Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 90
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र ७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - वक्षस्कार / सूत्र द्वीप में सूर्य उदयकाल, मध्याह्नकाल तथा अस्तमानकाल में सर्वत्र एक सरीखी ऊंचाई लिये होते हैं तो उदयकाल में दूर होते हुए भी निकट क्यों दिखता हैं, इत्यादि प्रश्न । गौतम! लेश्या के प्रतिघात से अत्यधिक दूर होने के कारण उदयस्थान से आगे प्रसृत न हो पाने से यों तेज या ताप के प्रतिहत होने के कारण सुखदृश्य होने के कारण दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं। मध्याह्नकाल में लेश्या के अभिताप से कष्टपूर्वक देखे जा सकने योग्य होने के कारण दूर दिखाई देते हैं । अस्तमानकालमें लेश्या के उदयकाल की ज्यों दूर होते हुए भी सूर्य निकट दिखाई देता हैं। सूत्र - २६४ , ! भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सूर्य अतीत क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं अथवा प्रत्युत्पन्न या अनागत क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम वे केवल वर्तमान क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं। भगवन् क्या वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते हैं या अस्पर्शपूर्वक ? गौतम! वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते हैं । वे गम्यमान क्षेत्र को अवगाढ कर अतिक्रमण करते हैं । वे उस क्षेत्र का अव्यवहित रूप में अवगाहन करते अतिक्रमण करते हैं । वे अणुरूप- अनन्तरावगाढ क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं, अणुबादररूप ऊर्ध्व क्षेत्र का, अधःक्षेत्र का और तिर्यक् क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं - वे साठ मुहूर्त्तप्रमाण मण्डलसंक्रमणकाल के आदि में मध्य में तथा अन्त में भी गमन करते हैं । वे स्पृष्ट- अवगाढ - अनन्तरावगाढ रूप उचित क्षेत्र में गमन करते हैं । वे आनुपूर्वीपूर्वक आसन्न क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं। वे नियमतः छह दिशाविषयक क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं। इस प्रकार वे अवभासित होते हैं- जिसमें स्थूलतर वस्तुएं दिख पाती हैं । इस प्रकार दोनों सूर्य छहों दिशाओं में उद्योत करते हैं, तपते हैं, प्रभासित होते हैं सूत्र २६५ भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्यों द्वारा अवभासन आदि क्रिया क्या अतीत क्षेत्र में, या प्रत्युत्पन्न - क्षेत्र में अथवा अनागत क्षेत्र में की जाती है ? गौतम ! अवभासन आदि क्रिया प्रत्युत्पन्न क्षेत्र में ही की जाती है । सूर्य अप तेज द्वारा क्षेत्र - स्पर्शन पूर्वक अवभासन आदि क्रिया करते हैं। वह अवभासन आदि क्रिया साठ मुहूर्त्तप्रमाण मण्डलसंक्रमणकाल के आदि में, मध्य में और अन्त में की जाती है । - सूत्र २६६ भगवन् ! जम्बूद्वीप में सूर्य कितने क्षेत्र को ऊर्ध्वभाग में, अधोभाग में तथा तिर्यक् भाग में तपाते हैं ? गौतम! ऊर्ध्वभाग में १०० योजन क्षेत्र को, अधोभाग में १८०० योजन क्षेत्र को तथा तिर्यक् भाग में ४७२६३२१/६० योजन क्षेत्र को अपने तेज से तपाते हैं - सूत्र- २६७ भगवन् ! मानुषोत्तर पर्वतवर्ती चन्द्र, सूर्य नक्षत्र एवं तारे ऊर्ध्वोपपन्न हैं? कल्पातीत हैं ? कल्पोपपन्न हैं, चारोपपन्न हैं, चारस्थितिक हैं, गतिरतिक हैं- या गति समापन्न हैं ? गौतम ! मानुषोत्तर ज्योतिष्क देव विमानोत्पन्न हैं, चारोपपन्न हैं, गतिरतिक हैं, गतिसमापन्न हैं। ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प के आकारमें संस्थित सहस्रोंयोजनपर्यन्त, चन्द्रसूर्यापेक्षया तापक्षेत्र युक्त, वैक्रियलब्धियुक्त, आभियोगिक कर्म करने में तत्पर, सहस्रों बाह्य परिषदों से संपरिवृत वे ज्योतिष्क देव नाट्य-गीत-वादन रूप त्रिविध संगीतोपक्रममें जोर-जोर से बजाये जाते वाद्योंसे उत्पन्न मधुर ध्वनि के साथ दिव्य भोग भोगते हुए, उच्च स्वर से सिंहनाद करते हुए, मुँह पर हाथ लगाकर जोर से पूत्कार करते कलकल शब्द करते हुए अच्छ-निर्मल, उज्ज्वल मेरु पर्वत की प्रदक्षिणावर्त मण्डल गति द्वारा प्रदक्षिणा करते रहते हैं। सूत्र - २६८ भगवन् ! उन ज्योतिष्क देवों का इन्द्र जब च्युत हो जाता है, तब इन्द्रविरहकाल में देव किस प्रकार काम चलाते हैं ? गौतम ! चार या पाँच सामानिक देव मिल कर इन्द्रस्थान का संचालन करते हैं । इन्द्र का स्थान कम एक मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र हिन्द- अनुवाद" Page 90

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