Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र होता । वे मनुष्य स्वभावतः यथेच्छ-विचरणशील होते हैं । क्या उस समय भरतक्षेत्र में असि, मषि, कृषि, वणिककला, पण्य अथवा व्यापार-कला होती है ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे मनुष्य असि आदि जीविका से विरहित होते हैं । भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में चाँदी, सोना, कांसी, वस्त्र, मणियाँ, मोती, शंख, शिला, रक्तरत्न, ये सब होते हैं ? हाँ गौतम ! ये सब होते हैं, किन्तु उन मनुष्यों के परिभोग में नहीं आते। क्या उस समय भरतक्षेत्र में राजा, युवराज, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति और सार्थवाह होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे मनुष्य ऋद्धि-वैभव तथा सत्कार आदि से निरपेक्ष होते हैं । भगवन्! क्या उस समय भरतक्षेत्र में दास, प्रेष्य, शिष्य, भूतक, भागिक, हिस्सेदार तथा कर्मकर होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे मनुष्य स्वामी-सेवक भाव से अतीत होते हैं । क्या उस समय भरतक्षेत्र में माता, पिता, भाई, बहिन, पत्नी, पुत्र, पुत्री तथा पुत्र-वधू ये सब होते हैं ? गौतम ! ये सब वहाँ होते हैं, परन्तु उन मनुष्यों का उनमें तीव्र प्रेम-बन्ध उत्पन्न नहीं होता । क्या उस समय भरतक्षेत्र में अरि, वैरिक, घातक, वधक, प्रत्यनीक अथवा प्रत्यमित्र होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे मनुष्य वैरानुबन्ध-रहित होते हैं-क्या उस समय भरतक्षेत्र में मित्र, वयस्य, साथी, ज्ञातक, संघाटिक, मित्र, सुहृद् अथवा सांगतिक होते हैं ? गौतम ! ये सब वहाँ होते हैं, परन्तु उन मनुष्यों का उनमें तीव्र राग-बन्धन उत्पन्न नहीं होता। भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में आवाह, विवाह, श्राद्ध-लोकानुगत मृतक-क्रिया तथा मृत-पिण्डनिवेदन होते हैं ? आयुष्मन् श्रमण गौतम ! ये सब नहीं होते । वे मनुष्य आवाह, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध, स्थालीपाक तथा मृत-पिंड-निवेदन से निरपेक्ष होते हैं ? क्या उस समय भरतक्षेत्र में इन्द्रोत्सव, स्कन्दोत्सव, नागोत्सव, यक्षोत्सव, कूपोत्सव, तडागोत्सव, द्रहोत्सव, नद्युत्सव, वृक्षोत्सव, पर्वतोत्सव, स्तूपोत्सव तथा चैत्योत्सव होते हैं ? गौतम ! ये नहीं होते । वे मनुष्य उत्सवों से निरपेक्ष होते हैं । क्या उस समय भरतक्षेत्र में नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विडंबक, कथक, प्लवक अथवा लासक हेतु लोग एकत्र होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । क्योंकि उन मनुष्यों के मन में कौतूहल देखने की उत्सुकता नहीं होती । भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में शकट, रथ, यान, युग्य, गिल्लि, थिल्लि, शिबिका तथा स्यन्दमानिका होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता, क्योंकि वे मनुष्य पादचारविहारी होते हैं । क्या उस समय भरतक्षेत्र में गाय, भैंस, बकरी, भेड़ होते हैं ? गौतम ! ये पशु होते हैं किन्तु उन मनुष्यों के उपयोग में नहीं आते । क्या उस समय भरतक्षेत्र में घोड़े, ऊंट, हाथी, गाय, गवय, बकरी, भेड़, प्रश्रय, पशु, मृग, वराह, रुरु, शरभ, चँवर, शबर, कुरंग तथा गोकर्ण होते हैं ? गौतम ! ये होते हैं, किन्तु उन मनुष्यों के उपयोग में नहीं आते । क्या उस समय भरतक्षेत्र में सिंह, व्याघ्र, वृक, द्वीपिक, ऋच्छ, तरक्ष, व्याघ्र, शृगाल, बिडाल, शुनक, कोकन्तिक, कोलशुनक ये सब होते हैं ? गौतम ! ये सब होते हैं, पर वे उन मनुष्यों को आबाधा, व्याबाधा नहीं पहुँचाते और न उनका छविच्छेद करते हैं। क्योंकि वे श्वापद प्रकृति से भद्र होते हैं। क्या उस समय भरतक्षेत्र में शाली, व्रीहि, गेहूँ, जी, यवयव, कलाय, मसूर, मूंग, उड़द, तिल, कुलथी, निष्पाव, चौला, अलसी, कुसुम्भ, कोद्रव, वरक, रालक, सण, सरसों, मूलक ये सब होते हैं ? गौतम ! ये होते हैं, पर उन मनुष्यों के उपयोग में नहीं आते । क्या उस समय भरतक्षेत्र में गर्त, दरी, अवपात, प्रपात, विषम, कर्दममय स्थान-ये सब होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । उस समय भरतक्षेत्र में बहुत समतल तथा रमणीय भूमि होती है । वह मुरज के ऊपरी भाग आदि की ज्यों एक समान होती है । क्या उस समय भरतक्षेत्र में स्थाणु, शाखा, ढूंठ, काँटे, तृणों का कचरा-ये होते हैं । गौतम ! ऐसा नहीं होता । वह इन सबसे रहित होती है । क्या उस समय भरतक्षेत्र में डांस, मच्छर, जूयें, लीखें, खटमल तथा पिस्सू होते हैं ? भगवन् ! ऐसा नहीं होता । वह भूमि डांस आदि उपद्रवविरहित होती है । क्या उस समय भरतक्षेत्र में साँप और अजगर होते हैं ? गौतम ! होते हैं, पर वे मनुष्यों के लिए आबाधाजनक इत्यादि नहीं होते । आदि प्रकृति से भद्र होते हैं। भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में डिम्ब, डमर, कलह, बोल, क्षार, वैर, महायुद्ध, महासंग्राम, महाशस्त्रपतन, महापुरुष-पतन तथा महारुधिर-निपतन ये सब होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे मनुष्य वैरानुबन्ध-से मुनि दीपरत्नसागर कृत् (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 15

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105