Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 56
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र - ७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार / सूत्र भगवन् ! हरिवर्षक्षेत्र का आकार, भाव, प्रत्यवतार केसा है ? गौतम ! उसमें अत्यन्त समतल तथा रमणीय भूमिभाग है । वह मणियों तथा तृणों से सुशोभित है । हरिवर्षक्षेत्र में जहाँ तहाँ छोटी-छोटी वापिकाएं आदि हैं । अवसर्पिणी काल के सुषमा नामक द्वितीय आरक का वहाँ प्रभाव है- । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! हरिवर्षक्षेत्र में विकटापाती नामक वृत्तवैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! हरि या हरिसलिला नामक महानदी के पश्चिम में, हरिकान्ता महानदी के पूर्व में, हरिवर्ष क्षेत्र के बीचोंबीच विकटापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत है । उसकी चौड़ाई आदि शब्दापाती समान का है । इतना अन्तर है- वहाँ अरुण देव है । वहाँ विद्यमान कमल आदि के वर्ण, आभा, आकार आदि विकटापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत के-से हैं । दक्षिण में उसकी राजधानी है । भगवन् ! हरिवर्षक्षेत्र नाम किस कारण पड़ा ? गौतम ! वहाँ मनुष्य रक्तवर्णयुक्त हैं, कतिपय शंख-खण्ड के सदृश श्वेत हैं । वहाँ परम ऋद्धिशाली, पल्योपमस्थितिक-हरिवर्ष देव निवास करता है। इस कारण वह हरिवर्ष कहलाता है । सूत्र - १३८ भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् निषध नामक वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! महाविदेहक्षेत्र के दक्षिण में, हरिवर्षक्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत है । वह पूर्व-पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में चौड़ा है। वह दो ओर लवणसमुद्र का स्पर्श करता है । वह ४०० योजन ऊंचा है, ४०० कोस जमीन में गहरा है । वह १६८४२-२/१९ योजन चौड़ा है । उसकी बाहा-२०१६५२।।/१९ योजन लम्बी है। उत्तर में उसकी जीवा ९४१५६ - २ / १९ योजन लम्बाई लिये है । दक्षिण की ओर स्थित उसके धनुपृष्ठ की परिधि १२४३४६-९/१९ योजन है । उसका रुचक- जैसा आकार है । वह सम्पूर्णतः तपनीय स्वर्णमय है, स्वच्छ है । दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो वनखण्डों द्वारा सब ओर से घिरा है । निषध वर्षधर पर्वत के ऊपर एक बहुत समतल तथा सुन्दर भूमिभाग है, जहाँ देव-देवियाँ निवास करते हैं । उस भूमिभाग में ठीक बीच में एक तिगिंछद्रह ग्रह है । वह पूर्व-पश्चिम लम्बा है, उत्तर-दक्षिण चौड़ा है । वह ४००० योजन लम्बा २००० योजन चौड़ा तथा १० योजन जमीन में गहरा है । वह स्वच्छ, स्निग्ध तथा रजतमय तटयुक्त है। उस तिगिंछद्रह के चारों ओर तीन-तीन सीढ़ियाँ बनी हैं। शेष वर्णन पद्मद्रह के समान है। परम ऋद्धिशालिनी, एक पल्योपम के आयुष्य वाली धृति देवी वहाँ निवास करती है । उसमें विद्यमान कमल आदि के वर्ण, प्रभा आदि तिगिंच्छ-परिमल-के सदृश हैं । अतएव वह तिगिंछद्रह कहलाता है । सूत्र - १३९ उस तिगिंछद्रह के दक्षिणी तोरण से हरिसलिला महानदी निकलती है । वह दक्षिण में उस पर्वत पर ७४२१-१/१९ योजन बहती है । घड़े के मुँह से निकलते पानी की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक प्रपात में गिरती है । उस समय उसका प्रवाह कुछ अधिक ४०० योजन होता है । शेष वर्णन हरिकान्ता महानदी समान है । नीचे जम्बूद्वीप की जगती को विदीर्ण कर वह आगे बढ़ती है । ५६००० नदियों से आपूर्ण वह महानदी पूर्वी लवण समुद्र में मिल जाती है । शेष कथन हरिकान्ता महानदी समान है । तिगिंछद्रह के उत्तरी तोरण से शीतोदा महानदी निकलती है । वह उत्तर में उस पर्वत पर ७४२१-१/१९ योजन बहती है । घड़े के मुँह से निकलते जल की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक वह प्रपात में गिरती है । तब उसका प्रवाह कुछ अधिक ४०० योजन होता है । शीतोदा महानदी जहाँ से गिरती है, वहाँ एक विशाल जिह्विका है । वह ४ योजन लम्बी, ५० योजन चौड़ी तथा एक योजन मोटी है । उस का आकार मगरमच्छ के खुले हुए मुख के आकार जैसा है । वह संपूर्णतः वज्ररत्नमय है, स्वच्छ है । शीतोदा महानदी जिस कुण्ड में गिरती है, उसका नाम शीतोदाप्रपातकुण्ड है । उसकी लम्बाई-चौड़ाई ४८० योजन है । परिधि कुछ कम १५१८ योजन है । शेष पूर्ववत् । शीतोदाप्रपातकुण्ड के बीचोंबीच शीतोदाद्वीप है । उसकी लम्बाई-चौड़ाई ६४ योजन है, परिधि २०२ योजन है । वह जल के ऊपर दो कोस ऊंचा उठा है । वह सर्ववज्ररत्नमय है, स्वच्छ है । शेष वर्णन पूर्ववत् । उस शीतोदाप्रपातकुण्ड के उत्तरी तोरण से शीतोदा महानदी आगे मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति)" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद" Page 56

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