Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 16
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र रहित होते हैं । क्या उस समय भरतक्षेत्र में दुर्भूत, कुल-रोग, ग्राम-रोग, मंडल-रोग, पोट-रोग, शीर्ष-वेदना, कर्णवेदना, ओष्ठ-वेदना, नेत्र-वेदना, नख-वेदना, दंतवेदना, खांसी, श्वास, शोष, दाह, अर्श, अजीर्ण, जलोदर, पांडुरोग, भगन्दर, ज्वर, इन्द्रग्रह, धनुर्ग्रह, स्कन्धग्रह, कुमारग्रह, यक्षग्रह, भूतग्रह आदि उन्मत्तता हेतु व्यन्तरदेव कृत् उपद्रव, मस्तक-शूल, हृदय-शूल, कुक्षि-शूल, योनि-शूल, गाँव यावत् सन्निवेश में मारि, जन-जन के लिए व्यसनभूत, अनार्य, प्राणि-क्षय-आदि द्वारा गाय, बैल आदि प्राणियों का नाश, जन-क्षय, कुल-क्षय-ये सब होते हैं ? गौतम ! वे मनुष्य रोग तथा आतंक-से रहित होते हैं। सूत्र-३८ भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों की स्थिति-आयुष्य कितने काल का होता है ? गौतम ! आयुष्य जघन्य-कुछ कम तीन पल्योपम का तथा उत्कृष्ट-तीन पल्योपम का होता है । उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों के शरीर कितने ऊंचे होते हैं ? गौतम ! जघन्यतः कुछ कम तीन कोस तथा उत्कृष्टतः तीन कोस ऊंचे होते हैं । उन मनुष्यों का संहनन कैसा होता है ? गौतम ! वज्र-ऋषभ-नाराच होता है। उन मनुष्यों का दैहिक संस्थान कैसा होता है ? गौतम ! सम-चौरस-संस्थान-संस्थित होते हैं। उनकी पसलियों २५६ होती हैं । वे मनुष्य अपना आयुष्य पूरा कर कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जब उनका आयुष्य छह मास बाकी रहता है, वे एक युगल उत्पन्न करते हैं । उनचास दिन-रात उनका पालन तथा संगोपन कर वे खांस कर, छींक कर, जम्हाई लेकर शारीरिक कष्ट, व्यथा तथा परिताप का अनुभव नहीं करते हए, काल-धर्म को प्राप्त होकर स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं । उन मनुष्यों का जन्म स्वर्ग में ही होता है । उस समय भरतक्षेत्र में कितने प्रकार के मनुष्य होते हैं ? गौतम ! छह प्रकार के, पद्मगन्ध, मृगगंध, अमम, तेजस्वी, सहनशील तथा शनैश्चारी । सूत्र-३९ गौतम ! प्रथम आरक का जब चार सागर कोड़ा-कोड़ी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी काल का सुषमा नामक द्वितीय आरक प्रारम्भ हो जाता है। उसमें अनन्त वर्ण, अनन्त गंध, अनन्त रस, अनन्त स्पर्श, अनन्त संहनन, अनन्त संस्थान, अनन्त उच्चत्व, अनन्त आयु, अनन्त गुरु-लघु, अनन्त अगुरु-लघु, अनन्त उत्थान-कर्मबल-वीर्य-पुरुषकार-पराक्रम इनके सब पर्याय की अनन्तगुण परिहानि होती है | जम्बूद्वीप के अन्तर्गत इस अवसर्पिणी के सुषमा नामक आरक में उत्कृष्टता की पराकाष्ठा-प्राप्त समय में भरतक्षेत्र का कैसा आकार स्वरूप होता है ? गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है । मुरज के ऊपरी भाग जैसा समतल होता है । सुषम-सुषमा के वर्णन समान जानना । उससे इतना अन्तर है-उस काल के मनुष्य ४००० धनुष की अवगाहना वाले होते हैं । शरीर की ऊंचाई दो कोस, पसलियाँ १२८, दो दिन बीतने पर भोजन की ईच्छा, यौगलिक बच्चों की चौंसठ दिन तक सार-सम्हाल, और आयु दो पल्योपम की होती है । शेष पूर्ववत् । उस समय चार प्रकार के मनुष्य होते हैं-प्रवर-श्रेष्ठ, प्रचुरजंघ, कुसुम सदृश सुकुमार, सुशमन । सूत्र-४० गौतम ! द्वितीय आरक का तीन सागरोपम कोडाकोड़ी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी-काल का सुषम-दुःषमा नामक तृतीय आरक प्रारम्भ होता है। उसमें अनन्त वर्ण-पर्याय यावत् पुरुषकार-पराक्रमपर्याय की अनन्त गुण परिहानि होती है। उस आरक को तीन भागों में विभक्त किया है-प्रथम त्रिभाग, मध्यम त्रिभाग, अंतिम त्रिभाग | भगवन् ! जम्बूद्वीप में इस अवसर्पिणी के सुषम-दुषमा आरक के प्रथम तथा मध्यम त्रिभाग का आकारस्वरूप कैसा है ? गौतम ! उस का भूमिभाग बहुत सतल और रमणीय होता है । उसका पूर्ववत् वर्णन जानना । अन्तर इतना है-उस समय के मनुष्यों के शरीर की ऊंचाई २००० धनुष होती है । पसलियाँ चौंसठ, एक दिन के बाद आहार की ईच्छा, आयुष्य एक पल्योपम, ७९ रात-दिन अपने यौगलिक शिशुओं की सार-सम्हाल यावत् उन मनुष्यों का जन्म स्वर्ग में ही होता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 16

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