Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 69
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र परिधि चुल्लहिमवान् पर्वत के समान है। वहाँ पद्मोत्तर देव निवास करता है। उसकी राजधानी-ईशान कोण में है। नीलवान् नामक दिग्हस्तिकूट मन्दर पर्वत के-आग्नेय कोण में तथा पूर्व दिशागत शीता महानदी के दक्षिण में हैं । वहाँ नीलवान् देव निवास करता है । उसकी राजधानी-आग्नेय कोण में है । सुहस्ती नामक दिग्हस्तिकूट मन्दर पर्वत के-आग्नेय कोण में तथा दक्षिण-दिशागत शीतोदा महानदी के पूर्व में है । वहाँ सुहस्ती देव निवास करता है। उसकी राजधानी-आग्नेय कोण में है । अंजनगिरि नामक दिग्हस्तिकूट मन्दर पर्वत के-नैर्ऋत्य कोण में तथा दक्षिण -दिशागत शीतोदा महानदी के पश्चिम में है । अंजनगिरि नामक अधिष्ठायक देव है । राजधानी-नैर्ऋत्य को में है । कुमुद नामक विदिशागत हस्तिकूट मन्दर पर्वत के-नैर्ऋत्य कोण में तथा पश्चिम-दिग्वर्ती शीतोदा महानदी के दक्षिण में है। वहाँ कुमुद देव निवास करता है । राजधानी-नैर्ऋत्य कोण में है । पलाश नामक विदिग्हस्तिकूट मन्दर पर्वत के-वायव्य कोण में एवं पश्चिम दिग्वर्ती शीतोदा महानदी के उत्तर में है । पलाश देव निवास करता है । राजधानीवायव्य कोण में है। अवतंस नामक विदिग्हस्तिकूट मन्दर पर्वत के-वायव्य कोण तथा उत्तर दिग्गत शीता महानदी के पश्चिम में है । अवतंस देव निवास करता है । राजधानी-वायव्य कोण में है । रोचनगिरि नामक दिग्हस्तिकूट मन्दर पर्वत के-ईशान कोण में और उत्तर दिग्गत शीता महानदी के पूर्व में है । रोचनागिरि देव निवास करता है। राजधानी-ईशान कोण में है। सूत्र - १९७ भगवन् ! नन्दनवन कहाँ है ? गौतम ! भद्रशालवन के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से पाँच सौ योजन ऊपर जाने पर है । चक्रवालविष्कम्भ-के सब ओर से समान, विस्तार की अपेक्षा से वह ५०० योजन है, गोल है । उसका आकार वलय-के सदृश है, सघन नहीं है, मध्य में वलय की ज्यों शुषिर है । वह मन्दर पर्वतों को चारों ओर से परिवेष्टित किये हुए है । नन्दनवन के बाहर मेरु पर्वत का विस्तार ९९५४-६/१९ योजन है । बाहर उसकी परिधि कुछ अधिक ३१४७९ योजन है । भीतर उसका विस्तार ८९४४-६/१९ योजन है । उसकी परिधि २८३१६-८/१९ योजन है । वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से परिवेष्टित है । वहाँ देव-देवियाँ आश्रय लेते हैं-मन्दर पर्वत के रूप में एक विशाल सिद्धायतन है । ऐसे चारों दिशाओं में चार सिद्धायतन हैं । विदिशाओं में पुष्करिणियाँ हैं । नन्दनवन में कितने कूट हैं ? गौतम ! नौ, नन्दनवनकूट, मन्दरकूट, निषधकूट, हिमवत्कूट, रजतकूट, रुचककूट, सागरचित्रकूट, वज्रकूट तथा बलकूट । भगवन् ! नन्दनवनकूट कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत पर पूर्व दिशावर्ती सिद्धायतन के उत्तर में, ईशान कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के दक्षिण में है। सभी कूट ५०० योजन ऊंचे हैं । नन्दनवनकूट पर मेघंकरा देवी निवास करती है। उसकी राजधनी-ईशानकोण में है। इन दिशाओं के अन्तर्गत पूर्व दिशावर्ती भवन के दक्षिण में, आग्नेय कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के उत्तर में मन्दरकूट पर पूर्व में मेघवती राजधानी है । दक्षिण दिशावर्ती भवन के पूर्व में, आग्नेयकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पश्चिम में निषधकूट पर सुमेघा देवी है । दक्षिण में उसकी राजधानी है । दक्षिण दिशावर्ती भवन के पश्चिम में, -नैर्ऋत्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पूर्व में हैमवतकूट पर हेममालिनी देवी है । उसकी राजधानी दक्षिण में है । पश्चिम दिशावर्ती भवन के दक्षिण में, -नैर्ऋत्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के उत्तर में रजतकूट पर सुवत्सा देवी है । पश्चिम में उसकी राजधानी है । पश्चिमदिग्वर्ती भवन के उत्तर में, वायव्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के दक्षिण में रुचक कूट पर वत्समित्रा देवी निवास करती है। पश्चिम में उसकी राजधानी है। उत्तरदिग्वर्ती भवन के पश्चिम में, वायव्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पूर्व में सागरचित्र कूट पर वज्रसेना देवी निवास करती है । उत्तर में उसकी राजधानी है । उत्तरदिग्वर्ती भवन के पूर्व में, -ईशानकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पश्चिम में वज्रकूट पर बलाहका देवी निवास करती है । उसकी राजधानी उत्तर में है । बलकूट कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के ईशान कोण में नन्दनवन के अन्तर्गत है । उसका प्रमाण, विस्तार हरिस्सहकूट सदृश है । इतना अन्तर है-उसका अधिष्ठायक बल देव है। उसकी राजधानी-ईशान कोण में है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 69

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