Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 488
________________ (सुत्तंकसहिओ) ४८७ दिज्जय [देयक] हेनार जीवा. १७९; जंबू, २४०; नाया. ९९ दिट्ठगाही [दिष्टग्राहिन्]३२भावेलवस्तुने । दिट्ट [दृष्ट] मेयर કરનાર आया. ३५,१४०,१४१,१४६,५०४; ओह, ७५५,७६०, सूय. १७६,५७३,६४७,६६५,७०२,७३७, दिट्ठधम्म [दृष्टधर्म धर्म सयोछते ८०६; ठा. ९२७; सूय. ५७३, नाया. १३,१५,१७,८७ थी ८९,१११,१४०, दिट्ठपह [६ष्टपथ] रो मोक्षमाहीयोछते १७६; __ आया. १००,११९; उवा. २५,२७,३०,३३,३६,४७; दिट्ठपुब [हष्टपूर्व] ५डे ये पण्हा. ३४,४५, नाया, ८६,८८,८९,९२,१७५,१७६,१८५; विवा. ६,१३,२०,३१; दिवपुव्वग्ग [दृष्टपूर्वक] पडे येत पन्न. १७८,१८३, जंबू. ९०; दसा. १४; चउ. ४६; गणि. १; दिद्रुपुब्बगता [६ष्टपूर्वकता] पठेदi taiyy निसी. ७७५,१२५९; दसा. १४; दसा. १०२,१०३, ओह, १५५; दिट्ठपोत्थय [६ष्टपुस्त]ोयेलपत्रा-४५३ दस. १४१,२३४,२७६,३७०,३९२; महानि. १०९; उत्त. १३३,४०६,५०४,६१९,८३०,१०९३, दिट्ठलाभिय [दृष्टलाभिकायतसने परियित १०९८; દાતાર પાસેથી વસ્તુની ગવેસણા કરનાર नंदी. १०४,१५७; सूय. ६७०; ठा. ४३०; दिट्ट [दुष्ट] हुष्ट,हुन पहा. ३४; उव. १९; भत्त. १४६; १६३,१६४; | दिवसार [दृष्टसार से ५२मार्थ छ ते दिट्ठ [दिष्ट] ३२भावेत જ્ઞાની आउ. १०; भत्त. ७७; भत्त. ३९; दिलै [दष्टम्] नेयु दिवसाहम्मव [दृष्टसाधर्म्यवत्] वस्तु से तंदु. ७४; તેના ઉપરથી તોન જેવી વસ્તુનું જ્ઞાન થવા दिटुंत [द्दष्टान्त दृष्टांत, २५ રૂપ, અનુમાનના એક પ્રકાર જેવું सूय. ७०१,७०३; सम. २१६,२२२; अनुओ. ३०१,३०५; नाया. १४५,२२०; पन्न. ४६९; दिट्ठा [दृष्टा] साक्षात्, धर्मसाधनाथी प्राप्त पुष्फि. ३,५,७; भत्त. १३७; થયેલ ओह, २५३; नंदी. १०६,१२०; महानि. ८३९; अ.नंदी. १; | दिट्ठाभट्ट [दृष्टाभाषित] ने-oneीने 3e अनुओ. १७,१८,३९,४०,५२,७०,८२,२९५, | એવું ३१०,३११,३१७,३२९; पुष्फि. ७; दिलृतिय [दान्तिक अभिनयनो मे 4.5t२ || दिट्टि [ष्टि] दृष्टि, न४२, नेत्रना शाति, ठा. ४०५; राय. २४,४२; || शान, सम४९, सभ्यरष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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