Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र सूत्र-१३२
भगवन् ! हैमवतक्षेत्र में शब्दापाती नामक वृत्तवैताढ्यपर्वत कहाँ है ? गौतम ! रोहिता महानदी के पश्चिम में, रोहितांशा महानदी के पूर्व में, हैमवत क्षेत्र के बीचोंबीच है । वह १००० योजन ऊंचा है, २५० योजन भूमिगत है, सर्वत्र समतल है । उस की आकृति पलंग जैसी है । लम्बाई-चौड़ाई १००० योजन है । परिधि कुछ अधिक ३१६२ योजन है । वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है । पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड द्वारा सब ओर से संपरिवृत्त है । शब्दापाती वृत्तवैताढ्य पर बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग है । भूमिभाग के बीचोंबीच एक विशाल, उत्तम प्रासाद है । वह ६२।। योजन ऊंचा हे, ३१। योजन लम्बा-चौड़ा है । भगवन् ! वह शब्दापाती वृत्तवैताढ्यपर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! उस पर छोटी-छोटी चौरस बावड़ियों यावत् अनेकविध जलाशयों में बहुत से उत्पल हैं, पद्म हैं, जिनकी प्रभा शब्दापाती सदृश है । इस के अतिरिक्त, पल्योपम आयुष्ययुक्त शब्दापाती देव वहाँ निवास करता है । उस के ४००० सामानिक देव हैं । उसकी राजधानी अन्य जम्बूद्वीपमें मन्दर पर्वत के दक्षिण में है। यावत् यह नाम शाश्वत है सूत्र - १३३
भगवन् ! वह हैमवतक्षेत्र क्यों कहा जाता है ? गौतम ! वह महाहिमवान् पर्वत से दक्षिण में एवं चुल्ल हिमवान् पर्वत से उत्तर में, उनके अन्तराल में है । वहाँ जो यौगलिक मनुष्य निवास करते हैं, वे बैठने आदि के निमित्त नित्य स्वर्णमय शिलापट्टक आदि का उपयोग करते हैं । उन्हें नित्य स्वर्ण देकर वह यह प्रकाशित करता है कि वह स्वर्णमय विशिष्ट वैभवयुक्त है । वहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्ययुक्त हैमवत नामक देव निवास करता है । गौतम ! इस कारण वह हैमवतक्षेत्र कहा जाता है। सूत्र-१३४
भगवन् ! जम्बूद्वीप में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! हरिवर्षक्षेत्र के दक्षिण में, हैमवतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत है । वह पर्वत पूर्वपश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है । वह पलंग -सा आकारवाला है । वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है । वह २०० योजन ऊंचा है, ५० योजन भूमिगत है । वह ४२१०-१०/१९ योजन चौड़ा है । उस की बाहा पूर्व-पश्चिम ९२७६-९११/१९ योजन लम्बी है । उत्तर में उसकी जीवा पूर्व-पश्चिम लम्बी है । वह लवणसमुद्र का दो
ओर से स्पर्श करती है । वह कुछ अधिक ५६९३१-६/१९ योजन लम्बी है । दक्षिण में उसका धनुपृष्ठ है, जिस की परिधि ५७२९३-१०/१९ योजन है । वह रुचकसदृश आकार है, सर्वथा रत्नमय है, स्वच्छ है । अपने दोनों ओर वह दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो वनखण्डों से घिरा हआ है । महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर अत्यन्त समतल तथा रमणीय भूमिभाग है । विविध प्रकार के पंचरंगे रत्नों तथा तृणों से सुशोभित है । वहाँ देव-देवियाँ निवास करते हैं । सूत्र-१३५
महाहिमवान् पर्वत के बीचोंबीच महापद्मद्रह है । वह २००० योजन लम्बा तथा १००० योजन चौड़ा है । वह दश योजन जमीन में गहरा है । वह स्वच्छ है, रजतमय तटयुक्त है । शेष वर्णन पद्मद्रह के सदृश है । उसके मध्य में जो पद्म है, वह दो योजन का है । शेष वर्णन पद्मद्रह के पद्म के सदृश है । वहाँ एक पल्योपमस्थितिक ह्री देवी निवास करती है । अथवा गौतम ! महाद्मद्रह नाम शाश्वत बतलाया गया है । उस महापद्मद्रह के दक्षिणी तोरण से रोहिता महानदी निकलती है । वह हिमवान् पर्वत पर दक्षिणाभिमुख होती हुई १६०५-५/१९ योजन बहती है । घड़े के मुँह से निकलते हुए जल की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक मोतियों से निर्मित हार के-से आकार में वह प्रपात में गिरती है । तब उसका प्रवाह साधिक २०० योजन होता है । रोहिता महानदी जहाँ गिरती है, वहाँ एक विशाल जिह्निका है। उसकी लम्बाई एक योजन और विस्तार १२११ योजन है । मोटाई एक कोश है । आकार मगरमच्छ के खुले मुँह जैसा है। वह सर्वथा स्वर्णमय है, स्वच्छ है।
रोहिता महानदी जहाँ गिरती है, उस प्रपात का नाम रोहिताप्रपातकुण्ड है । वह १२० योजन लम्बा-चौड़ा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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