Book Title: Agamsaddakoso Part 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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૪૫૮
आगमसद्दकोसो
दंसणपायच्छित [दर्शनप्रायश्चित] शनन|| ठा. ११३;
सम. १००; અતિચારની શુદ્ધિ માટે પ્રાયશ્ચિત્ કરવું તે पन्न. ५३६,५३९,५४०; ठा. २१५,२७७;
अनुओ. १६१; दंसणपुरिस [दर्शनपुरुष] सभ्यत्ववान् पुरुष ।
|| दंसणमोहणिज्जया [दर्शनमोहनीय] शुभी '७५२' ठा. १३६;
भग. ४१८;
उत्त. १३७८; दसणपुलाय [दर्शनपुलाक] शनने नि:सार | दंसणरइ [दर्शनरति] शनमा प्रालि બનાવનાર પુલાક લબ્ધિવંત સાધુ
जंबू. २२९; ठा. ४८३; __ भग. ९०१;
|| दंसणरय [दर्शनरत] शनमा मनु२७ दंसणप्पहाण [दर्शनप्रधान] भुस्यहर्शन
नाया. १६५; उवा. २;
दसणरहिय [दर्शनरहित] सभ्यत्वहीन दसणबलिय [दर्शनबलिक] ६ सहित भत्त. ६६; पण्हा. ३४;
दंसणलद्धि [दर्शनलब्धि] शन-सभ्यत्वनी दसणबुद्ध [दर्शनबुद्ध] ६शन मोनीयन प्राप्ति
ક્ષયોપશમાદિથી તત્ત્વશ્રદ્ધા-રુચિ વડે બોધ | भग. ३९३; પામેલ
दसणलद्धिय [दर्शनलब्धिक] शन-सभ्यत्वनी ठा. ११२,१६४;
લબ્ધિવાળો दसणबोहि दर्शनबोधिनाशनमोडीनीयन। भग, ३९३; ક્ષયોપશમથી તત્વશ્રદ્ધાન્ પામનાર दंसणलूसि [दर्शनलुषिन्] सम्यक्त्वना दो ठा. ११२,१६४;
કરનાર दसणभट्ट [दर्शनभ्रष्ट] सभ्यत्वथा पतित आया. २०३; भत्त. ६५,६६;
दसणलोग [दर्शनलोक सभ्यत्वाशन ३५ दसणभेयणी [दर्शनभेदनी] समाउतने नारी લોક વિકથા
ठा. १६१; ठा. ६६९;
दसणवत्तिय [दर्शनप्रत्यय] शननिमित्ते, दसणमइल [दर्शनमलिन सभ्यत्वमा मलिनता। સમ્યક્ત્વ પ્રાપ્તિ હેતુથી હોવી તે
ठा. ६०;
जंवू. २२७; संथा. ३५;
दसणवावन्न [दर्शनव्यापन्न सभ्यत्व भी दंसणमूढ [दर्शनमूढ] शन-सभ्यत्वमा भूत। નાખેલ છે તેવા નિહ્નવ આદિ હોવી તે, મિથ્યાત્વ
देविं. १६८; ठा. ११२,१६४;
दसणवावण्णग [दर्शनव्यापनक] हुमो ७५२ दसणमोह [दर्शनमोह] हर्शन भोड, भोइनाय || पन्न. ५०७;
भनीप्रति विशेष सभ्य इत्वनी प्राप्तिमा || दंसणविनय [दर्शनविनय विनयनो में मेहઅંતરાયભૂત બને
સમ્યક્ત્વ રૂપ વિનય पण्हा. १७,२९,२०;
उव. २०; दसणमोहणिज्ज [दर्शनमोहनीय] शुभी '७५२' ।। दंसणविराहणा [दर्शनविराधना] र्शन
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