९२६,१००७,१०१६, पत्र. ५५२; १०२७,१०४४,१०४७,१०५२,१०५५, दुक्खदंसि [दुःखदर्शिन हुने होनार ११११,१११३,१११६,११४१,११४९, आया. १३८; ११५४,११५७,११७१,११७५,११८७, दुक्खदोगच [दुःखदौर्गत्य] दुः५ सने हुति १२४७,१२५३,१२५४,१२६५,१२७१, १२७२,१२७६,१२७८ थी १२८०,१२८४, भत्त. १६७; १२८५,१२८९,१२९१ थी १२९३,१२९७, दुक्खनासणय [दुःखनाशनक] हुपनो नाश કરનાર १२९८,१३०२,१३०४ थी १३०६,१३१०, भत्त. ६३; १३११,१३१५,१३१७ थी १३१९,१३२३, दुक्खपरंपरा [दुःखपरम्परा] :मनी ५२५२। १३२४,१३२८,१३३० थी १३३२,१३३६, । २५ ।। आउ. २८; महाप. १७; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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