Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आगमप्रकाशन समिति ब्यावर से प्रकाशित है। इस प्रकार और भी कई जगह से हिन्दी,गुजराती अनुवाद प्रकाशित है।
__ मुनि मांगीलाल मुकुल का उत्तराध्ययन हिन्दी पद्यानुवाद भी जैन विश्वभारती द्वारा प्रकाशित है। डॉ सुदर्शन लाल जैन का 'उत्तराध्ययन सूत्र एक परिशीलन' वाराणसी से प्रकाशित है। इस प्रकार उत्तराध्ययन पर विपुल व्याख्यासाहित्य लिखा गया व हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओं में अनुवाद भी प्रकाशित हुए।
प्रतिभामर्ति पं. मुनि श्रीसन्तबालजी ने 'जैन दृष्टिए गीता' नामक ग्रन्थ में उत्तराध्ययन की तुलना भागवत गीता से की। कुछ विद्वानों ने उत्तराध्ययन की तुलना 'धम्मपद' के साथ की। (उत्तराध्ययन सूत्र, यु. मधुकर मुनि पृ. ९५)
कृतकार्यो के अवलोकन से ज्ञात हुआ कि विश्लेषणात्मक कार्य कम हुआ है। उत्तराध्ययन में जीवन के जो सतत स्पन्दनशील कण विद्यमान हैं, उन्हे एक सूत्र में पिरोकर व्यवस्थित रूप देने के लिए एक बड़े विद्वान की और इससे भी बड़े एक कलाकार की आवश्यकता है। काव्यभाषा के अनेक महत्त्वपूर्ण तत्त्वों का स्पर्श अभी अवशेष हैं। यहां शैलीविज्ञान की दृष्टि से उत्तराध्ययन के काव्यतत्त्वों को उभारने का प्रयत्न किया गया है।
उत्तराध्ययन एक अथाह सागर है और मेरी शक्ति एक तुम्बी के समान है। अतः मेरा यह प्रयास कितना सार्थक हो सका है, इसका निर्णय तो क्षीर-नीर विवेकी समीक्षक ही कर सकेगें। मैंने तो केवल अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार विषय को प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास किया है।
चराचर सृष्टि में सबका जीवन सापेक्ष हैं। सापेक्ष जीवनशैली के महत्त्वपूर्ण सूत्र है सहयोग, उदार वैचारिक दृष्टिकोण आदि। इस कार्य के लिए जिनसे, जहां से भी सहायता मिली उनके प्रति भीतर में अत्यन्त अहोभाव है, शब्द पूर्णतया उसकी अभिव्यक्ति में समर्थ नहीं। फिर भी सर्वप्रथम नतमस्तक हूं इस ग्रन्थ के प्रति, जिसमें अवगाहन कर मुझे बहुत कुछ पाने का सुअवसर मिला। श्रद्धाप्रणत हूं परमाराध्य आगम अनुसंधायक गुरूदेव श्री तुलसी के प्रति, जिनके विशद व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व की छाया में मुझे जीवन और जीवन की कला को समझने का अवसर मिला।
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