Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 48
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र सश्रीक, लालित्ययुक्त, हृदयगमनीय, हृदयप्रह्लादनीय, अनवरत अभिनन्दन किया, अभिस्तवन किया। १६००० देवों ने अगर आदि सुगन्धित पदार्थों एवं आमलक आदि कसैले पदार्थों से संस्कारित, अनुवासित अति सुकुमार रोओं वाले तौलिये से राजा का शरीर पोंछा । यावत् विभिन्न रत्नों से जुड़ा हुआ मुकुट पहनाया । तत्पश्चात् उन देवों ने दर्दर तथा मलय चन्दन की सुगन्ध से युक्त, केसर, कपूर, कस्तूरी आदि के सारभूत, सघनसुगन्ध-व्याप्त रस-राजा पर छिड़के । उसे दिव्य पुष्पों की माला पहनाई । उन्होंने उसको ग्रन्थिम, वेष्टिम, पूरिम तथा संघातिम मालाओं से विभूषित किया । उससे सुशोभित राजा कल्पवृक्ष सदृश प्रतीत होता था । इस प्रकार विशाल राज्याभिषेक समारोह में अभिषिक्त होकर राजा भरत ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया । उनसे कहादेवानुप्रियों ! हाथी पर सवार होकर तुम लोग विनीता राजधानी के तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों, चत्वरों तथा विशाल राजमार्गों पर यह घोषणा करो कि इस उपलक्ष्य में मेरे राज्य के निवासी बारह वर्ष पर्यन्त प्रमोदोत्सव मनाएं। इस बीच राज्य में कोई भी क्रय-विक्रय आदि सम्बन्धी शुल्क नहीं लिया जाएगा । ग्राह्य में किसी से यदि कुछ लेना है, उसमें खिंचाव न किया जाए, आदान-प्रदान का, नाप-जोख का क्रम बन्द रहे, राज्य के कर्मचारी, अधिकारी किसी के घर में प्रवेश न करें, दण्ड, कुदण्ड न लिये जाएं। राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर वे कौटुम्बिक पुरुष बहुत हर्षित तथा परितुष्ट हुए, उन्होंने विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार किया । वे शीघ्र ही हाथी पर सवार हुए, उन्होंने राजा के आदेशानुरूप घोषणा की। विराट् राज्याभिषेक-समारोह में अभिषिक्त राजा भरत सिंहासन से उठा । स्त्रीरत्न सुभद्रा आदि से संपरिवृत्त राजा अभिषेक-पीठ से उसके पूर्वी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरा | अभिषेक-मण्डप से बाहर निकला । जहाँ आभिषेक्य हस्तिरत्न था, वहाँ आकर आरूढ़ हुआ । राजा भरत के अनुगत बत्तीस हजार प्रमुख राजा अभिषेकपीठ से उसके उत्तरी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरे । राजा भरत का सेनापतिरत्न, सार्थवाह आदि अभिषेकपीठ से उसके दक्षिणी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरे । आभिषेक्य हस्तिरत्न पर आरूढ राजा के आगे मंगलप्रतीक रवाना किये गए । शेष पूर्ववत् । तत्पश्चात् राजा भरत स्नानादि परिसंपन्न कर भोजन-मण्डप में आया, सुखासन पर बैठा, तेले का पारणा किया। भोजन-मण्डप से निकल कर वह अपने श्रेष्ठ उत्तम प्रासाद में गया । वहाँ मृदंग बज रहे थे । यावत् राजा उनका आनन्द लेता हुआ सांसारिक सुखों का भोग करने लगा । प्रमोदोत्सव में बारह वर्ष पूर्ण हो गये । राजा भरत स्नान कर वहाँ से निकला, बाह्य उपस्थानशाला में आकर पूर्व की ओर मुँह कर सिंहासन पर बैठा । सोलह हजार देवों का यावत् सार्थवाह आदि का सत्कार किया, सम्मान किया । उन्हें विदा किया । विदा कर वह अपने श्रेष्ठ-महल में गया । वहाँ विपुल भोग भोगने लगा। सूत्र- १२३ चक्ररत्न, दण्डरत्न, असिरत्न तथा छत्ररत्न-ये चार एकेन्द्रिय रत्न आयुधगृहशाला में उत्पन्न हुए । चर्मरत्न, मणिरत्न, काकणीरत्न तथा नौ महानिधियाँ, श्रीगृह में, सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न तथा पुरोहितरत्न, ये चार मनुष्यरत्न, विनीता राजधानी में, अश्वरत्न तथा हस्तिरत्न, ये दो पञ्चेन्द्रियरत्न वैताढ्य पर्वत की तलहटी में और सुभद्रा स्त्रीरत्न उत्तर विद्याधरश्रेणी में उत्पन्न हुआ। सूत्र - १२४ राजा भरत चौदह रत्नों, नौ महानिधियों, १६००० देवताओं, ३२००० राजाओं, ३२००० ऋतुकल्याणिकाओं, ३२००० जनपदकल्याणिकाओं, बत्तीस-बत्तीस पात्रों, अभिनेतव्य क्रमोपक्रमों से अनुबद्ध, ३२००० नाटकों, ३६० सूपकारों, अठारह श्रेणी-प्रश्रेणीजनों, चौरासी लाख घोड़ों, चौरासी लाख हाथियों, चौरासी लाख रथों, छियानवै करोड़ मनुष्यों, ७२००० पुरवरों, ३२००० जनपदों, छियानवै करोड़ गाँवों, ९९००० द्रोणमुखों, ४८००० पत्तनों, २४००० कर्वटों, २४००० मडम्बों, २०००० आकरों, १६००० खेटों, १४००० संबाधों, छप्पन अन्तरोदकों तथा उनचास कुराज्यों, विनीता राजधानी का, समस्त भरतक्षेत्र का, अन्य अनेक माण्डलिक राजा, मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 48

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