Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र
परिसमाप्त करता है । उस मास में सूर्य १२ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है । उस समय के अन्तिम दिन परिपूर्ण तीन पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है । वर्षाकाल के कार्तिक मास को तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं-अश्विनी, भरणी तथा कृत्तिका । अश्विनी नक्षत्र १४ रातदिन, भरणी नक्षत्र १५ रातदिन, तथा कृत्तिका नक्षत्र १ रातदिन में परिसमाप्त करता है । उस महीने में सूर्य १६ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है । उस महीने के अंतिम दिन ४ अंगुल अधिक तीन पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है।
___ चातुर्मास हेमन्तकाल के मार्गशीर्ष मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! तीन - कृतिका, रोहिणी तथा मृगशिर | कृत्तिका १४ अहोरात्र, रोहिणी १५ अहोरात्र तथा मृगशिर नक्षत्र १ अहोरात्र में परिसमाप्त करता है । उस महीने में सूर्य २० अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है । उस महीने के अन्तिम दिन ८ अंगुल अधिक तीन पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है । हेमन्तकाल के पौष मास को चार नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं-मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु तथा पुष्य । मृगशिर १४ रातदिन, आर्द्रा ८ रातदिन, पुनर्वसु ७ रातदिन तथा पुष्य १ रातदिन परिसमाप्त करता है । तब सूर्य २४ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है । उस महीने के अन्तिम दिन परिपूर्ण चार पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है । हेमन्तकाल के माघ मास को तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं-पुष्य, अश्लेषा तथा मघा । पुष्य १४ रातदिन, अश्लेषा १५ रातदिन तथा मघा १ रातदिन में परिसमाप्त करता है । तब सूर्य २० अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है । उस महीने के अंतिम दिन आठ अंगुल अधिक तीन पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है । हेमन्तकाल के- फाल्गुन मास को तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं-मघा, पूर्वाफाल्गुनी तथा उत्तराफाल्गुनी । मघा १४ रातदिन, पूर्वाफाल्गुनी १५ रातदिन तथा उत्तरा फाल्गुनी १ रातदिन में परिसमाप्त करता है । तब सूर्य सोलह अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है। उस महीने के अन्तिम दिन चार अंगुल अधिक तीन पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है।
भगवन् ! चातुर्मासिक ग्रीष्मकाल के-चैत्र मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? तीन - उत्तराफाल्गुनी, हस्त तथा चित्रा । उत्तराफाल्गुनी १४ रातदिन, हस्त १५ रातदिन तथा चित्रा १ रातदिन में परिसमाप्त करता है । तब सूर्य १२ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है । उस महीने के अन्तिम दिन परिपूर्ण तीन पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है । ग्रीष्मकाल के वैशाख मास को तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं-चित्रा, स्वाति तथा विशाखा । चित्रा १४ रातदिन, स्वाति १५ रातदिन तथा विशाखा १ रातदिन में परिसमाप्त करता है । तब सर्य आठ अंगल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनपर्यटन करता है। उस महीने के अन्तिम दिन आठ अंगल अधिक दो पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है । ग्रीष्मकाल के ज्येष्ठ मास को चार नक्षत्र परिसमाप्त करते हैंविशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा तथा मूल । विशाखा १४ रातदिन, अनुराधा ८ रातदिन, ज्येष्ठा ७ रातदिन तथा मूल १ रातदिन में परिसमाप्त करता है । तब सूर्य चार अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है । उस महीने के अन्तिम दिन चार अंगुल अधिक दो पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है । ग्रीष्मकाल के आषाढ मास को तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं-मूल, पूर्वाषाढा तथा उत्तराषाढा | मूल १४ रातदिन, पूर्वाषाढा १५ रातदिन तथा उत्तराषाढा १ रातदिन में परिसमाप्त करता है । सूर्य तब वृत्त, समचौरस, संस्थानयुक्त, न्यग्रोधपरिमण्डल-नीचे से संकीर्ण, प्रकाश्य वस्तु के कलेवर के सदृश आकृतिमय छाया से युक्त अनुपर्यटन करता है । उस महीने के अन्तिम दिन परिपूर्ण दो पद पुरुषछायायुक्त पोरीसी होती है । सूत्र-३३३
योग, देवता, तारे, गोत्र, संस्थान, चन्द्र-सूर्य-योग, कुल, पूर्णिमा, अमावस्या, छाया-इनका वर्णन उपर्युक्त
सूत्र-३३४
सोलह द्वार क्रमशः इसी प्रकार है-चन्द्र तथा सूर्य के तारा विमानों के अधिष्ठातृ-देवों, चन्द्र-परिवार, मेरु से
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद'
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