Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र वक्षस्कार-४- 'क्षुद्र हिमवंत' सूत्र-१२७
भगवन् ! जम्बूद्वीप में चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप में चुल्ल हिमवान् नामक वर्षधर पर्वत हैमवतक्षेत्र के दक्षिण में, भरतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में बतलाया गया है । वह पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है । वह दो ओर से लवणसमुद्र को छुए हुए है । अपनी पूर्वी कोटि से पूर्वी लवणसमुद्र को तथा पश्चिमी कोटि से पश्चिमी लवणसमुद्र को । वह एक सौ योजन ऊंचा है । पच्चीस योजन भूगत है-वह १०५२-१२/१९ योजन चौड़ा है । उसकी बाहा-पूर्व-पश्चिम ५३५०१५११/१९ योजन लम्बा है । उसकी जीवा-पूर्व-पश्चिम लम्बी है । जीवा २४९३२ योजन एवं आधे योजन से कुछ कम लम्बी है । दक्षिण में उसका धनु पृष्ठ भाग परिधि की अपेक्षा से २५२३०-४/१९ योजन है । वह रुचक-संस्थान -संस्थित है-सर्वथा स्वर्णमय है । वह स्वच्छ, सुकोमल तथा सुन्दर है । वह दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं एवं दो वनखंड़ों से घिरा हुआ है । चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर बहुत समतल और रमणीय भूमिभाग है । वह आलिंगपुष्कर-के सदृश समतल है । वहाँ बहुत से वाणव्यन्तर देव तथा देवियाँ विहार करते हैं। सूत्र- १२८
उस अति समतल भूमिभाग के ठीक बीच में पद्मद्रह है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौडा है। उसकी लम्बाई १००० योजन तथा चौड़ाई ५०० योजन है । उसकी गहराई दश योजन है । वह स्वच्छ, सुकोमल,
य, तटयुक्त, सुन्दर एवं प्रतिरूप है । वह द्रह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा परिवेष्टित है। उस पद्मद्रह की चारों दिशाओं में तीन-तीन सीढ़ियाँ बनी हुई हैं । उन सीढ़ि से प्रत्येक के आगे तोरणद्वार बने हैं । वे नाना प्रकार की मणियों से सुसज्जित है । उस पद्मद्रह के बीचों बीच एक विशाल पद्म है । वह एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा है, आधा योजन मोटा है । दश योजन जल के भीतर गहरा है । दो कोश जल ऊंचा उठा हुआ है। इस प्रकार उस का कुछ विस्तार दश योजन से कुछ अधिक है । वह एक जगती-द्वारा सब ओर से घिरा है । उस प्रकार का प्रमाण जम्बूद्वीप के प्राकार तुल्य है । उस का गवाक्षसमूह-भी प्रमाणमें जम्बूद्वीप के गवाक्ष सदृश है।
वह पद्म के मूल वज्ररत्नमय है । कन्द-रिष्टरत्नमय है । नाल वैडूर्यरत्नमय है । बाह्य पत्र-वैडूर्यरत्न हैं । आभ्यन्तर पत्र-जम्बूनद स्वर्णमय हैं केसर-किञ्चल्क तपनीय रक्त स्वर्णमय हैं । पुष्करास्थिभाग विविध मणिमय हैं। कर्णिका स्वर्णमय है । यह कर्णिका आधा योजन लम्बी-चौड़ी है, सर्वथा स्वर्णमय है । स्वच्छ-उज्ज्वल है । उस कर्णिका के ऊपर अत्यन्त समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है । वह ढोलक पर मढ़े हुए चर्मपुट की ज्यों समतल है । उस भूमिभाग के ठीक बीच में विशाल भवन है । वह एक कोश लम्बा, आधा कोश चौड़ा तथा कुछ कम ऊंचा है, सैकड़ों खंभों से युक्त है, सुन्दर एवं दर्शनीय है । भवन के तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं । वे ५०० धनुष ऊंचे हैं, २५० धनुष चौड़े हैं तथा उनके प्रवेशमार्ग भी उतने ही चौड़े हैं । उन पर उत्तम स्वर्णमय छोटे-छोटे शिखर हैं । वे पुष्पमालाओं से सजे हैं। उस भवन का भीतरी भमिभाग बहत समतल तथा रमणीय है। वह ढोलक पर मढे चमडे की ज्यों समतल है । उस के ठीक बीचमें विशाल मणिपीठिका है । वह मणिपीठिका पाँच सौ धनुष लम्बी-चौड़ी तथा अढ़ाई सौ धनुष मोटी है, सर्वथा स्वर्णमय है, स्वच्छ है । उस मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल शय्या है।
वह पद्म दूसरे एक सौ आठ पद्मों से, जो ऊंचाई में, प्रमाण में-आधे हैं, सब ओर से घिरा हुआ है । वे पद्म आधा योजन लम्बे-चौड़े, एक कोश मोटे, दश योजन जलगत-तथा एक कोश जल से ऊपर ऊंचे उठे हुए हैं । यों जल के भीतर से लेकर ऊंचाई तक वे दश योजन कुछ अधिक है । उन पद्मों के मूल वज्ररत्नमय यावत् तथा कर्णिका कनकमय है । वह कर्णिका एक कोश लम्बी, आधा कोश मोटी, सर्वणा स्वर्णमय तथा स्वच्छ है । उस कर्णिका के ऊपर एक बहुत समतल, रमणीय, भूमिभाग है । जो नाना प्रकार की मणियों से सुशोभित हैं । उन मूल पद्म के वायव्यकोण में, उत्तर में तथा ईशानकोण में श्री देवी के सामानिक देवों के चार हजार पद्म हैं । उस के पूर्व
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद'
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