Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र
के साथ एक अहोरात्र में उनके २६/३७ भाग परिमित योग होता है। इससे अभिजित चन्द्रयोग काल ९-२७/६७ मुहूर्त तय होता है । शतभिषक्, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति एवं ज्येष्ठा-इन छह नक्षत्रों का चन्द्रमा के साथ ४५ मुहूर्त योग रहता है । तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी तथा विशाखा-इन छह नक्षत्रों का चन्द्रमा के साथ ४५ मुहूर्त योग रहता है। बाकी पन्द्रह नक्षत्रों का चन्द्रमा के साथ ३० मुहर्त पर्यन्त योग रहता है। सूत्र - ३२४-३२८
भगवन् ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र सूर्य के साथ कितने अहोरात्र पर्यन्त योगयुक्त रहता है ? गौतम ! ४ अहोरात्र एवं ६ मुहर्त पर्यन्त । इन गाथाओं द्वारा नक्षत्र-सूर्ययोग जानना । अभिजित नक्षत्र का सूर्य के साथ ४ अहोरात्र तथा ६ मुहूर्त पर्यन्त योग रहता है । शतभिषक्, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति तथा ज्येष्ठा-इन नक्षत्रों का सूर्य के साथ ६ अहोरात्र तथा २१ मुहूर्त पर्यन्त योग रहता है । तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी एवं विशाखा-इन नक्षत्रों का सूर्य के साथ २० अहोरात्र और ३ मुहूर्त पर्यन्त योग रहता है । बाकी के पन्द्रह नक्षत्रों का सूर्य के साथ १३ अहोरात्र तथा १२ मुहूर्त पर्यन्त योग रहता है। सूत्र- ३२९
भगवन् ! कुल, उपकुल तथा कुलोपकुल कितने हैं ? गौतम ! कुल बारह, उपकुल बारह तथा कुलोपकुल चार हैं । बारह कुल-धनिष्ठा, उत्तरभाद्रपदा, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिर, पुष्य, मघा, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, मूल तथा उत्तराषाढाकुल । सूत्र-३३०
__ जिन नक्षत्रों द्वारा महीनों की परिसमाप्ति होती है, वे माससदृश नामवाले नक्षत्र कुल हैं । जो कुलों के अधस्तन होते हैं, कुलों के समीप होते हैं, वे उपकुल कहे जाते हैं । वे भी मास-समापक होते हैं । जो कुलों तथा उपकुलों के अधस्तन होते हैं, वे कुलोपकुल कहे जाते हैं। सूत्र - ३३१
बारह उपकुल-श्रवण, पूर्वभाद्रपदा, रेवती, भरणी, रोहिणी, पुनर्वसु, अश्लेषा, पूर्वफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, ज्येष्ठा तथा पूर्वाषाढा उपकुल ।
चार कुलोपकुल-अभिजित, शतभिषक्, आर्द्रा तथा अनुराधा कुलोपकुल ।
भगवन् ! पूर्णिमाएं तथा अमावस्याएं कितनी हैं ? गौतम ! बारह पूर्णिमाएं तथा बारह अमावस्याएं हैं, जैसे -श्राविष्ठी, प्रौष्ठपदी, आश्वयुजी, कार्तिकी, मार्गशीर्षी, पौषी, माघी, फाल्गुनी, चैत्री, वैशाखी, ज्येष्ठामूली तथा आषाढी।
भगवन् ! श्रावणी पूर्णमाणी के साथ कितने नक्षत्रों का योग होता है ? गौतम ! अभिजित, श्रवण तथा धनिष्ठा का । भाद्रपदी पूर्णिमा के साथ शतभिषक्, पूर्वभाद्रपदा तथा उत्तरभाद्रपदा-नक्षत्रों का योग होता है । आसौजी पूर्णिमा के साथ रेवती तथा अश्विनी-नक्षत्रों का, कार्तिक पूर्णिमा के साथ भरणी तथा कृत्तिका का, मार्गशीर्षी के साथ रोहिणी तथा मगशिर का, पौषी पर्णिमा के साथ आर्द्रा, पनर्वस तथा पुष्य का, साथ अश्लेषा और मघा का, फाल्गनी पूर्णिमा के साथ पूर्वाफाल्गनी तथा उत्तराफाल्गनी का, चैत्री पूर्णिमा के स हस्त एवं चित्रा का, वैशाखी पूर्णिमा के साथ स्वाति और विशाखा का, ज्येष्ठामूली पूर्णिमा के साथ अनुराधा, ज्येष्ठा एवं मूल का तथा आषाढी पूर्णिमा के साथ पूर्वाषाढा और उत्तराषाढा नक्षत्रों का योग होता है।
भगवन् ! श्रावणी पूर्णिमा के साथ क्या कुल का, उपकुल का या कुलोपकुल नक्षत्रों का योग होता है ? गौतम ! तीनों का योग होता है । कुलयोग में धनिष्ठा, उपकुलयोग में श्रवण तथा कुलोपकुलयोग में अभिजित नक्षत्र का योग होता है | भाद्रपदी पूर्णिमा के साथ कुल, उपकुल तथा कुलोपकुल का योग होता है । कुलयोग में उत्तरभाद्रपदा, उपकुलयोग में पूर्वभाद्रपदा तथा कुलोपकुलयोग में शतभिषक् नक्षत्र का योग होता है । आसौजी पूर्णिमा के
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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