Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र साथ कुल का और उपकुल का योग होता है । कुलयोग में अश्विनी और उपकुलयोग में रेवती नक्षत्र का योग होता है । कार्तिकी पूर्णिमा के साथ कुल और उपकुल का योग होता है, कुलयोग में कृत्तिका और उपकुलयोग में भरणी नक्षत्र का योग होता है । मार्गशीर्षी पूर्णिमा के साथ कुलयोग में मृगशिर और उपकुलयोग में रोहिणी नक्षत्र का योग होता है । आषाढी पूर्णिमा तक का वर्णन वैसा ही है । इतना अन्तर है-पौषी तथा ज्येष्ठामूली पूर्णिमा के साथ कुल, उपकुल तथा कुलोपकुल का योग होता है । बाकी की पूर्णिमाओं के साथ कुल एवं उपकुल का योग होता है।
श्रावणी अमावस्या के साथ कितने नक्षत्रों का योग होता है ? गौतम ! अश्लेषा तथा मघा-का योग होता है। भाद्रपदी अमावस्या के साथ पूर्वाफाल्गुनी तथा उत्तराफाल्गुनी-का, आसौजी अमावस्या के साथ हस्त एवं चित्राका, कार्तिकी अमावस्या के साथ स्वाति और विशाखा का, मार्गशीर्षी अमावस्या के साथ अनुराधा, ज्येष्ठा तथा मूल का, पौषी अमावस्या के साथ पूर्वाषाढा तथा उत्तराषाढा-का, माघी अमावस्या के साथ अभिजित, श्रवण और धनिष्ठा-का, फाल्गुनी अमावस्या के साथ शतभिषक् पूर्वभाद्रपदा एवं उत्तरभाद्रपदा-का, चैत्री अमावस्या के साथ रेवती और अश्विनी-का, वैशाखी अमावस्या के साथ भरणी तथा कृत्तिका-का, ज्येष्ठामूली अमावस्या के साथ रोहिणी एवं मृगशिर का और आषाढी अमावस्या के साथ आर्द्रा, पुनर्वसु तथा पुष्य नक्षत्रों का योग होता है।
भगवन ! श्रावणी अमावस्या के साथ क्या कल का, उपकल का या कलोपकल का योग होता है? गौतम! कुल और उपकुल का योग होता है, कुलयोग में मघा और उत्तराफाल्गुनी और उपकुलयोग में पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का योग होता है । मार्गशीर्षी अमावस्या के साथ कुलयोग में मूल, उपकुलयोग में ज्येष्ठा तथा कुलोपकुलयोग में अनुराधा नक्षत्र का योग होता है । माघी, फाल्गुनी तथा आषाढी अमावस्या के साथ कुल, उपकुल एवं कुलोपकुल का योग होता है, बाकी की अमावस्याओं के साथ कुल एवं उपकुल का योग होता है।
भगवन् ! क्या जब श्रवण नक्षत्र से युक्त पूर्णिमा होती है, तब क्या तत्पूर्ववर्तिनी अमावस्या मघा नक्षत्रयुक्त होती है ? और जब पूर्णिमा मघा नक्षत्रयुक्त होती है तब क्या तत्पश्चाद् भाविनी अमावस्या श्रवण नक्षत्रयुक्त होती है? गौतम ! ऐसा ही होता है । जब पूर्णिमा उत्तरभाद्रपदा नक्षत्रयुक्त होती है, तब तत्पश्चात् भाविनी अमावस्या उत्तरफाल्गुनी नक्षत्रयुक्त होती है । जब पूर्णिमा उत्तरफाल्गुनी नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र युक्त होती है । जब पूर्णिमा अश्विनी नक्षत्रयुक्त होती है, तब पश्चाद्वर्तिनी अमावस्या चित्रा नक्षत्रयुक्त होती है। जब पूर्णिमा चित्रा नक्षत्रयुक्त होती है, तो अमावस्या अश्विनी नक्षत्रयुक्त होती है । जब पूर्णिमा कृत्तिका नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या विशाखा नक्षत्रयुक्त होती है । जब पूर्णिमा विशाखा नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या कृत्तिका नक्षत्रयुक्त होती है । जब पूर्णिमा मृगशिर नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या ज्येष्ठामूल नक्षत्रयुक्त होती है। जब पूर्णिमा पुष्य नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या पूर्वाषाढा नक्षत्रयुक्त होती है । जब पूर्णिमा पूर्वाषाढा नक्षत्रयुक्त होती है, तो अमावस्या पुष्य नक्षत्रयुक्त होती है। सूत्र-३३२
भगवन् ! चातुर्मासिक वर्षाकाल के श्रावण मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! चार - उत्तराषाढा, अभिजित, श्रवण तथा धनिष्ठा । उत्तराषाढा नक्षत्र श्रावण मास के १४ अहोरात्र, अभिजित नक्षत्र ७ अहोरात्र, श्रवण नक्षत्र ८ अहोरात्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र १ अहोरात्र परिसमाप्त करता है। उस मास में सूर्य चार अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण परिभ्रमण करता है । उस मास के अन्तिम दिन चार अंगुल अधिक दो पद पुरुषछायाप्रमाण पौरुषी होती है।
भगवन् ! वर्षाकाल के भाद्रपद मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! चार - धनिष्ठा, शतभिषक्, पूर्वभाद्रपदा तथा उत्तरभाद्रपदा । धनिष्ठ नक्षत्र १४ अहोरात्र, शतभिषक् नक्षत्र ७ अहोरात्र, पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र ८ अहोरात्र तथा उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र १ अहोरात्र परिसमाप्त करता है । उस महीने में सूर्य आठ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है । वर्षाकाल के आश्विन मास को तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं-उत्तराभाद्रपदा, रेवती तथा अश्विनी । उत्तराभाद्रपदा १४ रातदिन, रेवती नक्षत्र १५ रातदिन तथा अश्विनी नक्षत्र एक रातदिन मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 98