Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
जीवा. १६४, १६५, १६९,१७३ थी १७५, १७८ थी १८०, १८५, १८७,१९०, १९१, २९०;
पन्न. १९२, २०३, २०५, २१७,
जंबू. १४,३४, ३६, ५६, १२१, १२२, १२८, १२९, १३५,१३९,१४३, १५१, १६९, १७१, १९४;
दस. ३१६;
दसा. १०१;
अनुओ. २७०; तोलेउं [तोलयितुम्] तोल उरवा माटे
उत्त. ६५५;
तोस [तोषय् ] खुश २, संतुष्ट
दस. ४३०;
तोसग [तोषक] खुशी, खानंह, संतोष
पण्हा. १६;
तोसि [तोषित] संतोष पाभेल, खुश रेस
उत्त. ९३५;
त्ति [इति] समाप्ति सूर्य अव्यय
राय. ७;
चंद. ४;
नाया. ५;
पन्न. १;
आउ ६३;
भत्त. २०,७८;
गच्छा. ३२;
वीर. १३;
नंदी. २०; त्थिभग [स्तिभक ] ६ विशेष
महाप. ११५;
संथा. ५६;
देविं. ३०१;
पत्र. ८३;
त्थिमिय [स्तिमित] [स्थर, निश्चल
चंद. ४१;
पन्न. ८३;
त्थी [स्त्री] स्त्री, नारी
उत्त. २;
अनुओ. ९;
सूर. ३७;
जंबू. १,१३,५४,५५,६१,६८,१२१;
निर. १,५,९; वहि. ३;
पुष्पि. ९;
त्थिहु [स्तिभु ] as वनस्पति
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भग. २७८;
त्थीचोर [स्त्रीचोर] स्त्री-थोर
पण्हा. १५;
त्थूण [स्तु] स्तुति ४२वी, गुएाडीर्तन २ पिंड. ४९० ;
इअ आगमसद्दको तयारादिसद्दसंकलणोनाम तेवीसमो तरंगो समत्तो
-x-x
सूय. ४४७;
अंत. १३;
थ [थ] वाड्यासार, पाहपूर्ति अव्यय नाया. ९४;
थंडिल [ स्थण्डिल] संथारो ४२वा योग्य स्थण, સાધુને શૌચ કરવાની જગ્યા, ક્રોધ
--X-X-
[था
आया. २४६,२५२,३३५, ३६०,३९२, ४८२, ४८६,४९९ थी ५०१;
निसी. ३०५;
वव. ४९१,५७४ थी ५७६;
૪૪૧
नाया. १५९;
संथा. ६९;
ઊંચું કરવું पिंड. ४९७;
दसा. ४९,५१,५२;
थंडिल [स्थण्डिल] दुखो 'उपर '
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बुह. १२१,१२३;
जीय. ५३;
भग. ४०६;
थंब [ स्तम्ब] घासनो ४थ्थो, सुमजो ओह, ७७१;
थंभ [ स्तम्भ ] स्तब्धथयुं, निश्चल थपुं. डियारोध કરવો, અટકવું
ओह. १६१,२०४;
ठा. ८९५;
थंभ [ स्तम्भ ] हंडार, गर्व, भान, थांललो
आया. ३७१;
ठा. ३१२;
सम. १३०;
भग. ४६७,५४२,६५१, ६८०;
राय. १५;
दस. ४१५, ४६७; अनुओ. ३२२;
उत्त. ३३०;
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