Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Author(s): Amitpragyashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati
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वृत्ति-दीपिका दीपिका
वि. सं. १६४३ वृत्ति अक्षरार्थ लवलेश टब्बा आदिचन्द्र या रायचन्द्र टब्बा पार्श्वचन्द्र, धर्मसिंह १८वीं शताब्दी वृत्ति मतिकीर्ति के शिष्य भाषा पद्यसार ब्रह्म ऋषि
वि. सं. १५९९ श्रीमज्जयाचार्य (वि. सं.१८६०-१९३८) ने उत्तराध्ययन के २९ अध्ययनों पर राजस्थानी भाषा में पद्य-बद्ध 'जोड़' की रचना की। स्पष्टीकरण के लिए यत्र-तत्र वार्तिक भी लिखे ।
उत्तराध्ययन के अंग्रेजी, गुजराती, हिन्दी भाषा में अनुवाद भी प्रकाशित हए हैं। जर्मन विद्वान डॉ. हरमन जैकोबी द्वारा उत्तराध्ययन का अंग्रेजी अनुवाद सन् १८९५ में ऑक्सफोर्ड से प्रकाशित हुआ। अंग्रेजी प्रस्तावना के साथ उत्तराध्ययन जार्ज शापेन्टियर उप्पशाला ने सन् १९२२ में प्रकाशित किया। सन् १९३८ में गोपालदास जीवाभाई पटेल ने गुजराती छायानुवाद प्रकाशित किया। सन् १९५२ में गुजरात विद्यासभा-अहमदाबाद से गुजराती अनुवाद टिप्पणों के साथ अठारह अध्ययन प्रकाशित हुए। वीर संवत् २४४६ में आचार्य अमोलकऋषिजी ने हिन्दी अनुवाद सहित उत्तराध्ययन का संस्करण निकाला। सन् १९३९ से १९४२ तक श्री आत्मारामजी ने जैनशास्त्रमाला कार्यालय लाहौर से उत्तराध्ययन पर हिन्दी में विस्तृत विवेचन प्रकाशित किया। पूज्य घासीलालजी की उत्तराध्ययन पर संस्कृत टीका हिन्दी, गुजराती अनुवाद के साथ जैनशास्त्रोद्धार समिति-राजकोट से प्रकाशित हुई (उत्तराध्ययन संपादक युवाचार्य श्री मधुकर मुनि, पृ. ९४)।
__ वाचना प्रमुख आचार्य श्री तुलसी के निर्देशन में संपादक-विवेचक आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा 'उत्तरज्झयणाणि' के दो भाग, मूलपाठ, संस्कृत छाया व सटिप्पण हिन्दी अनुवाद तथा 'उत्तराध्ययन एक समीक्षात्मक अध्ययन' भी जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा प्रकाशित है। युवाचार्य श्री मधुकर मुनि का मूल-अनुवाद-विवेचन-टिप्पण सहित उत्तराध्ययन सूत्र
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