Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र सूत्र-३५६
नक्षत्रों के अधिदेवता-इस प्रकार हैं-अभिजित के ब्रह्मा, श्रवण के विष्णु, धनिष्ठा के वसु, शतभिषक् के वरुण, पूर्वभाद्रपदा के अज, उत्तरभाद्रपदा के वृद्धि, रेवती के पूषा, अश्विनी के अश्व, भरणी के यम, कृत्तिका के अग्नि, रोहिणी के प्रजापति, मृगशिर के सोम, आर्द्रा के रुद्र, पुनर्वसु के अदिति, पुष्य के बृहस्पति और अश्लेषा के अधिदेवता सर्प हैं । तथासूत्र - ३५७
मघा के पिता, पूर्वफाल्गुनी के भग, उत्तरफाल्गुनी के अर्यमा, हस्त के सविता, चित्रा के त्वष्टा, स्वाति के वायु, विशाखा के इन्द्राग्नी, अनुराधा के मित्र, ज्येष्ठा के इन्द्र, मूल के निर्ऋति, पूर्वाषाढा के आप तथा उत्तराषाढा के अधिदेवता विश्वे हैं। सूत्र-३५८
यह संग्रहणी गाथाएं हैं। सूत्र-३५९
भगवन् ! चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा ताराओं में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य तथा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! चन्द्र और सूर्य तुल्य हैं । वे सबसे कम हैं । उनसे नक्षत्र संख्येय गुण हैं । नक्षत्रों से ग्रह संख्येय गुने हैं । ग्रहों से तारे संख्येय गुने हैं। सूत्र-३६०
भगवन् ! जम्बूद्वीप में जघन्य तथा उत्कृष्ट कितने तीर्थंकर हैं ? गौतम ! जघन्य चार तथा उत्कृष्ट चौंतीस तीर्थंकर होते हैं । जम्बूद्वीप में चक्रवर्ती कम से कम चार तथा अधिक से अधिक तीस होते हैं । जितने चक्रवर्ती होते हैं, उतने ही बलदेव होते हैं, वासुदेव भी उतने ही होते हैं । जम्बूद्वीप में निधि-रत्न ३०६ होते हैं । उसमें कम से कम ३६ तथा अधिक से अधिक २७० निधि-रत्न यथाशीघ्र परिभोग-उपयोग में आते हैं। सूत्र - ३६१
भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने सौ पञ्चेन्द्रिय-रत्न होते हैं ? २१० हैं । उसमें कम से कम २८ और अधिक से अधिक २१० पञ्चेन्द्रिय-रत्न यथाशीघ्र परिभोग में आते हैं। सूत्र-३६२
भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने सौ एकेन्द्रिय रत्न होते हैं ? २१० हैं । उसमें कम से कम २८ तथा अधिक से अधिक २१० एकेन्द्रिय-रत्न यथाशीघ्र परिभोग में आते हैं।
भगवन् ! जम्बूद्वीप की लम्बाई-चौड़ाई, परिधि, भूमिगत गहराई, ऊंचाई कितनी है ? गौतम ! जम्बूद्वीप की लम्बाई-चौड़ाई १,००,००० योजन तथा परिधि ३,१६,२२७ योजन ३ कोश १२८ धनुष कुछ अधिक १३|| अंगुल है। इसकी भूमिगत गहराई १००० योजन, ऊंचाई कुछ अधिक ९९,००० योजन तथा भूमिगत गहराई और ऊंचाई दोनों मिलाकर कुछ अधिक १,००,००० योजन हैं। सूत्र-३६३
भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप पृथ्वी-परिणाम है, अप्-परिणाम है, जीव-परिणाम है, पुद्गलपरिणाम है ? गौतम! पृथ्वी, जल, जीव तथा पुद्गलपिण्डमय भी है । भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सर्वप्राण, सर्वजीव, सर्वभूत, सर्वसत्त्व-ये सब पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक तथा वनस्पतिकायिक के रूप में पूर्वकाल में उत्पन्न हुए हैं ? हाँ, गौतम ! वे अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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