Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 13
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र नारियल के वृक्षों के वन थे । उनकी जड़ें डाभ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से रहित थीं। उस समय भरतक्षेत्र में जहाँ-तहाँ अनेक सेरिका, नवमालिका, कोरंटक, बन्धुजीवक, मनोऽवद्य, बीज, बाण, कर्णिकार, कुब्जक, सिंदुवार, मुद्गर, यूथिका, मल्लिका, वासंतिका, वस्तुल, कस्तुल, शैवाल, अगस्ति, मगदंतिका, चंपक, जाती, नवनीतिका, कुन्द तथा महाजाती के गुल्म थे । वे रमणीय, बादलों की घटाओं जैसे गहरे, पंचरंगे फूलों से युक्त थे । वायु से प्रकंपित अपनी शाखाओं के अग्रभाग से गिरे हुए फूलों से वे भरतक्षेत्र के अति समतल, रमणीय भूमिभाग को सुरभित बना देते थे । भरतक्षेत्र में उस समय जहाँ-तहाँ अनेक पद्मलताएं यावत् श्यामलताएं थीं । वे लताएं सब ऋतुओं में फूलती थीं, यावत् कलंगियाँ धारण किये रहती थीं। उस समय भरतक्षेत्र में जहाँ-तहाँ बहुत सी वनराजियाँ-थीं । वे कृष्ण, कृष्ण आभायुक्त इत्यादि अनेकविध विशेषताओं से विभूषित थीं। पुष्प-पराग के सौरभ से मत्त भ्रमर, कोरंक, भंगारक, कुंडलक, चकोर, नन्दीमुख, कपिल, पिंगलाक्षक, करंडक, चक्रवाक, बतक, हंस आदि अनेक पक्षियों के जोड़े उनमें विचरण करते थे । वे वनराजियाँ पक्षियों के मधुर शब्दों से सदा प्रतिध्वनित रहती थीं। उन वनराजियों के प्रदेश कुसुमों का आसव पीने को उत्सुक, मधुर गुंजन करते हए भ्रमरियों के समूह से परिवत, दप्त, मत्त भ्रमरों की मधुर ध्वनि से मुखरित थे। वे वनराजियाँ भीतर की ओर फलों से तथा बाहर की ओर पुष्पों से आच्छन्न थीं । वहाँ के फल स्वादिष्ट होते थे । वहाँ का वातावरण नीरोग था । वे काँटों से रहित थीं । तरह-तरह के फूलों के गुच्छों, लत्ताओं के गुल्मों तथा मंडपों से शोभित थीं । मानो वे उनकी अनेक प्रकार की सुन्दर ध्वजाएं हों । वावड़ियाँ, पुष्करिणी, दीर्घिका-इन सब के ऊपर सुन्दर जालगृह बने थे । वे वनराजियाँ ऐसी तृप्तिप्रद सुगन्ध छोड़ती थीं, जो बाहर नीकलकर पुंजीभूत होकर बहुत दूर फैल जाती थीं, बड़ी मनोहर थीं । उन वनराजियों में सब ऋतुओं में खिलने वाले फूल तथा फलने वाले फल प्रचुर मात्रा में पैदा होते थे । वे सुरम्य, प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप थीं। सूत्र-३३ उस समय भरतक्षेत्र में जहाँ-तहाँ मत्तांग नामक कल्पवृक्ष-समूह थे । वे चन्द्रप्रभा, मणिशिलिका, उत्तम मदिरा, उत्तम वारुणी, उत्तम वर्ण, गन्ध, रस तथा स्पर्श युक्त, बलवीर्यप्रद सुपरिपक्व पत्तों, फूलों और फलों के रस एवं बहुत से अन्य पुष्टिप्रद पदार्थों के संयोग से निष्पन्न आसव, मधु, मेरक, सुरा और भी बहुत प्रकार के मद्य, तथाविध क्षेत्र, सामग्री के अनुरूप फलों से परिपूर्ण थे । उनकी जड़ें डाभ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से विशुद्धिरहित थीं। इसी प्रकार यावत् अनेक कल्पवृक्ष थे। सूत्र-३४ उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों का आकार-स्वरूप कैसा था ? गौतम ! उस समय वहाँ के मनुष्य बड़े सुन्दर, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप थे । उनके चरण-सुन्दर रचना युक्त तथा कछुए की तरह उठे हुए होने से मनोज्ञ प्रतीत होते थे इत्यादि वर्णन पूर्ववत ।। भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में स्त्रियों का आकार-स्वरूप कैसा था ? गौतम ! वे स्त्रियाँ-उस काल की स्त्रियाँ श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दरियाँ थीं । वे उत्तम महिलोचित गुणों से युक्त थीं । उन के पैर अत्यन्त सुन्दर, विशिष्ट प्रमाणोपेत, मृदुल, सुकुमार तथा कच्छपसंस्थान-संस्थित थे । पैरों की अंगुलियाँ सरल, कोमल, परिपुष्ट एवं सुसंगत थीं । अंगुलियों के नख समुन्नत, रतिद, पतले, ताम्र वर्ण के हलके लाल, शुचि, स्निग्ध थे । उन के जंघायुगल रोमरहित, वृत्त, रम्य-संस्थान युक्त, उत्कृष्ट, प्रशस्त लक्षण युक्त, अद्वेष्य थे । उन के जानु-मंडल सुनिर्मित, सुगूढ तथा अनुपलक्ष्य थे, सुदृढ स्नायु-बंधनों से युक्त थे । उन के ऊरु केले के स्तंभ जैसे आकार से भी अधिक सुन्दर, घावों के चिह्नों से रहित, सुकुमार, सुकोमल, मांसल, अविरल, सम, सदृश-परिमाण युक्त, सुगठित, सुजात, वृत्त, गोल, पीवर, निरंतर थे । उनके श्रोणिप्रदेश अखंडित द्यूत-फलक जैसे आकार युक्त प्रशस्त, विस्तीर्ण तथा भारी थे । विशाल, मांसल, सुगठित और अत्यन्त सुन्दर थे । उन के देह के मध्यभाग वज्ररत्न जैसे सुहावने, उत्तम मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 13

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