Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 487
________________ ४८६ आगमसद्दकोसो दसा. ४९; संथा. १०७,१२१; गच्छा. १२४; दाहिणावत्त [दक्षिणावर्ती भएमा नामावत, दिक्कोण [दिककोण] हिशाજમણો શંખ गणि. ६८; ठा. ३०८; दिक्ख [दीक्षJहीक्षा हेवा दाहिणिंद [दक्षिणेन्द्र] क्षिस हिशानी न्द्र गच्छा. १५; ठा. २६९; दिक्खा [दीक्षा] संसारत्याग, क्षा दाहिणिल्ल [दाक्षिणात्य क्षिहिशामा थनार, गच्छा. ८६; દક્ષિણ દિશાનું दिक्खाआयंक [दीक्षातङ्क] हाक्षानो मंत ठा. ३२७,३२९,४३८,५५९,६८२; गच्छा. ८६; सम. १६६,१६७; दिक्खित्ता [दीक्षित्वा] हामा मापाने नाया. ३७,१०३,१४५,१७९,२२०,२२६,२३३; गच्छा. १५; विवा. ३१; दिक्खिय [दीक्षित] ही सापेक्ष राय. १६,१७,४४; सूय. ७७०; जीवा. ८९,१४३,१४५,१४६,१५५,१५८, दिगिंछत्ता [क्षुधात सुपथी पीयेल १५९,१८०,१८६,१८९,१९१,२९४; आया. ३२७; पन्न. २०५,२१८,२२१,२६०,४४१; दिगिंछा [क्षुधा] भुष, मे. परिसर सूर. ९०,९१, चंद. ९४,९५; सम. ५२ - दसा. १०३ थी ११२; जंबू. १३,२१,४६,६१,७३ थी ७५,७७,७८, उत्त. ४९,५१; ९५,१०४,१२२,१६९,१७१,१७४,१८७, ।। दिगिंछापरिगत क्षुधापरिगत] 3383dl or २००,२२६,२२९,२३६; લાગેલ दाहिणिलवनसंड [दाक्षिणात्यवनखंड वनड उत्त. ५१; नाया. १४५; दिगिंछापरीसह [क्षुधापरीषह] भूप नाम दाहीण [दक्षिण ९ो 'दाहिण' પરીષહ, બાવીશ પરીષહમાંનો એકપરીષહ आया. ४१४ थी ४२०; सम, ५२; भग. ४१६; दिअंत दिगन्त हिशामोनो संत दसा. ४९; चउ. २०, दिगु [द्विगु/ मी 'दिउ' दिइ [ति पी मरवानी मश अनुओ. २४९; अनुत्त. १०; दिच्छ [६]ong दिउ [द्विगु द्विगु-समासनी मेह उत्त. ८४०; अनुओ. २४७; दिज्जमाण [दीयमान] मापतो, हान ४२तो दिउ [द्विज ग्राम आया. ३४७; सम, ५१, उत्त, ९९६; निसी. १२६ थी १२९,१३२,६६२,८६३ थी दिउत्तम [द्विजोत्तम] श्रेष्ठ प्राम। ८६६,१२९३ थी १२९५; उत्त. ९९६; दसा. ३; दस. ११० थी ११३ दित [ददत् मातुं उत्त. ३७१; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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