Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र आभिषेक्य हस्तिरत्न को तैयार करो, चातुरंगिणि सेना सजाओ । राजा स्नान आदि कृत्यों से निवृत्त होकर अंजनगिरि के शिखर के समान उन्नत गजराज पर आरूढ़ हुआ । स्वस्तिक, श्रीवत्स आदि ये आठ मंगल राजा के आगे चले-उनके बाद जल से परिपूर्ण कलश, शृंगार, दिव्य छत्र, पताका, चँवर तथा दर्शन रचित-राजा को दिखाई देने वाली, आलोक-दर्शनीय-हवा से फहराती, उच्छित, विजयध्वजा लिये राजपुरुष चले ।
___ तदनन्तर वैडूर्य-की प्रभा से देदीप्यमान उज्ज्वल दंडयुक्त, लटकती हुई कोरंट पुष्पों की मालाओं से सुशोभित, चन्द्रमंडल के सदृश आभामय, समुच्छित-आतपत्र, सिंहासन, श्रेष्ठ मणि-रत्नों से विभूषित-पादुकाओं की जोड़ी रखी थी, वह पादपीठ -चौकी, जो किङ्करों, भृत्यों तथा पदातियों-क्रमश: आगे रवाना किये गये । तत्पश्चात् चक्ररत्न, छत्ररत्न, चर्मरत्न, दण्डरत्न, असिरत्न, मणिरत्न, काकणीरत्न-ये सात एकेन्द्रिय रत्न यथाक्रम चले । उनके पीछे क्रमशः नौ निधियाँ चलीं। उनके बाद १६००० देव चले । उनके पीछे ३२००० राजा चले । उन के पीछे सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न तथा पुरोहितरत्न ने प्रस्थान किया । तत्पश्चात् स्त्रीरत्न-सुभद्रा, ३२००० ऋतुकल्याणिकाएं तथा ३२००० जनपदकल्याणिकाएं-यथाक्रम चलीं । उनके पीछे बत्तीस-बत्तीस अभिनेतव्य प्रकारों से परिबद्ध-३२००० नाटक चले।
तदनन्तर ३६० सूपकार, अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि जन-चले । उनके पीछे क्रमशः ८४ लाख घोड़े, ८४ लाख हाथी, ९६ करोड़ मनुष्य-चले । तत्पश्चात् अनेक राजा, ईश्वर, तलवर, सार्थवाह आदि चले । तत्पश्चात् असिग्राह, लष्टिग्राह, कुन्तग्राह, चापग्राह, चमरग्राह, पाशग्राह, फलकग्राह, परशुग्राह, पुस्तकग्राह, वीणाग्राह, कूप्यग्राह, हड़प्फग्राह तथा दीपिकाग्राह-यथाक्रम चले । उस के बाद बहुत से दण्डी, मुण्डी, शिखण्डी, जटी, पिच्छी, हासकारक, विदूषक, खेड्डुकारक, द्रवकारक, चाटुकारक, कान्दर्पिक, कौत्कुचिक तथा मौखरिक-यथाक्रम चलते गये । यह प्रसंग विस्तार से औपपातिकसूत्र के अनुसार संग्राह्य है । राजा भरत के आगे-आगे बड़े-बड़े कद्दावर घोड़े, घुड़सवार दोनों ओर हाथी, हाथियों पर सवार पुरुष चलते थे । उस के पीछे रथ-समुदाय यथावत् रूप से चलता था
तब नरेन्द्र भरतक्षेत्र का अधिपति राजा भरत, जिसका वक्षःस्थल हारों से व्याप्त, सुशोभित एवं प्रीतिकर था, अमरपति-तुल्य जिसकी समृद्धि सुप्रशस्त थी, जिससे उसकी कीर्ति विश्रुत थी, समुद्र के गर्जन की ज्यों सिंहनाद करता हुआ, सब प्रकार की ऋद्धि तथा द्युति से समन्वित, भेरी, झालर, मृदंग आदि अन्य वाद्यों की ध्वनि के साथ सहस्रों ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्वट, मडम्ब से युक्त मेदिनी को जीतता हुआ उत्तम, श्रेष्ठ रत्न भेंट के रूप में प्राप्त करता हुआ, दिव्य चक्ररत्न का अनुसरण करता हुआ, एक-एक योजन के अन्तर पर पड़ाव डालता हुआ, रुकता हुआ, जहाँ विनीता राजधानी थी, वहाँ आया । राजधानी से थोड़ी ही दूरी पर बारह योजन लम्बा, नौ योजन चौड़ा सैन्य शिबिर स्थापित किया।
अपने उत्तम शिल्पकार को बुलाया । विनीता राजधानी को उद्दिष्ट कर-राजा ने तेला किया, डाभ के बिछौने पर अवस्थित राजा भरत तेले में प्रतिजागरित-रहा । तेला पूर्ण हो जाने पर राजा भरत पौषधशाला से बाहर निकला । कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, आभिषेक्य हस्तिरत्न को तैयार करने, स्नान करने आदि का वर्णन पूर्ववत् है। आगे का वर्णन विनीता राजधानी से विजय हेतु अभियान के समान है । केवल इतना अन्तर है कि विनीता राजधानी में प्रवेश करने के अवसर पर नौ महानिधियों ने तथा चार सेनाओं ने राजधानी में प्रवेश नहीं किया।
राजा भरत ने तुमुल वाद्य-ध्वनि के साथ विनीता राजधानी के बीचों-बीच चलते हुए जहाँ अपना पैतृक घर था, जगद्वर्ति निवासगृहों में सर्वोत्कृष्ट प्रासाद का बाहरी द्वार था, उधर चला । जब राजा भरत निकल रहा था, उस समय कतिपय जन विनीता राजधानी के बाहर-भीतर पानी का छिड़काव कर रहे थे, गोबर आदि का लेप कर रहे थे, मंचातिमंच-की रचना कर रहे थे, तरह-तरह के रंगों के वस्त्रों से बनी, ऊंची, सिंह, चक्र आदि के चिह्नों से युक्त ध्वजाओं एवं पताकाओं ने नगरी के स्थानों को सजा रहे थे । अनेक दीवारों लीप रहे थे, अनेक धूपमहक से नगरी उत्कृष्ट सुरभिमय बना रहे थे, कतिपय देवता उस समय चाँदी की, स्वर्ण, रत्न, हीरों व आभूषणों की वर्षा कर रहे थे
जब राजा भरत विनीता राजधानी के बीच से किल रहा था तो नगरी के सिंघाटक, तिकोने स्थानों, महापथों
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 45