Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 93
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र ७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वक्षस्कार / सूत्र वायव्य कोण में उदित होकर ईशान कोण में अस्त होते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। भगवन्! जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा ईशान कोण में उदित होकर दक्षिण- आग्नेय कोण में अस्त होते हैं- इत्यादि वर्णन पूर्ववत् जान लेना । सूत्र - २७८ भगवन् ! संवत्सर कितने हैं ? गौतम! संवत्सर पाँच हैं- नक्षत्र संवत्सर, युग-संवत्सर, प्रमाण संवत्सर, लक्षण-संवत्सर तथा शनैश्वर-संवत्सर । नक्षत्र-संवत्सर कितने प्रकार का है? बारह प्रकार का, श्रावण, भाद्रपद, आसोज यावत् आषाढ । अथवा बृहस्पति महाग्रह बारह वर्षों की अवधि में जो सर्व नक्षत्रमण्डल का परिसमापन करता है - वह भी नक्षत्र - संवत्सर है । भगवन् ! युग-संवत्सर कितने प्रकार का है ? गौतम! पाँच प्रकार का, चन्द्र-संवत्सर, चन्द्र-संवत्सर, अभिवर्द्धित-संवत्सर, चन्द्र-संवत्सर तथा अभिवर्द्धित - संवत्सर । प्रथम चन्द्र - संवत्सर के चौबीस पर्व, द्वितीय चन्द्रसंवत्सर के चौबीस पर्व, तृतीय अभिवृद्धित-संवत्सर के छब्बीस पर्व, चौथे चन्द्र-संवत्सर के चौबीस तथा पाँचवें अभिवर्द्धित-संवत्सर के छब्बीस पर्व हैं । पाँच भेदों में विभक्त युग-संवत्सर के पर्व १२४ होते हैं । भगवन् ! प्रमाण-संवत्सर कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का नक्षत्र संवत्सर, चन्द्र-संवत्सर, ऋतु-संवत्सर, आदित्य संवत्सर तथा अभिवर्द्धित-संवत्सर लक्षण संवत्सर कितने प्रकार का है ? पाँच प्रकार कासूत्र २७९ जिसमें कृत्तिका आदि नक्षत्र समरूप में मासान्तिक तिथियों से योग करते हैं, जिसमें ऋतुएं समरूप में परिणत होती हैं, जो प्रचुर जलयुक्त हैं, वह समक-संवत्सर हैं । सूत्र २८० जब चन्द्र के साथ पूर्णमासी में विषम-नक्षत्र का योग होता है, जो कटुक, कष्टकर, विपुल वर्षायुक्त होता है, वह चन्द्र-संवत्सर है। - सूत्र २८१ जिसमें विषम काल में वनस्पति अंकुरित होती है, अन्-ऋतु में पुष्प एवं फल आते हैं, जिसमें सम्यक्वर्षा नहीं होती, वह कर्म-संवत्सर है । - सूत्र - २८२ जिसमें सूर्य, पृथ्वी, चल, पुष्प एवं फल-रस प्रदान करता है, जिसमें थोड़ी वर्षा से ही धान्य सम्यक् रूप में निष्पन्न होता है-अच्छी फसल होती है, वह आदित्य-संवत्सर है । सूत्र - २८३ जिसमें क्षण, लव, दिन, ऋतु, सूर्य के तेज से तप्त रहते हैं, जिसमें निम्न स्थल जल-पूरित रहते हैं, वह अभिवर्द्धित संवत्सर है । सूत्र - २८४, २८५ भगवन् ! शनैश्चर संवत्सर कितने प्रकार का है ? अठ्ठाईस प्रकार का १. अभिजित २ श्रवण, ३. धनिष्ठा, ४. शतभिषक्, ५. पूर्वा भाद्रपद, ६. उत्तरा भाद्रपद, ७. रेवती, ८. अश्विनी, ९. भरिणी, १०. कृत्तिका, ११. रोहिणी यावत् तथा २८. उत्तराषाढा । अथवा शनैश्चर महाग्रह तीस संवत्सरों में समस्त नक्षत्र-मण्डल का समापन करता है-वह काल शनैश्चर-संवत्सर है । - सूत्र - २८६-२८८ भगवन् ! प्रत्येक संवत्सर के कितने महीने हैं ? गौतम ! बारह महीने, उनके लौकिक एवं लोकोत्तर दो प्रकार के नाम । लौकिक नाम- श्रावण, भाद्रपद यावत् आषाढ । लोकोत्तर नाम इस प्रकार हैं- १. अभिनन्दित, २. मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति)" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद' Page 93

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