Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 80
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र जन्म महोत्सव मनाऊंगा, अतः आप भयभीत मत होना ।' यों कहकर वह तीर्थंकर की माता को अवस्वापिनी निद्रा में सूला देता है । तीर्थंकर-सदृश प्रतिरूपक विकुर्वणा करता है । शक्र फिर पाँच शक्रों की विकुर्वणा करता है-एक शक्र भगवान् तीर्थंकर को हथेलियों के संपुट द्वारा उठाता है, एक छत्र धारण करता है, दो चँवर डुलाते हैं, एक हाथ में वज्र लिये आगे चलता है । तत्पश्चात् देवेन्द्र देवराज शक्र, अनेक भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क, वैमानिक देवदेवियों से घिरा हुआ, सब प्रकार ऋद्धि से शोभित, उत्कृष्ट, त्वरित देव-गति से चलता हुआ, जहाँ मन्दरपर्वत, पण्डकवन, अभिषेक-शिला एवं अभिषेक-सिंहासन हैं, वहाँ आता है, पूर्वाभिमुख हो सिंहासन पर बैठता है। सूत्र-२३०-२३३ उस काल, उस समय हाथ में त्रिशूल लिये, वृषभ पर सवार, सुरेन्द्र, उत्तरार्धलोकाधिपति, अठ्ठाईस लाख विमानों का स्वामी, निर्मल वस्त्र धारण किये देवेन्द्र, देवराज ईशान मन्दर पर्वत पर आता है। शेष वर्णन सौधर्मेन्द्र शक्र के सदृश है । अन्तर इतना है-घण्टा का नाम महाघोषा है । पदातिसेनाधिपति का नाम लघुपराक्रम है, विमानकारी देव का नाम पुष्पक है। उसका निर्याण मार्ग दक्षिणवर्ती है, उत्तरपूर्ववर्ती रतिकर पर्वत है। वह भगवान् तीर्थंकर को वन्दन करता है, नमस्कार करता है, उनकी पर्युपासना करता है । अच्युतेन्द्र पर्यंत बाकी के इन्द्र भी इसी प्रकार आते हैं, उन सबका वर्णन पूर्वानुरूप है। इतना अन्तर है- यथा सौधर्मेन्द्र शक्र के ८४०००, ईशानेन्द्र के ८००००, सनत्कुमारेन्द्र के ७२०००, माहेन्द्र के ७००००, ब्रह्मेन्द्र के ६००००, लान्तकेन्द्र के ५००००, शुक्रेन्द्र के ४००००, सहस्रारेन्द्र के ३००००, आनत-प्रणत-कल्प-द्विकेन्द्र के २०००० तथा आरण-अच्युत-कल्प-द्विकेन्द्र के १०००० सामानिक देव हैं । सौधर्मेन्द्र के ३२ लाख, ईशानेन्द्र के २८ लाख, सनत्कुमारेन्द्र के १२ लाख, ब्रह्मलोकेन्द्र के ४ लाख, लान्त-केन्द्र के ५००००, शुक्रेन्द्र के ४००००, सहस्रारेन्द्र के ६००००, आनत-प्राणत-के ४०० तथा आरण-अच्युत-के ३०० विमान होते हैं। सूत्र - २३४, २३५ पालक, पुष्पक, सौमनस, श्रीवत्स, नन्दावर्त, कामगम, प्रीतिगम, मनोरम, विमल तथा सर्वतोभद्र ये यानविमानों की विकुर्वणा करनेवाले देवों के अनुक्रम से नाम हैं । सौधर्मेन्द्र, सनत्कुमारेन्द्र, ब्रह्मलोकेन्द्र, महाशुक्रेन्द्र तथा प्राणतेन्द्र की सुघोषा घण्टा, हरिनिगमेषी पदाति-सेनाधिपति, उत्तरवर्ती निर्याण-मार्ग, दक्षिण-पूर्ववर्ती रतिकर पर्वत है । ईशानेन्द्र, माहेन्द्र, लान्तकेन्द्र, सहस्रारेन्द्र तथा अच्युतेन्द्र की महाघोषा घण्टा, लघुपराक्रम पदातिसेनाधिपति, दक्षिणवर्ती निर्याण-मार्ग तथा उत्तर-पूर्ववर्ती रतिकर पर्वत है । इन्द्रों के जितने-जितने सामानिक देव होते हैं, अंगरक्षक देव उनसे चार गुने होते हैं । सबके यान-विमान एक-एक लाख योजन विस्तीर्ण होते हैं तथा उनकी ऊंचाई स्व-स्व-विमान-प्रमाण होती है। सबके महेन्द्र ध्वज एक-एक हजार योजन विस्तीर्ण होते हैं । शक्र के अतिरिक्त सब मन्दर पर्वत पर समवसृत होते हैं, भगवान् को वन्दन-नमन करते हैं, पर्युपासना करते हैं । सूत्र-२३६ उस काल, उस समय चमरचंचा राजधानी में, सुधर्मासभा में, चमर नामक सिंहासन पर स्थित असुरेन्द्र, असुरराज चमर अपने ६४००० सामानिक देवों, ३३ त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, सपरिवार पाँच अग्रमहिषियों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति देवों, ६४००० अंगरक्षक देवों तथा अन्य देवों से संपरिक्त आता है । उसके पदातिसेनाधिपति का नाम द्रुम है, घण्टा ओधस्वरा है, विमान ५०००० योजन विस्तीर्ण है, महेन्द्र ध्वज ५०० योजन विस्तीर्ण है, विमानकारी आभियोगिक देव है । बाकी वर्णन पूर्वानुरूप है । उस काल, उस समय असुरेन्द्र, असुरराज बलि उसी तरह मन्दर पर्वत पर समवसृत होता है । उसके सामानिक देव ६०००० हैं, २४०००० आत्मरक्षक देव हैं, महाद्रुम पदातिसेनाधिपति हैं, महौघस्वरा घण्टा है। शेष वर्णन जीवाभिगम अनुसार समझना । इसी प्रकार धरणेन्द्र आता है । उसके सामानिक देव ६००० हैं, अग्रमहिषियाँ छह हैं, २४००० अंगरक्षक देव हैं, मेघस्वरा घण्टा है, भद्रसेन पदाति-सेनाधिपति है । विमान २५००० योजन विस्तीर्ण है । महेन्द्रध्वज का मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 80

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