Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 40
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र समर्पित किये । राजा भरत उस भीषण वर्षा के समय चर्मरत्न पर आरूढ़ रहा, छत्ररत्न द्वारा आच्छादित रहा, मणिरत्न द्वारा किये गये प्रकाश में सात दिन-रात सुखपूर्वक सुरक्षित रहा। सूत्र-८९ उस अवधि में राजा भरत को तथा उस की सेना को न भूख ने पीड़ित किया, न उन्होंने दैन्य का अनुभव किया और न वे भयभीत और दुःखित ही हुए । सूत्र-९० राजा भरत को इस रूप में रहते हुए सात दिन रात व्यतीत हो गये तो उस के मन में ऐसा विचार, भाव, संकल्प उत्पन्न हुआ-कौन ऐसा है, जो मेरी दिव्य ऋद्धि तथा दिव्य द्युति की विद्यामानता में भी मेरी सेना पर युग, मूसल एवं मुष्टिका प्रमाण जलधारा द्वारा सात दिन-रात हुए, भारी वर्षा करता जा रहा है । राजा भरत ने मन में ऐसा विचार, भाव १६००० देव, जानकर चौदह रत्नों के रक्षक १४००० देव तथा २००० राजा भरत के अंगरक्षक देव-युद्ध हेतु सन्नद्ध हो गये । मेघमुख नागकुमार देव थे, वहाँ आकर बोले-मत्य को चाहने वाले, मेघमख नागकमार देवों ! क्या तम चातरन्त चक्रवर्ती राजा भरत को नहीं जानते ? वह महा ऋद्धिशाली है। फिर भी तम राजा भरत की सेना पर युग, मूसल तथा मुष्टिकाप्रमाण जलधाराओं द्वारा सात दिन-रात हुए भीषण वर्षा कर रहे हो। तुम्हारा यह कार्य अनुचित है-तुम अब शीघ्र ही यहाँ से चले जाओ, अन्यथा मृत्यु की तैयारी करो। जब उन देवताओं ने मेघमुख नागकुमार देवों को इस प्रकार कहा तो वे भीत, त्रस्त, व्यथित एवं उद्विग्न हो गये, बहुत डर गये । उन्होंने बादलों की घटाएं समेट लीं । जहाँ आपात किरात थे, वहाँ आए और बोले-राजा भरत महा ऋद्धिशाली है। फिर भी हमने तुम्हारा अभीष्ट साधने हेतु राजा भरत के लिए उपसर्ग-किया । अब तुम जाओ, स्नान करो, गीली धोती, गीला दुपट्टा धारण किये हुए, वस्त्रों के नीचे लटकते किनारों को सम्हाले हुए-श्रेष्ठ, उत्तम रत्नों को लेकर हाथ जोडे राजा भरत के चरणों में पडो, उसकी शरण लो । उत्तमपुरुष विनम्रजनों प्रति वात्सल्यभाव रखते हैं, उनका हित करते हैं । तुम्हें राजा भरत से कोई भय नहीं होगा । मेघमुख नागकुमार देवों द्वारा यों कहे जाने पर वे आपात किरात उठे । स्नान किया यावत् श्रेष्ठ, उत्तम रत्न लेकर जहाँ राजा भरत था, वहाँ आये । हाथ जोड़े, राजा भरत को 'जय विजय' शब्दों द्वारा वर्धापित किया, श्रेष्ठ, उत्तम रत्न भेंट किये तथा इस प्रकार बोलेसूत्र-९१ षट्खण्डवर्ती वैभव के स्वामिन् ! गुणभूषित ! जयशील ! लज्जा, लक्ष्मी, धृति, कीर्ति के धारक ! राजोचित सहस्रों लक्षणों से सम्पन्न ! नरेन्द्र ! हमारे इस राज्य का चिरकाल पर्यन्त आप पालन करें। सूत्र-९२ अश्वपते ! गजपते ! नरपते ! नवनिधिपते ! भरत क्षेत्र के प्रथमाधिपते ! बत्तीस हजार देशों के राजाओं के अधिनायक ! आप चिरकाल तक जीवित रहें-दीर्घायु हों। सूत्र - ९३ प्रथम नरेश्वर ! ऐश्वर्यशालीन् ! ६४००० नारियों के हृदयेश्वर-मागध तीर्थाधिपति आदि लाखों देव के स्वामिन् ! चतुर्दश रत्नों के धारक ! यशस्विन् ! सूत्र - ९४ _ आपने दक्षिण, पूर्व तथा पश्चिम दिशा में समुद्रपर्यन्त और उत्तर दिशा में क्षुल्ल हिमवान् गिरि पर्यन्त समग्र भरतक्षेत्र को जीत लिया है। हम आपके प्रजाजन हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद Page 40

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