Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 59
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र जम्बूद्वीप के अन्तर्गत मन्दर पर्वत के उत्तर में अन्य जम्बूद्वीप में १२००० योजन जाने पर हैं । वे १२००० योजन लम्बी-चौड़ी हैं । उनकी परिधि कुछ अधिक ३७९४८ योजन है । प्रत्येक राजधानी आकार-से परिवेष्टित है- | वे प्राकार ३७|| योजन ऊंचे हैं । वे मूल में १२|| योजन, मध्य में ६। योजन तथा ऊपर तीन योजन आधा कोश चौड़े हैं | वे मूल में विस्तीर्ण-बीच में संक्षिप्त तथा ऊपर पतले हैं । वे बाहर वृत्त तथा भीतर से चौकोर प्रतीत होते हैं । वे सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं । नाना प्रकार के पंचरंगे रत्नों से निर्मित कपिशीर्षकों द्वारा सुशोभित हैं । वे कंगूरे आधा कोश ऊंचे तथा पाँच सौ धनुष मोटे हैं, सर्वरत्नमय हैं, उज्ज्वल हैं। यमिका राजधानियों के प्रत्येक पार्श्व में १२५-१२५ द्वार हैं । वे द्वार ६२|| योजन ऊंचे हैं । ३१। योजन चौड़े हैं । प्रवेश-मार्ग भी उतने ही प्रमाण के हैं । यमिका राजधानियों की चारों दिशाओं में पाँच-पाँच सौ योजन के व्यवधान से अशोकवन, सप्तवर्णवन, चम्पकवन तथा आम्रवन हैं । ये वन-खण्ड कुछ अधिक १२००० योजन लम्बे तथा ५०० योजन चौड़े हैं । प्रत्येक वन-खण्ड प्राकार द्वारा परिवेष्टित है । यमिका राजधानियों में से प्रत्येक में बहुत समतल सुन्दर भूमिभाग हैं । उन के बीचोंबीच दो प्रासाद-पीठिकाएं हैं । वे १२०० योजन लम्बी-चौड़ी हैं । उनकी परिधि ३७९५ योजन है । वे आधा कोश मोटी हैं । वे सम्पूर्णतः उत्तम जम्बूनद जातीय स्वर्णमय हैं, उज्ज्वल हैं । उनमें से प्रत्येक पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड द्वारा परिवेष्टित है। उसके बीचोंबीच एक उत्तम प्रासाद है । वह ६२|| योजन ऊंचा है। ३१। योजन लम्बा-चौड़ा है । प्रासादपंक्तियों में से प्रथम पंक्ति के प्रासाद ३१॥ योजन ऊंचे हैं। वे कुछ अधिक १५|| योजन लम्बे-चौड़े हैं । द्वितीय पंक्ति के प्रासाद कुछ अधिक १५|| योजन ऊंचे हैं । वे कुछ अधिक ७। योजन लम्बे-चौड़े हैं । तृतीय पंक्ति के प्रासाद कुछ अधिक ७|| योजन ऊंचे हैं, कुछ अधिक ३|| योजन लम्बे-चौड़े हैं । मूल प्रासाद के ईशान कोण में यमक देवों की सुधर्मा सभाएं हैं । वे सभाएं १२।। योजन लम्बी, ६। योजन चौड़ी तथा ९ योजन ऊंची हैं । सैकड़ों खंभों पर अवस्थित हैं । उन सुधर्मसभाओं की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं । वे दो योजन ऊंचे हैं, एक योजन चौड़े हैं । उनके प्रवेश-मार्गों का प्रमाण-भी उतना ही है। उन द्वारों में से प्रत्येक के आगे मुखमण्डप-हैं । वे १२|| योजन लम्बे, ६। योजन चौड़े तथा साधिक दो योजन ऊंचे हैं । प्रेक्षागृहों का प्रमाण मुखमण्डप सदृश हैं । मुखमण्डपमें अवस्थित मणिपीठिकाएं १ योजन लम्बीचौड़ी तथा आधा योजन मोटी हैं । वे सर्वथा मणिमय हैं | प्रेक्षागृह-मण्डपों के आगे जो मणिपीठिकाएं हैं, वे दो योजन लम्बी-चौड़ी तथा एक योजन मोटी हैं । वे सम्पूर्णतः मणिमय हैं। उनमें से प्रत्येक पर तीन-तीन स्तूप-हैं । वे स्तूप दो योजन ऊंचे, दो योजन लम्बे-चौड़े हैं वे शंख ज्यों श्वेत हैं । उन स्तूपोंकी चारों दिशामें चार मणिपीठिकाएं हैं। वे मणिपीठिका १ योजन लम्बी-चौड़ी तथा आधा योजन मोटी हैं । वहाँ स्थित जिनप्रतिमाका वर्णन पूर्वानुरूप है। वहाँ के चैत्यवृक्षों की मणिपीठिकाएं दो योजन लम्बी-चौड़ी और एक योजन मोटी हैं। उन चैत्यवृक्षों के आगे तीन मणिपीठिकाएं हैं । वे एक योजन लम्बी-चौड़ी तथा आधा योजन मोटी हैं। उनमें से प्रत्येक पर एक-एक महेन्द्रध्वजा है । वे ध्वजाएं साढ़े सात योजन ऊंची हैं और आधा कोश जमीन में गहरी गड़ी हैं । वे वज्ररत्नमय हैं, वर्तुलाकार हैं । उन सुधर्मा सभाओं में ६००० पीठिकाएं हैं । पूर्व में २००० पीठिकाएं, पश्चिम में २००० पीठिकाएं, दक्षिण में १००० पीठिकाएं तथा उत्तर में १००० पीठिकाएं हैं। उन सुधर्मासभाओं के भीतर बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग हैं । मणिपीठिकाएं हैं । वे दो योजन लम्बी-चौड़ी हैं तथा एक योजन मोटी है । उन मणिपीठिकाओं के ऊपर महेन्द्रध्वज के समान प्रमाणयुक्त-माणवक चैत्य-स्तंभ हैं । उसमें ऊपर के छह कोश तथा नीचे के छह कोश वर्जित कर बीच में साढ़े चार योजन के अन्तराल में जिनदंष्ट्राएं निक्षिप्त हैं । शयनीयों के-ईशान कोण में दो छोटे महेन्द्रध्वज हैं । उनका प्रमाण महेन्द्रध्वज जितना है । वे मणिपीठिका रहित हैं।। उनके पश्चिम में चोप्फाल नामक प्रहरण-कोश- हैं । वहाँ परिघरत्न-आदि शस्त्र रखे हुए हैं । उन सुधर्मा सभाओं के ऊपर आठ-आठ मांगलिक पदार्थ प्रस्थापित हैं । उनके ईशान कोण में दो सिद्धायतन हैं । जिनगृह सम्बन्धी वर्णन पूर्ववत् है, केवल इतना अन्तर है-इन जिन-गृहों में बीचों-बीच प्रत्येक में मणिपीठिका है । वे दो मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 59

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