Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
૪૫૯
पन्न. ५४६:
સમ્યકત્વને વિરાધવું તે
|| मेह सम.३;
पन्न. १६६,१७५,१९०; दसणविसंवादणाजोग [दर्शनविसंवादनोयोग] || दसणाया [दर्शनात्मा]सभ्यत्वगतमात्मा, સમ્યકત્વ પરત્વે ખોટો વિખવાદ કરવો તે - દર્શનાવરણીય કર્મ બાંધવાનો એક હેતુ વિશેષ ||
भग. ५६०; भग. ४२७;
दसणायार [दर्शनाचार] ist-sianरेशनना दंसणविसोहि [दर्शनविशुद्धि] सभ्यत्वनी
આઠ આચાર વિશુદ્ધિ-દશમાંની એક વિશુદ્ધિ
ठा. ८४,४७० सम. २१५; ठा. ९३५;
चउ. ३;
नंदी. १३९; दसणसंकिलेस [दर्शनसंक्लेश] सभ्यत्व संबंधे दसणाराहणा [दर्शनाराधना]सभ्यत्वनेमारावू સંક્લેશ, દશમાંનો એક સંક્લેશ
ठा. २०९;
भग. ४३१; ठा. ९३६;
दसणावरण [दर्शनावरण] सभ्यत्व-शनने दसणसंपन्न [दर्शनसम्पन्न सभ्यत्वयुत-सहित આવરક એક કર્મપ્રકૃતિ उव. १६, राय. ५३; सूय. ६०७;
सम. १२९ दसणसंपन्नया [दर्शनसम्पन्नता] शन-सभ्यत्व ||
दसा. २६; સહિત હોવું તે
उत्त. १३५९,१३६३; सम. ६१;
उत्त. १११२,११७४; || सणावरणंतय /दर्शनवरणानन्तक] शनाव२९५ दंसणसावग [दर्शनश्रावक] श्रावनी ५डेदी | કર્મનો અંત-ઘાત કરનાર પ્રતિમા
सूय. ६०७; दसा. ३७;
दसणावरणिज्ज [दर्शनावरणीय] शुभो ‘दसणादसणसावय [दर्शनश्रावक] शुभी '७५२' वरण' सम. १९; ____दसा. १०९;
ठा. २४०,२८२,६६६; दसणसुंदर [दर्शनसुन्दर] वाम सुंदर सम. १३,१३३; भत्त. १२०
पन्न. ५३५ थी ५३८; दसणसुंदरजणियमोह [दर्शनसुन्दरजनितमोह]सुंदर || उत्त. ११८५; દેખાવ જન્ય મોહ
दंसणि [दर्शनिन्] सभ्यत्वी, शनप्राप्त भत्त. १२०;
अनुओ. २३८; दसणसुद्ध [दर्शनशुद्ध] शुद्ध समाहिती | दंसणिंद [दर्शनेन्द्र] क्षायि समतिनो स्वामी संथा. ३६;
ठा. १२७; दसणसुद्धि [दर्शनशुद्धि] सभ्यत्वनी शुद्धि दंसणिज्ज [दर्शनीय सेवालाय ओह. १२;
नाया. २१;
उवा. २१; दंसणाभिगम [दर्शनाभिगम] ए। प्रत्ययि । | दंसणिया [दर्शनिका] ६शन ४२वा योग्य
અવધિજ્ઞાનથી વસ્તુનો નિર્ણય કરવો दसा. ५३; ठा. १७६,५४४;
दसणोवघाय [दर्शनोपघातासभ्यत्वनोधातदसणायरिय [दर्शनार्य]शनने माश्रिने मायनो || विराधना ४२वी ते
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