Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 70
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र सूत्र-१९८ भगवन् ! सौमनसवन कहाँ है ? गौतम ! नन्दनवन के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से ६२५०० योजन ऊपर जाने पर है। वह चक्रवाल-विष्कम्भ से पाँच सौ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार का है। वह मन्दर पर्वत को चारों ओर से परिवेष्टित किये हुए है। वह पर्वत से बाहर ४२७२-८/१९ योजन विस्तीर्ण है। बाहर उसकी परिधि १३५११-६/१९ योजन है । भीतरी भाग में ३२७२-८/१९ योजन विस्तीर्ण है । पर्वत के भीतरी भाग से संलग्न उसकी परिधि १०३४९-३/१९ योजन है । वह एक पद्मवरवेदिका तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है । वह वन काले, नीले आदि पत्तों से, लताओं से आपूर्ण है। उनकी कृष्ण, नील आभा द्योतित है। वहाँ देव-देवियाँ आश्रय लेते हैं। उसमें आगे शक्रेन्द्र तथा ईशानेन्द्र के उत्तम प्रासाद हैं। सूत्र - १९९ भगवन् ! पण्डकवन कहाँ है ? गौतम ! सोमनसवन के बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग से ३६००० योजन ऊपर जाने पर मन्दर पर्वत के शिखर पर है । चक्रवाल विष्कम्भ से वह ४९४ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार जैसा उसका आकार है । वह मन्दर पर्वत की चूलिका को चारों ओर से परिवेष्टित कर स्थित है। उसकी परिधि कुछ अधिक ३१६२ योजन है । वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा घिरा है । वह काले, नीले आदि पत्तों से युक्त है । देव-देवियाँ वहाँ आश्रय लेते हैं । पण्डकवन के बीचों-बीच मन्दर चूलिका है । वह चालीस योजन ऊंची है । मूल में बारह योजन, मध्य में आठ योजन तथा ऊपर चार योजन चौड़ी है । मूल में उसकी परिधि कुछ अधिक ३७ योजन, बीच में कुछ अधिक २५ योजन तथा ऊपर कुछ अधिक १२ योजन है । वह मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त तथा ऊपर पतली है । उसका आकार गाय के पूँछ के सदृश है । वह सर्वथा वैडूर्य रतनमय है-वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा चारों ओर से संपरिवृत्त है। ऊपर बहुत समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है । उसके बीच में सिद्धायतन है । वह एक कोश लम्बा, आधा कोश चौड़ा, कुछ कम एक कोश ऊंचा है, सैकड़ों खम्भों पर टिका है । उस सिद्धायतन की तीन दिशाओं में तीन दरवाजे हैं । वे दरवाजे आठ योजन ऊंचे हैं । वे चार योजन चौड़े हैं । उनके प्रवेश-मार्ग भी उतने ही हैं । उस (सिद्धायतन) के सफेद, उत्तम स्वर्णमय शिखर हैं । उसके बीचों बीच एक विशाल मणिपीठिका है । वह आठ योजन लम्बी-चौड़ी है, चार योजन मोटी है, सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है । उस मणिपीठिका के ऊपर देवासन है । वह आठ योजन लम्बा-चौड़ा है, कुछ अधिक आठ योजन ऊंचा है । जिनप्रतिमा, देवच्छन्दक, धूपदान आदि का वर्णन पूर्वानुरूप है । मन्दर पर्वत की चूलिका के पूर्व में पण्डकवन में पचास योजन जाने पर एक विशाल भवन आता है। शक्रेन्द्र एवं ईशानेन्द्र वहाँ के अधिष्ठायक देव हैं। सूत्र-२०० भगवन् ! पण्डकवन में कितनी अभिषेक शिलाएं हैं ? गौतम ! चार, - पाण्डुशिला, पाण्डुकम्बलशिला, रक्तशिला तथा रक्तकम्बलशिला । पण्डकवन में पाण्डुशिला कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के पूर्व में पण्डकवन के पूर्वी छोर पर है । वह उत्तर-दक्षिण लम्बी तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ी है । उसका आधार अर्ध चन्द्र के आकार-जैसा है । वह ५०० योजन लम्बी, २५० योजन चौड़ी तथा ४ योजन मोटी है । वह सर्वथा स्वर्णमय है, स्वच्छ है, पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड द्वारा चारों ओर से संपरिवृत्त है | उस पाण्डुशिला के चारों ओर चारों दिशाओं में तीन-तीन सीढ़ियाँ है । उस पाण्डुशिला पर बहुत समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है । उस पर देव आश्रय लेते हैं । उस भूमिभाग के बीच में उत्तर तथा दक्षिण में दो सिंहासन हैं । वे ५०० धनुष लम्बे-चौड़े और २५० धनुष वहाँ जो उत्तर दिग्वर्ती सिंहासन है, वहाँ बहत से भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवदेवियाँ कच्छ आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरो का अभिषेक करते हैं । वहाँ जो दक्षिण दिग्वर्ती सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति, यावत् वैमानिक देव-देवियाँ वत्स आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 70

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